Jabalpur News: मोहन भागवत बोले, संविधान की प्रस्तावना हिंदुत्व की ही मूल भावना
Jabalpur News संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर एक राष्ट्र बना है। भारत के संविधान की प्रस्तावना भी हिंदुत्व की ही मूल भावना है।
By Jagran NewsEdited By: Sachin Kumar MishraUpdated: Sat, 19 Nov 2022 09:40 PM (IST)
जबलपुर, जेएनएन। Jabalpur News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सर संघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने शनिवार को जबलपुर (Jabalpur) के मानस भवन में प्रबुद्धजन गोष्ठी में कहा कि भारत की राष्ट्र की कल्पना पश्चिम की कल्पना से अलग है। भारत भाषा, व्यापारिक हित, सत्ता, राजनैतिक विचार आदि के आधार पर एक राष्ट्र नहीं बना। भारत भूमि सुजलां सुफलाम रही है। भारत विविधता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम के तत्व दर्शन और व्यवहार के आधार पर एक राष्ट्र बना है। अपना जीवन इन जीवन मूल्यों के आधार पर बलिदान करने वाले पूर्वजों की अपनी विशाल परंपरा है। भारत के संविधान की प्रस्तावना भी हिंदुत्व (Hindutva) की ही मूल भावना है।
सबको अपनाने वाला दर्शन ही हिंदुत्व
मोहन भागवत ने कहा कि भाषा, पूजा पद्धति के आधार पर समाज नहीं बनता। समान उद्देश्य पर चलने वाले, एक समाज का निर्माण करते हैं। भारत का दर्शन ऐसा है कि किसी ने कितना कमाया, इसकी प्रतिष्ठा नहीं है, कितना बांटा इसकी प्रतिष्ठा रही है। अपने मोक्ष और जगत के कल्याण के लिए जीना ये अपने समाज का जीवन दर्शन रहा है। इसी दर्शन के आधार पर अपना राष्ट्र बना है। इस तत्व दर्शन के आधार पर जीते हुए ज्ञान, विज्ञान, शक्ति, समृद्धि की वृद्धि करने का रास्ता अपने ऋषियों ने दिखाया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बात, यानी सब प्रकार के संतुलन की बात हमारी संस्कृति है। सबको अपनाने वाला दर्शन ही हिंदुत्व है।
विविधता को भेद का आधार नहीं बनाना
भागवत ने कहा कि विविधताओं की स्वीकार्यता है, विविधताओं का स्वागत है, लेकिन विविधता को भेद का आधार नहीं बनाना है। सब अपने हैं। भेदभाव, ऊंच-नीच अपने जीवन दर्शन के विपरीत है। हमारा व्यवहार, मन, कर्म वचन से सद्भावना पूर्ण होना चाहिए। हमारे घर में काम करके अपना जीवन यापन करने वाले, श्रम करने वाले भी हमारे सद्भाव के अधिकारी हैं। उनके सुख-दुख की चिंता भी हमें करनी चाहिए। हम अपने लिए, परिवार के लिए खर्च करते हैं, पर यह सब अपने समाज के कारण है। उसके लिए भी समय और धन खर्च करना चाहिए।कर्तव्य पालन ही धर्म
संघ प्रमुख ने कहा कि प्रकृति से इतना कुछ लेते हैं तो पौधारोपण, जल संरक्षण करना ही चाहिए। साथ ही, नागरिक अनुशासन का पालन करना चाहिए। अपने कर्तव्य पालन को ही धर्म कहा गया है। धर्म यानि रिलीजन या पूजा पद्धति नहीं है। कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन और भारत माता को पुष्पांजलि अर्पण से हुआ। तत्पश्चात गीत करवट बदल रहा है देखो, भारत का इतिहास का गायन हुआ। मंच पर क्षेत्रसंघचालक अशोक सोहनी, प्रांत संघचालक डा. प्रदीप दुबे, विभाग संघचालक डा कैलाश गुप्त उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता, एनजीओ, व्यापारी, चिकित्सक, अधिवक्ता, बैंकर, सैनिक, प्रशासनिक अधिकारी, दिव्यांग जैसी अनेक श्रेणियों से श्रोता मौजूद रहे।
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