Nag Panchami 2022: 2 अगस्त को मनायी जाएगी नाग पंचमी, पूजा के समय भूल कर भी न करें ये काम
Nag Panchami 2022 इस बार नाग पंचमी पर बरसों बाद बहुत ही शुभ और दुर्लभ योग बन रहे हैं। जन्म कुंडली में मौजूद राहु केतु से उत्पन्न होने वाले कालसर्प दोष की रोकथाम के लिए नाग पंचमी कालसर्प पूजा करना बहुत ही खास माना जाता है।
भोपाल, जागरण आनलाइन डेस्क। Nag Panchami 2022: नाग पंचमी शिव योग में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाएगी। कोरोना के चलते दो साल बाद नाग देवता की पूजा होगी। इस दिन नाग देवता की पूजा का न केवल धार्मिक बल्कि ज्योतिषीय महत्व है।
नाग पंचमी के दिन, शिव भक्त कुंडली से जुड़े कालसर्प दोष को दूर करने के लिए सभी प्रकार की शुभ कामनाओं के साथ कालसर्प पूजा करते हैं।
नाग पंचमी 2022 पूजा का शुभ मुहूर्त
मां चामुंडा दरबार के पुजारी पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि इस वर्ष नाग पंचमी तिथि 2 अगस्त को सुबह 5:43 बजे से 8:23 बजे तक होगी, यानी पूजा के लिए दो घंटे 40 मिनट की अवधि होगी।
वहीं पंचमी तिथि 1 अगस्त को शाम 5:13 बजे से शुरू होकर अगले दिन यानी 2 अगस्त को शाम 5:41 बजे तक चलेगी। इस बार नाग पंचमी पर बरसों बाद बहुत ही शुभ और दुर्लभ योग बन रहे हैं। वहीं नाग पंचमी का दिन मंगलवार होने से मंगल संजीवनी महायोग बन रहा है।
नाग पंचमी का महत्व
इस दिन पूर्णातिथी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ शाम को हस्त नक्षत्र,तथा रवि योग होगा और सिद्धि योग के साथ-साथ वर्ष की सर्वश्रेष्ठ पंचमी भी साथ ही धाता योग और प्रजापति योग की निष्पत्ति भी होगी। स्कंद पुराण के अवंती खंड में चारों दिशाओं में नाग देवताओं का स्थान है, इसलिए नाग पंचमी मनाने का विशेष महत्व है।
जन्म कुंडली में मौजूद राहु केतु से उत्पन्न होने वाले कालसर्प दोष की रोकथाम के लिए नाग पंचमी कालसर्प पूजा करना बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन कालसर्प की पूजा करने से शीघ्र और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
नाग पंचमी पर न करें ये काम
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार नाग पंचमी के दिन नागों को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए बल्कि उनकी पूजा करनी चाहिए और उनकी रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन जीवित सांप को दूध कभी न दें, उनके लिए दूध विष के समान है, इसलिए उनकी पूजा करें और मूर्ति पर ही दूध से उनका अभिषेक करें।
नाग पंचमी का संबंध महाभारत काल से है
धार्मिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल की लोक कथा के अनुसार राजा परीक्षित को सर्पों के राजा तक्षक ने डस लिया था, जो उनकी मृत्यु का कारण बना। इस घटना से राजा के पुत्र जनमेजय को बहुत दुख हुआ और उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक विशाल सपार्सात यज्ञ का आयोजन किया।
जिसमें धरती ने सारे संसार के सांपों को उस पवित्र अग्नि में कूदने पर मजबूर कर दिया था। यह देख राजा तक्षक मदद के लिए इंद्र के पास गए, लेकिन इंद्र कुछ नहीं कर सके। इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए मनसा देवी की मदद ली, मनसा देवी ने अपनी बेटी अस्तिका को जनमेजय भेजा और उस दिन श्रावण मास की पंचमी तिथि थी, तब से नाग पंचमी बनाने का विधान शुरू हुआ।
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