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मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में शुरू हुई उत्तर भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर परियोजना, 90 मेगावाट बनेगी बिजली

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में 90 मेगावाट बिजली पैदा करने वाली मध्य और उत्तर भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर परियोजना शुरू की गई। राज्य के अक्षय ऊर्जा मंत्री राकेश शुक्ला ने एक बयान में बताया कि 646 करोड़ रुपये की लागत वाली ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सौर परियोजना 8 अगस्त को शुरू की गई। इस परियोजना से अगले 25 वर्षों में 4629.3 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होने की संभावना है।

By Agency Edited By: Nidhi Avinash Updated: Sat, 10 Aug 2024 01:44 PM (IST)
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मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में शुरू हुई उत्तर भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर परियोजना (Image: PIB)

भोपाल, पीटीआई। मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में 90 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन करने वाली मध्य और उत्तर भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सौर परियोजना चालू हो गई है। 646 करोड़ रुपये की लागत वाली ओंकारेश्वर फ्लोटिंग सोलर परियोजना 8 अगस्त को चालू हुई है। 

राज्य के अक्षय ऊर्जा मंत्री राकेश शुक्ला ने एक बयान में इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यह परियोजना केंद्रीय अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के तहत विकसित की गई है और यह भारत का सबसे बड़ा सोलर पार्क और मध्य और उत्तर भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सोलर परियोजना है।

25 वर्षों में 4,629.3 मिलियन यूनिट बिजली होगी पैदा

मंत्री ने कहा कि इस परियोजना का क्रियान्वयन एसजेवीएन की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी एसजेवीएन ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एसजीईएल) द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि परियोजना के चालू होने पर एसजेवीएन की कुल स्थापित क्षमता बढ़कर 2466.50 मेगावाट हो गई है। बता दें कि इस परियोजना से पहले वर्ष में 196.5 मिलियन यूनिट और अगले 25 वर्षों में 4,629.3 मिलियन यूनिट बिजली पैदा होने की संभावना है। 

2.3 लाख टन की आएगी कमी

इस परियोजना से कार्बन उत्सर्जन में 2.3 लाख टन की कमी आएगी और 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के केंद्र सरकार के मिशन में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। शुक्ला के अनुसार, यह परियोजना जल वाष्पीकरण को कम करके जल संरक्षण में भी मदद करेगी। उन्होंने बताया कि इस परियोजना को 3.26 रुपये प्रति यूनिट की दर से 25 वर्षों के लिए बिल्ड ओन एंड ऑपरेट के आधार पर प्रतिस्पर्धी टैरिफ बोली के माध्यम से विकसित किया गया है। तैरता हुआ बिजली संयंत्र ओंकारेश्वर बांध के बैकवाटर पर विकसित किया गया था। 

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