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Research: कृषि अवशेषों को जलाने से 10 साल में 75 प्रतिशत तक बढ़ा गैस उत्सर्जन, तापमान में भी हुई वृद्धि

पृथ्वी एवं पर्यावरणीय विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डा. धान्यलक्ष्मी के. पिल्लई ने बताया कि इस अध्ययन में वर्ष 2011 से 2020 तक राज्य स्तर पर जलाए गए कृषि क्षेत्र और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का पता लगाया गया है। इस अध्ययन का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस आफ टोटल एनवायर्नमेंट में किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि इसके लिए मप्र के कई जिलों में अध्ययन किया गया।

By Praveen MalviyaEdited By: Mohammad SameerUpdated: Mon, 09 Oct 2023 06:30 AM (IST)
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कृषि अवशेषों को जलाने से 10 साल में 75 प्रतिशत तक बढ़ा गैस उत्सर्जन (file photo)
अंजली राय, भोपाल। भारत में हर साल 870 लाख टन फसल के अवशेषों को जलाया जाता है। इन कृषि अवशेषों के उत्सर्जन में 97 प्रतिशत योगदान धान, गेहूं और मक्के की फसल जलाने से होता है, जिसमें धान का योगदान 55 प्रतिशत है जो कि सबसे अधिक है। यही वजह है कि बीते दस वर्ष में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसमें पंजाब पहले और मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है। इससे लगातार तापमान में वृद्धि भी हो रही है।

यह तथ्य भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान भोपाल (आइसर), अंतरराष्ट्रीय मक्का व गेहूं सुधार केंद्र हैदराबाद और मिशिगन यूनिवर्सिटी यूएस के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर किए गए अध्ययन में निकलकर सामने आए हैं। इसके लिए विज्ञानियों ने उपग्रह आधारित तकनीक का उपयोग किया गया। इसके जरिये भारत में जलाए जाने वाले कृषि अवशेषों से उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसों की जानकारी भी मिली है।

(फाइल फोटो)

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आइसर के पृथ्वी एवं पर्यावरणीय विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डा. धान्यलक्ष्मी के. पिल्लई ने बताया कि इस अध्ययन में वर्ष 2011 से 2020 तक राज्य स्तर पर जलाए गए कृषि क्षेत्र और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का पता लगाया गया है। इस अध्ययन का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस आफ टोटल एनवायर्नमेंट में किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि इसके लिए मप्र के कई जिलों में अध्ययन किया गया।

इसमें पता चला है कि रायसेन, होशंगाबाद व उज्जैन जिले में अधिक कृषि अवशेष जलाए जा रहे हैं। बता दें कि इस अध्ययन में डा. धान्यलक्ष्मी के साथ मोनिश देशपांडे, नीतीश कुमार, अपर्णा रवि, विजेश वि. कृष्णा व मेहा जैन ने सहयोग दिया है। इन लोगों ने भारत के आठ उत्तर पूर्वी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में करीब ढाई साल तक अध्ययन किया।

पंजाब सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक क्षेत्र

इस अध्ययन में पंजाब सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक क्षेत्र बताया गया है। यहां वर्ष 2020 में कुल कृषि क्षेत्र में से 27 प्रतिशत में कृषि अवशेष को जलाया गया।

वहीं मध्य प्रदेश में वर्ष 2014-2015 में प्रभावी रूप से नीति क्रियान्वयन के कारण फसलों के अवशेषों के जलाने में कमी आई थी, जबकि वर्ष 2016 में फिर से इसमें वृद्धि देखी गई है। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र आदि कई बड़े कृषि उत्पादक राज्य हैं, लेकिन यहां कृषि अवशेष जलाए नहीं जाते हैं।

सटीक जानकारी मिली

अब तक पूर्व के अध्ययनों में यह माना गया था कि अगर खेती का उत्पादन ज्यादा होगा तो ज्यादा अवशेष जलाए जाएंगे, इसलिए अधिक कृषि उत्पादन वाले राज्यों में ज्यादा अवशेष जलाए जाने का अनुमान लगाया गया। इस अध्ययन में जब उपग्रह आधारित डेटा का इस्तेमाल किया तो यह पता चला कि कहां-कहां अवशेष जलाए जा रहे हैं।

इससे यह भी जानकारी मिली कि जिन खेतों में अवशेष जलाए गए, वे बाकी खेतों से अलग दिख रहे थे। डा. धान्यलक्ष्मी का कहना है कि उपग्रह आधारित तकनीक का इस्तेमाल कृषि अवशेष जलाने की गतिविधियों के बारे में अधिक सटीक जानकारी दे जुटा पाए।

उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों में कृषि अवशेष के खाद व जैव ईंधन के रूप में उपयोग से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी आई है। यह अध्यययन पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए क्षेत्र विशेष में रणनीति बनाने और नीतिगत हस्तक्षेप के लिए यह प्रमाण आधारित समाधान प्रदान कर सकती है।

ऐसे कर सकते हैं सुधार

  • खेती की तकनीक में सुधार लाकर।
  • कृषि अवशेष का खाद के रूप में उपयोग कर।
  • अवशेषों से जैव ईंधन का उत्पादन कर।
  • किसानों को प्रशिक्षित कर।
पृथ्वी एवं पर्यावरणीय विज्ञान विभाग आइसर के सहायक प्रोफेसर डॉ. धान्यलक्ष्मी के. पिल्लई का कहना है कि- 

भारत में हर साल 870 लाख टन कृषि अवशेष जलाया जाता है। इससे पर्यावरण प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो रही है। इसे रोकने के उपाय करने होंगे।

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