Move to Jagran APP

Sharad Yadav Demise: बंटवारे में मिली जमीन को मां के नाम स्कूल बनवाने के लिए कर दिया था दान- एसपीएस यादव

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शरद यादव अब हमारे बीच नहीं रहे। शरद यादव अपनी मां सुमित्रा यादव के सबसे ज्यादा करीब थे। शरद यादव के भाई एसपीएस यादव ने उनके बारे में बात करते हुए कई बातें बताई हैं।

By Jagran NewsEdited By: Versha SinghUpdated: Fri, 13 Jan 2023 04:17 PM (IST)
Hero Image
समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शरद यादव का निधन
आशीष दीक्षित, नर्मदापुरम। समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता शरद यादव अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका जन्म नर्मदापुरम जिले के आंखमऊ गांव में हुआ था, जहां उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई हुई। वह अपनी मां सुमित्रा यादव के सबसे ज्यादा करीब थे।

उनके बारे में (शरद यादव) बात करते हुए उनके बड़े भाई और सेवानिवृत्त शिक्षाधिकारी एसपीएस यादव ने बताया कि मां के निधन के बाद जमीन का बंटवारा किया गया। सभी के हिस्से में चार-चार एकड़ जमीन आई। शरद ने अपनी पूरी जमीन मां के नाम पर दान करने का फैसला किया। एक निजी संस्था को जिम्मेदारी दी कि मां सुमित्रा के नाम पर स्कूल खोला जाए, जहां बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। पिपरिया रोड स्थित सुमित्रा पब्लिक स्कूल का संचालन वर्तमान में भी हो रहा है। स्कूल भवन के सामने ही स्व सुमित्रा बाई की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। परिवारजनों के मुताबिक जब भी शरद गांव आते थे स्कूल के संचालन की जानकारी जरूर लेते थे।

नहीं रहे अब तुम्हारे नेता

शरद यादव के निधन के बाद से ही लोगों के फोन उनके स्वजनों के पास आ रहे हैं। शरद यादव के बड़े भाई एसपीएस यादव के पास बिहार के मधेपुरा से शुक्रवार सुबह 11 बजे फोन आया। फोन करने वाले ने अपना नाम बताते हुआ कहा कि वह उनके संगठन का कार्यकर्ता है। इतना सुनते ही बड़े भाई एसपीएस यादव की आंख भर आई। वे सिर्फ इतना ही बोल सके कि तुम्हारे नेता अब नहीं रहे। माधेपुर से फोन करने वाले व्यक्ति की भी आवाज लड़खड़ा गई थी।

हाजिरी नहीं बोलने पर हुई थी पिटाई, जातिवाद को मिला बल

बात उन दिनों की है, जब शरद आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। उस समय उनका सरनेम अहीर दर्ज था। कक्षा में उपस्थिति के समय जब हाजिरी ली जाती थी तो शरद अपने नाम पर हाजिरी नहीं बोलते थे, क्योंकि उन्हें शरद अहीर लिखा जाना पसंद नहीं था। एक दिन गुस्से में आकर शिक्षक ने शरद की पिटाई कर दी। इस पिटाई से बालक शरद के कोमल मन पर गहरा आघात हुआ। उसी समय से सामाजिक और आर्थिक असमानता मिटाने के बारे में सोचने लगे थे।

9वीं कक्षा से इटारसी में की थी पढ़ाई

भाई एसपीएस यादव बताते हैं कि शरद का दाखिला नवीं कक्षा के लिए इटारसी के स्कूल में कराया गया था। इटारसी आने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हुईं लेकिन उन्होंने पढ़ाई में मन लगाया और अच्छे अंकों से कक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उनका दाखिला राबर्टसन माडल साइंस कालेज में हुआ। वह पढ़ाई के साथ ही खेलकूद में रूचि रखते थे। वे छात्रों के बीच में काफी लोकप्रिय थे।

राजनीति की ओर बढ़ाया कदम

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के परिवार से होने के कारण शरद की रूचि हमेशा से ही राजनीति में रही। उन्होंने जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला लिया। यहां इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्वर्णपदक प्राप्त किया। कैंपस चयन भी हुआ, लेकिन उनको नौकरी नहीं करनी थी। राजनीति में सक्रियता बढ़ाई और 1971 में जबलपुर विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष बने। 1974 में हुए उपचुनाव में पहली बार 5वीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1976 में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। शरद यादव डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित रहे। कई आंदोलन में हिस्सा लिया। 1967, 1970, 1972, 1975 में मीसा में जेल जाना पड़ा। बता दें कि शरद यादव ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यह भी पढ़ें- गृह मंत्री अमित शाह और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शरद यादव को दी श्रद्धांजलि, राहुल गांधी ने भी किए अंतिम दर्शन

यह भी पढ़ें- मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता शरद यादव कैसे बने बिहार में किंग मेकर! रोचक था लालू संग दोस्ती से अलगाव तक का सफर

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।