भोपाल में 20 वर्ष तक का इंतजाम, गीले कचरे से बायो गैस बनेगी और सूखे से चारकोल तैयार होगा
अपर आयुक्त एमपी सिंह कहते हैं कि जिम्मेदारी की भावना जागृत किए बगैर भविष्य में स्व्च्छता की कसौटी पर खरा उतरना और अधिक मुश्किल होगा। इसके लिए अगले वर्ष के सर्वेक्षण से पहले अभी से व्यक्तिगत सामाजिक व्यापारिक और औदद्ययोगिक संगठनों को साथ लेकर स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Fri, 14 Oct 2022 05:16 PM (IST)
संदीप चंसौरिया, भोपाल: देश में स्वच्छता के मामले में शुरुआत से शीर्ष दस शहरों में अपना स्थान बनाए रखना आसान नहीं है, खासकर तब जबकि दौड़ में प्रतिभागी शहरों की संख्या महज छह वर्षों में 73 से बढ़कर 4,355 हो जाए। स्वच्छता को लोगों की आदत बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2016 में देश में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू किया गया था। पहली सर्वेक्षण रैंकिंग में मध्य प्रदेश के इंदौर ने शीर्ष स्थान बनाया और आज भी वही इस स्थान पर कायम है, लेकिन उसके बाद दस पायदान तक शहरों की रैंकिंग बनती बिगड़ती रही।
दूसरे पायदान पर रहने वाला भोपाल 19वें पायदान तक पहुंच गया। दूसरे शहर भी पिछड़ते चले गए और स्वच्छता की इस मैराथन में नए शहर कमाल करते हुए शीर्ष दस में शमिल होते चले गए। इनमें भोपाल ऐसा शहर है जिसने स्वच्छता के बुनियादी कार्यों पर अपना ध्यान बनाए रखा और यही कारण है कि वर्ष 2020 में भोपाल 19वें से सीधे सातवें पायदान पर आया और 2022 में छठवां स्थान बनाया है। सबसे स्वच्छ राजधानी के अपने तमगे को पुन: हासिल करने के साथ ही वाटर प्लस, पांच स्टार रैंकिंग और स्वच्छ ग्रामीण जिलों में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया है।
स्वच्छता की दौड़ में भोपाल की अचानक हुई वापसी के पीछे मुख्य रूप से वे बुनियादी बिंदु रहे जिन पर वह निरंतर काम कर रहा था। पिछले एक वर्ष में भोपाल नगर निगम ने कई चुनौतियां पार कीं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती के रूप में भानपुर खंती पर कचरे का पहाड़ था, जिसे खत्म किया गया। आदमपुर छावनी से भी कचरा साफ करते हुए उसे इस लायक बनाया कि वहां क्रिकेट खेला जा सके। घर से ही गीला-सूखा कचरा अलग-अलग निकले, कालोनियों में समग्र कचरा प्रबंधन हो, नालों की सफाई बनी रहे और खुले में शौच पूरी तरह खत्म हो, इसके लिए इन कार्यों से जागरूकता के जरिए आम लोगों को जोड़ा गया। भोपाल ने नवाचार पर कम और स्थायी स्वच्छता प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान दिया। निगम आयुक्त केवीएस चौधरी कोलसानी लगातार निगरानी करते रहे। अपर आयुक्त एमपी सिंह ने वर्ष 2019 के बाद एक बार फिर शहर की स्वच्छता की कमान स्वयं संभाली। इसके अलावा करीब 8,000 सफाईकर्मी दिन-रात सफाई व्यवस्था में जुटे रहे। यही वजह रही कि भोपाल ओवरआल रैंकिंग में सातवें से छठवें नंबर पर आया।
कचरे का पहाड़ बन गया सुंदर पार्क
शहर की 40 वर्ष पुरानी भानपुर खंती से कचरे का पहाड़ खत्म कर दिया गया। 37 एकड़ की इस खंती को वैज्ञानिक तरीके से खत्म करने के लिए पांच वर्ष पहले 52 करोड़ रुपये में रिक्लेम माडल के तहत स्वराष्ट्रा कंपनी को जिम्मेदारी दी गई। कंपनी ने यहां 16 एकड़ में सुंदर पार्क तैयार किया, जबकि शेष 21 एकड़ जगह मैदान की तरह निगम को सौंपी। यहां वर्षों से फेंके जा रहे कचरे को पृथक-पृथक कर खाद, चारकोल आदि तैयार किया गया। चारकोल को सीमेंट संयंत्रों को बेच दिया गया जबकि खाद का उपयोग शहर की हरियाली के लिए निगम के पार्कों में किया गया। शहर में प्रतिदिन निकलने वाले कचरे के निस्तारण के लिए आदमपुर छावनी में पांच एकड़ में लैंडफिल साइट का निर्माण किया गया। यहां पर एनटीपीसी से चारकोल और आइएफएलएस कंपनी से सीएनजी प्लांट के लिए अनुबंध किया गया है। दोनों कंपनियों ने प्लांट लगाने का काम शुरू कर दिया है।एनटीपीसी अपने ऊर्जा संयंत्रों के लिए प्रतिदिन 400 टन सूखे कचरे से चारकोल तैयार करेगा। वहीं, आइएफएलएस कंपनी 400 टन गीले कचरे से बायो गैस तैयार करेगी। शहर में प्रतिदिन 800 टन कचरा निकलता है। इसी तरह निगम ने शहर में ईंट, गिटटी व अन्य निर्माण सामग्री के रूप में निकलने वाले मलवे के निस्तारण के लिए पीपीपी मोड पर धुंआखेड़ा में प्लांट स्थापित करवाया है। यहां मलबे से पेवर ब्लाक तैयार किए जाएंगे। इस तरह निगम ने अगले बीस वर्ष के लिए शहर को पूरी तरह कचरा मुक्त करने की व्यवस्था सुनिश्चित करने में कामयाबी पाई है। ऐसा नहीं कि अन्य शहरों में इस दिशा में काम नहीं हो रहा है, लेकिन भोपाल पहली ऐसी राजधानी है जिसने निर्धारित समय में कचरा प्रबंधन सुनिश्चित कर दिया है। तीनों प्लांटों में काम शुरू होते ही प्रतिदिन कचरा निस्तारित होने लगेगा।
धुंआखेड़ा स्थित प्लांट जहां मलबे से पेवर ब्लाक बनाने का काम शुरू हो गया है।
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