Mediclaim Policy: बीमा कंपनी अब नहीं लगा सकती बीमारी छुपाने का आरोप, क्लेम तो देना ही होगा
Mediclaim Policy बीमा कंपनी ने यदि डाक्टर से बीमित व्यक्ति की मेडिकल जांच करा ली है तो कंपनी दावे को खारिज नहीं कर सकती कि व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारी को छुपाया है। इंदौर की जिला पीठ ने कैंसर रोगी को दावा राशि का भुगतान का आदेश दिया।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Sat, 09 Jul 2022 10:07 AM (IST)
इंदौर, लोकेश सोलंकी। मेडिक्लेम की राशि देने से पहले बीमा कंपनी ने अपने ही डाक्टर से बीमित व्यक्ति की मेडिकल जांच करा ली है, तो कंपनी इस आधार पर दावे को खारिज नहीं कर सकती है कि बीमित व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारी छिपाई है।
इस टिप्पणी के साथ, उपभोक्ता फोरम इंदौर की जिला पीठ ने कैंसर रोगी को ब्याज सहित 2 लाख रुपये और मानसिक परेशानी के लिए 25,000 रुपये की दावा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया है।
मानपुर महू निवासी कोमल चौधरी ने दिसंबर 2016 में बजाज आलियांज कंपनी से 2 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा पालिसी ली थी। मार्च 2017 में पेट दर्द की शिकायत के बाद जांच के दौरान उन्हें पेट के कैंसर का पता चला था।
जब पालिसी धारक द्वारा इलाज की लागत के रूप में पालिसी के अनुसार दावा राशि का दावा किया गया, तो बीमा कंपनी ने यह कहते हुए दावे को खारिज कर दिया कि लाभार्थी ने कंपनी से अपनी पुरानी बीमारी को छुपाया था।
इसके साथ ही उन्होंने बीमित व्यक्ति पर हाइपरटेंशन और टीबी से पीड़ित होने की जानकारी नहीं देने का भी आरोप लगाया। इस पर बीमित महिला के परिजनों ने कंज्यूमर फोरम में कंपनी के खिलाफ दावा दायर किया। महिला की 2019 में इलाज के दौरान मौत भी हो गई थी। बाद में उपभोक्ता फोरम में मामला चलता रहा।
कैंसर को तीन महीने तक कैसे छुपाया जा सकता है?बीमा कंपनी के वकील ने फोरम में कहा कि बीमित व्यक्ति के परिजन उसकी मौत का भावनात्मक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। महिला के भाई व इंदौर के सीए एसएन गोयल ने फोरम में दावा पेश करते हुए वकील के रूप में मुकदमा लड़ा।
उन्होंने मंच में कहा कि किसी भी व्यक्ति के लिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को तीन महीने तक सिर्फ इसलिए छुपाना हास्यास्पद है क्योंकि उसे बीमा क्लेम लेना है और इलाज नहीं कराना है। बीमा कंपनी ऐसी दलीलें देकर उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन कर रही है।बीमा कंपनी के वकील ने फोरम में कहा कि बीमित के स्वजन उसकी मौत का भावनात्मक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। फोरम में दावा पेश करते हुए महिला के भाई और इंदौर के सीए एसएन गोयल ने वकील के तौर पर केस लड़ा।
उन्होंने फोरम में कहा कि किसी भी व्यक्ति का कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को तीन महीने तक इसलिए छुपाए रखना हास्यास्पद है कि उसे बीमा क्लेम हासिल करना है। इस तरह के तर्क देकर बीमा कंपनी उपभोक्ता संरक्षण विधान का उल्लंघन कर रही है।कंपनी बदली तो बढ़ गयी बीमा राशिबीमित व्यक्ति के भाई और मामले में अधिवक्ता सीए एसएन गोयल के अनुसार कोमल ने कई वर्षों तक नेशनल इंश्योरेंस कंपनी से स्वास्थ्य बीमा कराया था। इसी बीच बजाज आलियांज कंपनी के एजेंट ने उनसे संपर्क किया। बताया गया कि उनका स्वास्थ्य बीमा मात्र 50 हजार रुपये का है। कानून उन्हें कंपनियों को बदलने की अनुमति देता है।
ऐसे में वह अपनी पालिसी अपनी कंपनी में शिफ्ट करवाएं और दो लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा लें। इस पर कोमल ने पालिसी ले ली। पालिसी देने से पहले कंपनी द्वारा नियुक्त डाक्टर ने संबंधित का पूरा मेडिकल परीक्षण भी किया। बीमा पॉलिसी के दस्तावेजों में कहीं भी यह नहीं लिखा था कि कैंसर रोग का दावा नहीं दिया जाएगा।फोरम के सामने तर्क रखा कि उच्च रक्तचाप का भी कैंसर जैसी बीमारी से कोई सीधा संबंध नहीं है। कंपनी ने जब स्वयं मेडिकल जांच कराकर बीमा दिया है तो वह क्लेम देने से नहीं बच सकती।
फोरम ने 15 जुलाई तक कंपनी को बीमा पालिसी के अनुसार 2 लाख रुपये साथ ही 22 मई 2018 यानी जिस दिन क्लेम खारिज किया गया था, उस दिन से छह फीसदी ब्याज देने का भी फैसला सुनाया। मानसिक परेशानी के लिए बीमा कंपनी को 25 हजार रुपये अलग से देने होंगे।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।