Diwali 2022: यहां उल्लू नहीं गज पर सवार हैं मां लक्ष्मी, दीपावली पर होगा 5000 लीटर दूध से अभिषेक
Diwali 2022 उज्जैन में मां लक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर है जहां लक्ष्मी जी गज पर विराजमान हैं। यह मंदिर दीपावली के पांचों दिन चौबीसों घंटे खुला रहेगा और यहां दिन-रात पूजा-पाठ जारी रहेगी। दिवाली के दिन यहाी 5000 लीटर दूध से मां लक्ष्मी का अभिषेक किया जाएगा।
By Jagran NewsEdited By: Babita KashyapUpdated: Wed, 19 Oct 2022 02:21 PM (IST)
उज्जैन, जागरण आनलाइन डेस्क। Diwali 2022: धन की देवी मां लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) का वाहन उल्लू (Owl) है। लेकिन उज्जैन (Ujjain) में मां लक्ष्मी का एक ऐसा मंदिर (Goddess Lakshmi Temple) है जहां लक्ष्मी जी गज (Elephant) पर विराजमान हैं। नई पेठ इलाके में स्थित इस मंदिर में दिवाली के दिन 5 हजार लीटर दूध से अभिषेक किया जाएगा और कारोबारी यहीं से बही खाते लिखना शुरू करेंगे।
इस मंदिर के पुजारी अनिमेष शर्मा का कहना है कि उज्जैन में स्थित गजलक्ष्मी का एकमात्र मंदिर है। यहां लक्ष्मी जी गज पर सवार हैं। यह मंदिर दीपावली के पांचों दिन चौबीसों घंटे खुला रहेगा और यहां दिन-रात पूजा-पाठ जारी रहेगी। पुष्य नक्षत्र (Pushya Nakshatra 2022) में धनतेरस (Dhanteras 2022) के दिन सोने-चांदी कारोबारी या जिनका व्यापार बहीखाते से जुड़ा होता है, वे मंदिर में मंत्र और यंत्र बनवाते हैं।
धनतेरस पर बांटा जाता है भक्तों को मां का आशीर्वाद
मंत्रों और यंत्रों के माध्यम से व्यापारी माता लक्ष्मी प्रार्थना करते हैं कि खाता शीघ्र पूर्ण हो तथा किसी प्रकार का कोई बकाया न हो। धनतेरस पर ही भक्तों को मां का आशीर्वाद बांटा जाता है। सभी को आशीर्वाद के रूप में पीले चावल, कोढ़ी, एक सिक्का और हल्दी की गांठ आशीर्वाद की तरह बांटी जाती है।
5000 लीटर दूध से होगा मां का अभिषेक
दिवाली के दिन सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक 5000 लीटर दूध से मां लक्ष्मी का अभिषेक किया जाएगा। शाम 6 से 2 बजे तक महाभोग का दर्शन होता है। हर साल दीपावली के दिन डॉ. महेश गुप्ता की ओर से सोलह श्रृंगार किया जाता है और मां गजलक्ष्मी को नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं। सुहाग पड़वा पर सुबह से ही प्रसाद बंटना आरंभ हो जाता है।
जो महिलाएं साल भर बिंदिया, कुमकुम, साड़ी आदि सुहाग सामग्री मंदिर में चढ़ाती हैं, सुहाग पड़वा पर वो सारा सामान महिलाओं में बांट दिया जाता है। अखंड सुहाग की इच्छा से इसे वितरित किया जाता है। पं. शर्मा के अनुसार 200 साल पूर्व तत्कालीन शंकराचार्य ने इस परंपरा की शुरुआत की थी, तभी से ये परंपरा चली आ रही है।यह भी पढ़ें - Diwali 2022: कच्चे चने और हल्दी की गांठ से भी प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी, दिवाली पर करें ये सरल उपाय
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