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उमा भारती ने 17 ट्वीट कर पारिवारिक बंधन से मुक्‍त होने का लिया संकल्‍प, अब कहलाएंगी 'दीदी मां'

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती (Uma Bharti) ने एक के बाद एक 17 ट्वीट किए हैं और कहा कि वह परिवार के सदस्यों को सभी बंधनों से मुक्त करती हैं। उमा भारती ऐलान किया कि अब उन्हें दीदी मां (Didi Maa) कहा जाएगा।

By Jagran NewsEdited By: Babita KashyapUpdated: Sat, 05 Nov 2022 11:56 AM (IST)
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उमा भारती ऐलान किया कि अब उन्हें 'दीदी मां' कहा जाएगा।
भोपाल, जागरण आनलाइन डेस्‍क। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अब अपनी जुबान के जरिये नहीं बल्कि इन दिनों इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अधिक मुखर हैं। वह आए दिन ट्वीट के जरिए अपने कार्यक्रमों और योजनाओं की जानकारी देती रहती हैं।

अब उन्होंने अपने आध्यात्मिक जीवन के बारे में एक महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने एक के बाद एक 17 ट्वीट किए हैं और कहा कि वह परिवार के सदस्यों को सभी बंधनों से मुक्त करती हैं और स्‍वयं भी इस पारिवारिक बंधन से मुक्त हो रही हैं।

अब उन्हें 'दीदी मां' कहा जाएगा

इसी के साथ उमा भारती ऐलान किया कि अब उन्हें 'दीदी मां' कहा जाएगा। मेरे गुरु ने आदेश दिया था कि मैं सभी व्यक्तिगत संबंधों और संबोधनों को त्याग दूं और केवल दीदी मां कहलाऊं। पूरा विश्व समुदाय मेरा परिवार बन जाए। मैंने यह भी निश्चय कर लिया था कि संन्यास की दीक्षा के 30वें वर्ष में मैं उनकी आज्ञा का पालन करना शुरू कर दूंगा।

नर्मदा के तट पर ली थी दीक्षा

उमा भारती ने 17 नवंबर 1992 को उडुपी, कर्नाटक के कृष्ण भक्ति संप्रदाय के महान संत - श्री विश्वेश तीर्थ महाराजा (पेजावर स्वामी) से अमरकंटक में नर्मदा के तट पर दीक्षा ली थी। उमा ने कहा, "जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज अब मेरे लिए गुरुवर हैं।

उमा भारती ने ट्वीट्स में कही ये बात

मेरे संन्यास की दीक्षा के समय गुरु ने मुझसे और मैंने गुरु जी से तीन प्रश्न पूछे थे, इसके बाद ही संन्यास की दीक्षा ली। मेरे गुरु के तीन प्रश्न थे- (1) क्या मैंने 1977 में प्रयाग के कुंभ में आनंदमयी मां द्वारा लिए गए ब्रह्मचर्य दीक्षा का पालन किया है? (2) क्या मैं हर गुरु पूर्णिमा पर उनके पास पहुंच पाऊंगा? (3) क्या मैं मठ की परंपराओं का पालन कर पाऊंगा?

तीनों सवालों के जवाब में मैंने अपने कबूलनामे के बाद उनसे तीन सवाल पूछे- (1) क्या उन्होंने भगवान को देखा है? (2) अगर मैंने मठवासी परंपराओं का पालन करने में गलती की है, तो क्या मुझे क्षमादान मिलेगा? (3) क्या मुझे आज से राजनीति छोड़ देनी चाहिए?

उमा भारती से उमाश्री भारती

उमा ने आगे बताया कि गुरुजी को पहले दो प्रश्नों के अनुकूल उत्तर मिलने के बाद, तीसरे प्रश्न का उनका उत्तर जटिल था। मेरे परिवार के साथ संबंध बने रह सकते हैं, लेकिन करुणा, दया, मोह व आसक्ति नहीं। इसके साथ ही देश के लिए राजनीति भी करनी होगी।

राजनीति में मेरा जो भी पद है, मुझे और मेरे सहयोगियों को रिश्वत और भ्रष्टाचार से दूर रहना होगा। इसके पश्‍चात मेरी संन्यास दीक्षा हुई। मेरा मुंडन करवाया गया, मैंने अपना पिंडदान किया। इसके बाद मेरा नया नामकरण संस्कार किया गया, जिसके बाद मैं उमा भारती से उमाश्री भारती बन गई।

पारिवारिक पृष्ठभूमि का किया उल्लेख

उमा ने ट्वीट के माध्‍यम से अपनी जाति और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में भी खुलकर बताया । उन्होंने लिखा- मुझे उस जाति, कुल और परिवार पर गर्व है, जिसमें मैं पैदा हुई। वह मेरे निजी जीवन और राजनीति में मेरे समर्थक और सहयोगी बने रहे।हम चार भाई और दो बहनें थे, जिनमें से 3 स्वर्ग पहुंच चुके हैं। पिताजी गुलाब सिंह लोधी एक खुशहाल किसान थे।

मां बेटी बाई कृष्ण भक्त थी जों सात्विक जीवन व्यतीत करने वाली थी। मैं घर में सबसे छोटी हूं। हालांकि मेरे पिता के अधिकांश मित्र कम्युनिस्ट थे, मेरे बड़े भाई हर्बल सिंह लोधी, अमृत सिंह लोधी, स्वामी प्रसाद लोधी व कन्हैयालाल लोधी मेरे राजनीति में आने से पहले जनसंघ और भाजपा में शामिल हो गए थे।

राजनीति के चलते सगे-संबंधियों ने भी उठाए कष्‍ट

उमा भारती ने लिखा- मेरे ज्यादातर भतीजे बाल स्वयंसेवक हैं। मुझे गर्व है कि मेरे परिजनों ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे मेरा सिर शर्म से झुक जाए। इसके उलट उन्हें मेरी राजनीति का खामियाजा भुगतना पड़ा। उनके खिलाफ झूठे केस किए गए, उन्हें जेल भेज दिया गया। भतीजा हमेशा डरा हुआ और चिंतित रहता था कि कहीं उसकी किसी हरकत से मेरी राजनीति प्रभावित न हो जाए। वह मुझे सहारा देते रहे और मैं उन पर बोझ बनकर रह गयी।

आचार्य विद्यासागर महाराज को गुरु से कहा

उमा ने लिखा- ये मात्र संयोग ही है कि जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज भी कर्नाटक से हैं। वह मेरे गुरुवर हैं। उन्होंने मुझे सभी व्यक्तिगत संबंधों और संबोधनों को त्यागने का आदेश दिया है, मुझे केवल 'दीदी मां' कहा जाये और मेरे भारती नाम को सार्थक बनाने के लिए भारत के सभी नागरिकों को स्वीकार करना चाहिए।

पूरा विश्व समुदाय मेरा परिवार हो। मैंने यह भी निश्चय कर लिया था कि सन्यास की दीक्षा के 30वें वर्ष में मैं उनकी आज्ञा का पालन करूंगी। उन्होंने यह आदेश 17 मार्च, 2022 को जिला सागर के राहाली में मुनिजनों के सामने सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हुए दिया।

मैं समस्‍त विश्व की 'दीदी मां' हूं

मैं परिवार के सदस्यों को सभी बंधनों से मुक्त करती हूं। मैं खुद 17 नवंबर को मुक्त हो जाऊंगी। मेरी दुनिया और परिवार का विस्तार हुआ है। अब मैं समस्‍त विश्व की 'दीदी मां' हूं। मेरा कोई निजी परिवार नहीं है। मैं अपने माता-पिता द्वारा दिए गए उच्चतम मूल्यों, गुरु की सलाह, जाति और वंश की गरिमा, पार्टी विचारधारा और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी से खुद को कभी मुक्त नहीं करूंगी।

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