मिलिए, बीएसएफ को बनाने वाले ऐसे जांबाज और साहसी शख्स से, जिन्होंने चंबल में असली डाकू 'गब्बर सिंह को पकड़ा
देश की अग्रणी रक्षा पंक्ति बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के संस्थापक व पहले डायरेक्टर जनरल रुस्तमजी की कहानी एक ऐसे जांबाज और साहसी शख्स की कहानी है जिन्होंने पुलिस विभाग में रहते हुए अपना पूरा जीवन देश की सुरक्षा के लिए समर्पित कर दिया।
By Vijay KumarEdited By: Updated: Wed, 01 Dec 2021 04:30 PM (IST)
ईश्वर शर्मा, इंदौर। देश की अग्रणी रक्षा पंक्ति बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के संस्थापक व पहले डायरेक्टर जनरल रुस्तमजी की कहानी एक ऐसे जांबाज और साहसी शख्स की कहानी है, जिन्होंने पुलिस विभाग में रहते हुए अपना पूरा जीवन देश की सुरक्षा के लिए समर्पित कर दिया। रुस्तमजी वहीं पुलिस अधिकारी हैं, जिन्होंने शोले फिल्म के गब्बर सिंह का असली वर्जन मध्य प्रदेश के चंबल के बीहड़ के डकैत गब्बर सिंह को पकड़ा था। रुस्तमजी को देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण दिया गया था।
रुस्तमजी को आज इसलिए याद किया जा रहा है क्योंकि वे देश की अग्रणी रक्षा पंक्ति बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के संस्थापक व पहले डायरेक्टर जनरल थे। 22 मई 1916 को नागपुर क्षेत्र के गांव कैम्पटी में जन्मे रुस्तमजी देश को स्वतंत्रता मिलने से पहले 1938 में सेंट्रल प्रोविन्स (वर्तमान मध्य प्रदेश) में पुलिस अधिकारी रहे। स्वतंत्रता के बाद वे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मुख्य सुरक्षा अधिकारी (1952-1958) रहते हुए 1958 में मध्य प्रदेश पुलिस के प्रमुख बनाए गए।
इसके बाद वे मप्र के चंबल बीहड़ में सक्रिय डकैतों और बागियों के खात्मे में जुट गए। उनके नेतृत्व में पुलिस ने नाक चबाने के लिए कुख्यात डाकू गब्बरसिंह के अलावा अमृतलाल, रूपा और लाखन सिंह डकैत के गिरोह का सफाया किया। इसी गब्बरसिंह के नाम पर बाद में शोले फिल्म का प्रसिद्ध डाकू चरित्र गब्बरसिंह रचा गया था।
सीमाओं की सुरक्षा के लिए बना दिया विशेष बलमध्य प्रदेश में डकैतों के सफाये के लिए रुस्तमजी ने जो गजब काम किया, उसने तत्कालीन केंद्र सरकार का ध्यान खींचा। तब देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए एक समर्पित बल की जरूरत महसूस की जा रही थी। रुस्तमजी के अद्भुत ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए उन्हें बीएसएफ (बार्डर सिक्योरिटी फोर्स) की स्थापना का जिम्मा दिया गया। रुस्तमजी ने अपनी बुद्धि, मेधा, साहस, प्रतिभा तथा काम के लोगों को चुनने की दृष्टि का उपयोग करते हुए बीएसएफ की पूरी रूपरेखा बनाई और 1965 में इस बल की स्थापना हुई।
रुस्तमजी इस शानदार बल के प्रथम डायरेक्टर जनरल बने। जब वे इस पद से सेवानिवृत्त हुए, तब तक वे 60 हजार जवानों को बीएसएफ का हिस्सा बना चुके थे। इसके बाद भी वे न थके, न ही थमे। उन्होंने राष्ट्रीय पुलिस आयोग बनाने का खाका तैयार किया और 1978 से 83 तक इसके सदस्य रहे। सन् 1991 में देश के प्रति अनन्य सेवा के चलते उन्हें दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। मार्च 2003 में उनका निधन हो गया।
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