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आईआईएम इंदौर ने मनाया हिंदी दिवस 2024, भाषा के महत्व पर हुई चर्चा

भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर (आईआईएम इंदौर) ने 9 सितंबर 2024 को हिंदी दिवस मनाया। कार्यक्रम का उद्घाटन आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रो. हिमांशु राय ने किया। उन्होंने तेजी से विकसित हो रहे डिजिटल परिदृश्य में हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित किया। प्रो. राय ने कहा कि आज के युवाओं में अक्सर व्यक्तिगत नैतिकता होती है लेकिन सामूहिक सामाजिक नैतिक दिशा-निर्देश की कमी होती है।

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Mon, 09 Sep 2024 10:14 PM (IST)
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आईआईएम इंदौर ने मनाया हिंदी दिवस 2024
जागरण न्यूज नेटवर्क, इंदौर। भारतीय प्रबंध संस्थान इंदौर (आईआईएम इंदौर) ने 9 सितंबर, 2024 को हिंदी दिवस मनाया। कार्यक्रम का उद्घाटन आईआईएम इंदौर के निदेशक प्रो. हिमांशु राय ने किया। उन्होंने तेजी से विकसित हो रहे डिजिटल परिदृश्य में हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित किया।

राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को आकार देने में भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बोलते हुए, प्रो. राय ने भाषा, संस्कृति और सभ्यता के बीच गहरे संबंध को समझने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिस तरह संस्कृति और सभ्यता भाषा से पोषित होती है, उसी तरह हिंदी भी एक भाषा के रूप में हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

'युवाओं में नैतिक दिशा-निर्देश की कमी'

प्रो. हिमांशु राय ने समझाया कि हमारी संस्कृति की आधारशिला हमारी भाषाओं में निहित है, और हिंदी इस सांस्कृतिक विरासत को धारण करने वाली मुख्य भाषाओं में से एक है। प्रो. राय ने कहा कि आज के युवाओं में अक्सर व्यक्तिगत नैतिकता होती है, लेकिन सामूहिक सामाजिक नैतिक दिशा-निर्देश की कमी होती है। उन्होंने हिंदी के माध्यम से इन नैतिकताओं और मूल्यों को दिशा प्रदान करने के महत्व पर जोर दिया, जो समाज का मार्गदर्शन करने और हमारी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित करने का माध्यम है।

उन्होंने हिंदी की विशिष्टता के बारे में बात की, और बताया कि यह भाषा ठीक उसी तरह लिखी जाती है, जैसे बोली जाती है, और इसने कई अन्य भाषाओं के शब्दों और प्रभावों को अवशोषित किया है, जिससे यह एक समृद्ध और अनुकूलनीय माध्यम बन गई है। उन्होंने लोगों का मार्गदर्शन करने, स्पष्टता और ज्ञान प्रदान करने की क्षमता के लिए हिंदी की प्रशंसा की।

संस्कृति और राष्ट्र का मार्गदर्शन करने की आवश्यकता पर जोर

प्रो. राय ने भारतीय भाषाओं में पाए जाने वाले ज्ञान को अपने जीवन में शामिल करके समाज, संस्कृति और राष्ट्र का मार्गदर्शन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने सभी से, यहां तक कि हिंदी से अपरिचित लोगों से भी, सभी भारतीय भाषाओं के साथ-साथ इसे बोलने और संरक्षित करने का प्रयास करने का आग्रह किया।

उन्होंने बताया कि इन भाषाओं को बोलने से लोगों को जोड़ने और एकता बनाए रखने में मदद मिलती है, उन्होंने राष्ट्र को एकजुट रखने के लिए भारतीय भाषाएं आवश्यक हैं। उन्होंने कहा, "अपनी भाषा को अपनी मां के समान सम्मान दें और देखभाल के साथ व्यवहार करें, क्योंकि यह आपकी पहचान को पोषित और आकार देती है, ठीक उसी तरह जैसे एक मां अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है।"

इस वर्ष के समारोह में "मीडिया का डिजिटल युग और हिंदी पत्रकारिता" पर एक पैनल चर्चा हुई। इसमें नेटवर्क 18 के ग्रुप एडिटर - इंटीग्रेशन एंड कन्वर्जेंस श्री ब्रजेश कुमार सिंह, हिंदुस्तान टाइम्स डिजिटल में भारतीय भाषाओं के संपादक श्री प्रभाष झा, टीवी9 भारतवर्ष में टीवी9 डिजिटल के ग्रुप एडिटर श्री पाणिनि आनंद और जागरण न्यू मीडिया के प्रधान संपादक और कार्यकारी अध्यक्ष श्री राजेश उपाध्याय शामिल थे। सत्र का संचालन प्रो. हिमांशु राय ने किया। पनेलिस्ट्स ने इस बात पर चर्चा की कि हिंदी पत्रकारिता किस प्रकार डिजिटल युग में ढल रही है और फल-फूल रही है।

हिंदी लेखकों की भूमिका पर हुई चर्चा

श्री ब्रजेश कुमार सिंह ने भाषा के संरक्षण और संवर्धन में हिंदी लेखकों की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिंदी लेखकों ने न केवल साहित्य को नई दिशा दी, बल्कि भाषा को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि साहित्य की भाषा फिल्मों में दिखाई जाने वाली बोलचाल की हिंदी से भिन्न है, जो समय के साथ विकसित हुई है।

उन्होंने कहा, "डिजिटल क्षेत्र में हिंदी का बढ़ता उपयोग अन्य भारतीय भाषाओं को प्रभावित नहीं करेगा, बल्कि यह उनके विकास को प्रोत्साहित करेगा।" उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे भारत इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में चीन से आगे निकलने की दहलीज पर पहुंच रहा है, डिजिटल विस्तार अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने वाला है।

'साहित्य पत्रकारिता का मायका है'

श्री पाणिनि आनंद ने हिंदी पत्रकारिता और साहित्य के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंध पर विचार करते हुए कहा कि "साहित्य पत्रकारिता का मायका है।" उन्होंने बताया कि पत्रकारिता साहित्य की समृद्ध परंपरा से निकली है और ऐतिहासिक रूप से हिंदी पत्रकारिता में साहित्य का सार है। हालांकि, उन्होंने कहा कि आज की पत्रकारिता में वह साहित्यिक गहराई नहीं है जो पहले हुआ करती थी।

उन्होंने कहा, "डिजिटल बूम, खासकर महामारी के दौरान ने, भाषा के उपभोग के परिदृश्य को बदल दिया है।" पत्रकारिता की भाषा पिछले कुछ वर्षों में बदली है, लेकिन विविध भाषाओं में सामग्री की मांग में वृद्धि ही होगी, जो भाषाई रूप से अधिक विविधतापूर्ण भविष्य का संकेत है।

'सांस्कृतिक बदलावों से प्रभावित होती है भाषा'

श्री प्रभाष झा ने संचार में स्पष्टता के महत्व और हिंदी पत्रकारिता के लिए साहित्य के साथ अपने संबंध को बनाए रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पत्रकारिता का पुराना दौर हिंदी लेखकों और विचारकों से बहुत प्रभावित था। उनके अनुसार, साहित्य भाषा और संचार का आधार बनता है और यह महत्वपूर्ण है कि हिंदी पत्रकारिता इस तरह से विकसित होती रहे कि यह भाषा से अपरिचित पाठकों के लिए सुलभ हो।

उन्होंने कहा, "भाषा लगातार सांस्कृतिक बदलावों से प्रभावित होती है, जिसमें यात्रा और प्रवास शामिल हैं, जो शब्दावली और उच्चारण को प्रभावित करते हैं।" उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया भाषा के सार को नहीं बदल सकता है, लेकिन यह इस बात को प्रभावित करता है कि इसे कैसे सुना और अपनाया जाता है।

'भाषा विज्ञान और कला दोनों'

श्री राजेश उपाध्याय ने डिजिटल पत्रकारिता की परिवर्तनकारी शक्ति पर ध्यान केंद्रित किया और इसे भविष्य बताया। उन्होंने भाषा को विज्ञान और कला दोनों बताया, जिसमें लेखन एक कला है और इसे समझना एक विज्ञान है। डिजिटल प्लेटफॉर्म के उदय के बावजूद, बहुत से लोग अभी भी हिंदी में जानकारी प्राप्त करते हैं और इसकी प्रासंगिकता बरकरार है।

जबकि डिजिटल पत्रकारिता ने सामग्री को वितरित करने के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, उन्होंने तर्क दिया कि मजबूत पत्रकारिता की नींव अभी भी साहित्य में निहित है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदी पत्रकारिता में मुनाफे में उतार-चढ़ाव हो सकता है, लेकिन बढ़ती साक्षरता दर इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करती है।

'डिजिटल युग चुनौतियों को प्रस्तुत करता है'

पैनल ने सामूहिक रूप से सहमति व्यक्त की कि डिजिटल युग चुनौतियों को प्रस्तुत करता है, लेकिन यह हिंदी की पहुंच का विस्तार करने के अवसर भी प्रदान करता है, जिससे भारत के भविष्य के सांस्कृतिक और भाषाई परिदृश्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में इसकी भूमिका सुनिश्चित होती है। समारोह में वार्षिक हिंदी पत्रिका "ज्ञान शिखर" का विमोचन भी हुआ। इसमें आईआईएम इंदौर समुदाय कि रचनाएं शामिल थीं। हिंदी पखवाड़े के दौरान आयोजित अंताक्षरी प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।

हिंदी दिवस और उससे जुड़ी गतिविधियों का सफल आयोजन आधुनिक प्रगति को अपनाते हुए संस्कृति को पोषित करने वाली हिंदी और हमारी भारतीय भाषाओं को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए आईआईएम इंदौर के समर्पण को रेखांकित करता है।

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