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मेहनत और मर्म से सजाया सफलता का मेला, भारत की घुड़सवार बेटी की कहानी

मां शैलपुत्री जैसे अपने दृढ़ इरादों के साथ देश को स्वर्ण दिलाने वाली इस बेटी की सफलता की चमक तो सबने देखी मगर इसके पीछे के संघर्ष से देश-दुनिया अवगत नहीं। संघर्ष भी ऐसा जो वैश्विक सफलता के बावजूद अब तक जारी है। परिवार ने बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए जो कर्ज लिया था उसे वह अभी तक चुका रहे हैं।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Wed, 02 Oct 2024 07:27 PM (IST)
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अपने घोड़े के साथ फुल ड्रेस रिहर्सल के दौरान सुदीप्ति हजेला।

कपीश दुबे, इंदौर। मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं शैलपुत्री। शैलपुत्री अर्थात शिला की, पर्वत की पुत्री। इंदौर की सुदीप्ति हजेला अपने इरादों, कठोर परिश्रम और सफलताओं में पर्वत की पुत्री की तरह ही अडिग हैं। सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी सुदीप्ति ने बचपन में ही नन्हीं आंखों से आकाश देख लिया और घुड़सवारी जैसे महंगे और प्रतिष्ठित खेल को चुना।

इस खेल की ट्रेनिंग विदेश में होती है, घोड़ा खरीदने का खर्च ही लाखों से लेकर करोड़ रुपये तक में पहुंच जाता है। अन्य एसेसरीज भी अन्य खेलों की अपेक्षाकृत बहुत महंगी। किंतु जैसा कि ऊपर कहा गया है, सुदीप्ति यहां भी शैलपुत्री साबित हुईं। वह अपने इरादों से डिगी नहीं, तो माता-पिता भी डटकर उसके साथ खड़े हो गए। बेटी को कर्ज लेकर घोड़ा दिलाया और ट्रेनिंग करवाई।

अंतत: जिद, जुनून और जज्बे के साथ की गई कठोर मेहनत का परिणाम मिला और सुदीप्ति हजेला ने बीते वर्ष 2023 में चीन में हुए एशियन गेम्स में कई देशों के घुड़सवारों को पछाड़ते हुए भारत को 41 वर्ष बाद घुड़सवारी में स्वर्ण पदक दिलाया। तब देश-दुनिया के अखबारों में सुदीप्ति का यशगान छपा। इस तरह सुदीप्ति हजेला ने मेहनत और मर्म से सफलता का नया मेला सजा लिया।

परिवार ने बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए यहां-वहां सभी जगह से कर्ज लिया था, जिसकी किस्तें माता-पिता अब तक चुका रहे हैं। मप्र सरकार ने पुरस्कार की घोषणा की थी, पैसा मिला भी, लेकिन खेल इतना महंगा है कि पुरस्कार का पैसा अभ्यास में ही खर्च हो गया।

फिलहाल सुदीप्ति अपने परिवार के खर्च पर फ्रांस में महंगी ट्रेनिंग ले रही हैं। फ्रांस में अपने कमरे का झाडू़-पोंछा खुद करती हैं, भोजन खुद बनाती हैं । इतना ही नहीं घोड़े को नहलाने, लीद साफ करने जैसे काम भी खुद ही करती हैं क्योंकि आर्थिक संसाधन सीमित हैं।

संघर्ष में भी वो डटी है

बेटी का संघर्ष किसी भी अभिभावक को भावुक कर सकता है, लेकिन हजेला परिवार अब इस संघर्ष को स्वीकार कर चुका। पिता मुकेश हजेला बताते हैं, देश में आधुनिक प्रशिक्षण की सुविधा नहीं है, इसलिए सुदीप्ति को फ्रांस के फांटेन ब्लू में एडवांस ट्रेनिंग के लिए भेजा है। प्रतिदिन 4-5 घंटे प्रैक्टिस के बाद थ्योरी की क्लास होती है। एनिमल बिहेवियर पढ़ना पढ़ता है। इस दौरान घुड़सवार घोड़े को और घोड़ा अपने घुड़सवार को समझता है। इन तमाम संघर्षों में हमारी बेटी मां शैलपुत्री की तरह डटी है।

खुली आंखों से देखा है ओलिंपिक पदक का सपना

वर्ष 2023 में चीन में हुए एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने पर मप्र सरकार ने सुदीप्ति को एक करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया। किंतु यह राशि छह महीने के अभ्यास में ही खर्च हो चुकी। अब महाद्वीप स्तर की कांटिनेंटल चैंपियनशिप के लिए और महंगे घोड़े की जरूरत होगी। पिता कहते हैं इस खेल में प्रायोजक आसानी से नहीं मिलते।

हम परिवार के लोगों से उधार ले रहे हैं और सरकार सहित सभी को पत्र लिखे हैं, ताकि कुछ मदद मिले। वर्ष 2026 में फिर एशियन गेम्स होंगे और 2028 में ओलिंपिक। सुदीप्ति का समर्पण इतना है कि भारत के लिए ओलिंपिक पदक जीतने से पहले वह रुकना नहीं चाहती। वह उसकी आंखों का यह सपना ही माता-पिता के संघर्ष में भी चेहरे की चमक बना हुआ है।

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