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UCC: 'देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझें', तीन तलाक के मामले में MP हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने की टिप्पणी

Uniform Civil Code मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने कहा कि मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को वैवाहिक न्याय और सुरक्षा देने के लिए ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाया गया है। उन्होंने कहा कि हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता का एहसास होना चाहिए। सोमवार को एक मुस्लिम महिला के तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

By Jagran News Edited By: Babli Kumari Updated: Mon, 22 Jul 2024 08:14 PM (IST)
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तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए मप्र हाई कोर्ट ने की टिप्पणी (प्रतिकात्मक फोटो)

जेएनएन, इंदौर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने तीन तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर टिप्पणी की। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) केवल कागजों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे वास्तविकता बनना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक और समाज के लिए बुरा है। कानून निर्माताओं को यह समझने में कई साल लग गए। अब समय आ गया है कि देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझे।

'समाज में कई रूढ़ीवादी प्रथाएं प्रचलित'

समाज में आज भी आस्था और विश्वास के नाम पर कई कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़ीवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। भारत के संविधान में पहले ही से अनुच्छेद 44 शामिल है, जो समान नागरिक संहिता की वकालत करता है। किंतु अब इसे केवल कागज पर नहीं बल्कि वास्तविक बनाया जाए। अच्छी तरह से तैयार समान नागरिक संहिता ऐसे अंधविश्वासों और बुरी प्रथाओं पर रोक लगाने का काम करेगी। इससे राष्ट्र की अखंडता को मजबूती मिलेगी।

तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए की टिप्पणी

सोमवार को न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने मप्र के बड़वानी जिले के राजपुर कस्बे की मुस्लिम महिला के तीन तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। महिला ने मुंबई निवासी पति, सास और ननद के खिलाफ पुलिस में एफआइआर दर्ज करवाई थी। महिला के पति ने उसे तीन बार तलाक बोलकर तलाक दे दिया था।

कोर्ट ने तीन तलाक बताया एक गंभीर मुद्दा 

न्यायमूर्ति वर्मा ने 10 पेज के फैसले में तीन तलाक को गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि इसमें शादी को कुछ ही सेकंड में तोड़ा जा सकता है और वह समय वापस नहीं लाया जा सकता। दुर्भाग्य से यह अधिकार केवल पति के पास है। अगर पति अपनी गलती सुधारना भी चाहे, तो निकाह-हलाला के अत्याचारों को महिला को ही झेलना पड़ता है।

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