MP High Court: भोपाल गैस पीड़ितों का एम्स में मुफ्त होगा पूरा इलाज, केंद्र सरकार ने जारी किया MOU
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा था कि भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों का पूरा इलाज एम्स में निशुल्क होगा और कोई भी मरीज आयुष्मान कार्ड धारक हो या नहीं उसे तुरंत ही अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया जाएगा। अब इसे लेकर केंद्र ने एक एमओयू भी जारी किया है। हाई कोर्ट ने राज्य शासन को मरीज के इलाज में देरी नहीं होनी के निर्देश दिए।
By Shoyeb AhmedEdited By: Shoyeb AhmedUpdated: Tue, 30 Jan 2024 05:00 AM (IST)
जेएनएन, जबलपुर। MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व में निर्देश दिए थे कि भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों का पूरा इलाज एम्स में निश्शुल्क होगा और कोई भी मरीज आयुष्मान कार्ड धारक हो या नहीं, उसे तुरंत ही अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया जाएगा। इसको लेकर अब एक केंद्र ने एक एमओयू भी जारी कर दिया है।
हाई कोर्ट ने राज्य शासन को निर्देश देते हुए कहा कि मरीज के इलाज शुरू व पूरा करने में देरी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने राज्य को कहा कि उन सभी एजेंसीज को आदेश से अवगत कराए जाएं, जो एमओयू से संबंधित स्वीकृति प्रदान करने की प्रक्रिया में शामिल रहे हैं।
हाईकोर्ट ने पूछा था ये सवाल
इस मामले में वरष्ठि अधिवक्ता नमन नागरथ ने कहा था कि एमओयू के तहत जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उससे इलाज करने में देरी हो रही है। अब इस मामले में कोर्ट ने एम्स को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के निर्देश दिए।हाईकोर्ट केन्द्र सरकार से पिछली सुनवाई के दौरान पूछा था कि भोपाल गैस त्रासदी पीड़ित कैंसर मरीजों के लिए निजी अस्पताल और एम्स में इलाज व भुगतान के लिए क्या व्यवस्था है। अब 19 फरवरी को मामले की अगली सुनवाई की जाएगी।
गैस पीड़ितों के लिए जारी किए थे 20 निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन सहित अन्य की याचिका की सुनवाई 2012 में की थी और गैस पीड़ितों के उपचार व पुनर्वास के संबंध में 20 निर्देश भी जारी किए थे। इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित कर मॉनिटरिंग कमेटी गठित करने के आदेश भी दिए थे।
इस कमेटी को हर तीन माह में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट के समक्ष पेश करने के लिए कहा था और रिपोर्ट के आधार पर केंद्र व राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाने थे। मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसाओं पर कोई काम नहीं होने का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की थी। सरकारी अधिकारियों पर आरोप लगा है कि उन्होंने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की है।
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