'विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदुत्व', मोहन भागवत बोले- विश्व आत्मिक शांति के लिए भारत की ओर देख रहा
Bhagwat on Hindutva विश्व कल्याण के लिए हिंदुत्व की प्रासंगिकता पर आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य करुणा शुचिता एवं तपस है। यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है। विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदुत्व है। मोहन भागवत ने कहा दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर है। इसकी वजह यूक्रेन या गाजा हो सकता है।
जेएनएन, जबलपुर। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक बार फिर हिंदुओं को एकजुट होने की सलाह दी है।
विश्व कल्याण के लिए हिंदुत्व की प्रासंगिकता पर भागवत ने कहा कि हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य, करुणा, शुचिता एवं तपस है। यही धर्म दर्शन विश्व को कल्याण के लिए देना है। विविधताओं के साथ एक होकर रहना ही हिंदुत्व है।
दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर
भागवत ने कहा कि विश्व के विकास के साथ धर्म और राजनीति की अवधारणा व्यवसाय बन गई। वैज्ञानिक युग आया और वह भी शस्त्रों का व्यापार बनकर रह गया। फिर दो विश्व युद्ध हुए, जिनसे विनाश हुआ। संपूर्ण विश्व दो विचारधारा में बंट गया। दुनिया को भस्म करने वाले अस्त्र हर जगह पहुंच चुके हैं। दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के कगार पर है। इसकी वजह यूक्रेन या गाजा हो सकता है। ऐसे में विश्व आत्मिक शांति के लिए भारत की ओर आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा है।संघ प्रमुख ने यह बात रविवार को जबलपुर में योगमणि ट्रस्ट की ओर से स्वर्गीय डा. उर्मिला ताई जामदार स्मृति व्याख्यान में प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए कही।
विकास के साथ नास्तिक और आस्तिक विचार समृद्ध हुए
भागवत ने आगे कहा कि दुनिया में विकास के साथ नास्तिक और आस्तिक विचारधाराएं समृद्ध हुईं और यह संघर्ष का विषय भी बना। जो बलवान हैं वह जिएंगे और दुर्बल मरेंगे। डा. भागवत ने कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है, पर मानवता के कल्याण का मार्ग नहीं है। भारत इस दृष्टि से संपन्न है। परंतु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया है। हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है। भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है।आरएसएस प्रमुख ने कहा कि हिंदुत्व दोनों मार्ग से चलता है, इसीलिए अतिवादी व कट्टर नहीं है। सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है। जनमानस में हिंदू शब्द बहुत पहले से प्रचलित था, बाद में बाद इसका उल्लेख ग्रंथों में भी हुआ है, परंतु जनवाणी के रूप में गुरु नानक देव ने सर्वप्रथम इसका प्रयोग किया।
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