सुहागरात पर पत्नी ने नहीं बनाए संबंध तो अदालत पहुंचा पति, हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई में कहा कि पत्नी का अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के प्रति क्रूरता है। एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमर नाथ (केशरवानी) की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-1 (आई-ए) और (आई-बी) के तहत तलाक के लिए पति के आवेदन स्वीकार करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।
जागरण न्यूज नेटवर्क, जबलपुर। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई में कहा कि पत्नी का अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना पति के प्रति क्रूरता है। एक्टिंग चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस अमर नाथ (केशरवानी) की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-1 (आई-ए) और (आई-बी) के तहत तलाक के लिए पति के आवेदन स्वीकार करने वाला फैमिली कोर्ट का आदेश बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।
इसके साथ ही, हाई कोर्ट के युगलपीठ ने उक्त टिप्पणी के साथ कुटुम्ब न्यायालय द्वारा पारित तलाक के आदेश को उचित निरूपित करते हुए पत्नी की ओर से दायर अपील निरस्त कर दी। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि पति-पत्नी दोनों पिछले कई वर्ष से अलग-अलग रह रहे हैं। यदि दंपति के मध्य अलगाव काफी समय तक अनवरत रहता है तो उस स्थिति में दोनों में से कोई एक तलाक की याचिका दायर करता है, तो तय हो जाता है कि वह विवाह टूट गया है।
सुहागरात में पत्नी ने नहीं बनाया था संबंध
दरअसल, याचिकाकर्ता (पति) ने पत्नी द्वारा क्रूरता और परित्याग के आधार पर जनवरी 2018 में सतना के फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। याचिका में पति ने कहा था कि उसकी शादी 26 मई 2013 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी, लेकिन पहली रात को ही पत्नी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना कर दिया।पति ने यह भी बताया कि वह अपनी पत्नी को पसंद नहीं था। उसकी पत्नी ने अपने माता-पिता के दबाव में शादी की थी। शादी के तीन दिन बाद 29 मई 2013 को पत्नी का भाई उसके घर आया और उसकी पत्नी को परीक्षा में शामिल कराने के लिए अपने साथ ले गया। अगले दिन, जब वह पत्नी को लाने उसके घर गया तो उसके माता-पिता ने भेजने से इनकार कर दिया। तब से उसकी पत्नी वापस नहीं लौटी है।
दूसरी ओर, पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति के साथ उसके वैवाहिक संबंध 28 मई 2013 तक बने रहे। उसके बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। ये लोग दहेज के रूप में डेढ़ लाख रुपये और एक ऑल्टो कार की मांग कर रहे थे। उसने दावा किया कि उसकी परीक्षा जून 2013 तक निर्धारित थी, इसलिए वह अपने वैवाहिक घर नहीं जा सकी।
इससे उसके ससुराल वाले नाराज हो गए और फिर से दहेज की मांग करने लगे। उसके बाद पति उसे वापस ले जाने के लिए कभी नहीं आया। पत्नी ने यह भी कहा कि वह अपने पति के साथ ससुराल में रहने को तैयार है, लेकिन दहेज की मांग के कारण उसे वैवाहिक संबंधों से अलग कर दिया गया है। इन आधारों पर उसने पति द्वारा दायर तलाक की याचिका को खारिज करने की प्रार्थना की। प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, सतना ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तलाक का आदेश पारित कर दिया।
सीधी निवासी पत्नी ने कुटुम्ब न्यायालय सतना द्वारा जारी किए गए तलाक के आदेश को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। अपील की सुनवाई के दौरान युगलपीठ ने पाया कि दोनों पक्षकारों का विवाह 26 मई, 2013 को हिंदू रीति-रिवाज से सम्पन्न हुआ था।विवाह के तीन दिन बाद ही आवेदिका के भाई परीक्षा दिलाने के लिए उसे ससुराल से लेकर चले गए थे। ससुराल पक्ष वाले उसे लेने गए तो उसने आने से इनकार कर दिया था।
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