बाघों के गढ़ बांधवगढ़ में स्थित श्रीराम जानकी मंदिर, साल में एक बार ही खुलते है कपाट; सोमवार को भक्तों की उमड़ेगी भीड़
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में सैकड़ों वर्ष पुराना श्रीराम जानकी मंदिर के कपाट एक दिन खुलने जा रहे है। परंपरानुसार मंदिर में प्रति वर्ष पर्व विशेष पर रीवा राज घराने (बघेल शासक) के वंशज पूजन करने के लिए आते हैं। मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं को 14 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
संजय कुमार शर्मा, जेएनएन। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पूरे देश में कान्हा का पूजन होता है, लेकिन बाघों के साम्राज्य बांधवगढ़ में भगवान श्रीराम कान्हा के रूप में और माता सीता राधा रानी के रूप में पूजी जाती हैं।
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के ताला गांव से लगभग 15 किलोमीटर दूर घने जंगल में पहाड़ के ऊपर बने कल्चुरी काल के किले के अंदर सैकड़ों वर्ष पुराना श्रीराम जानकी मंदिर है जिसके कपाट वर्ष में एक बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन खोले जाते हैं।
रीवा राज घराने के वंशज करते हैं पूजा
परंपरानुसार मंदिर में प्रति वर्ष पर्व विशेष पर रीवा राज घराने (बघेल शासक) के वंशज पूजन करने के लिए आते हैं। बांधवगढ़ नेशनल पार्क की सीमा के भीतर स्थित मंदिर तक पहुंचने श्रद्धालुओं को 14 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।मंदिर के गर्भगृह में विराजमान श्रीराम जानकी का सम्मोहित करने वाला श्रीविग्रह भक्तों की सारी थकान दूर कर देता है। प्रति वर्ष यहां पूजन करने पहुंचने वाले बघेली शासकों के वंशज युवराज दिव्यराज सिंह ने बताया कि जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ था तभी से इस दिन विशेष यहां पूजन किया जा रहा है।
जंगल सरकार को सौंपा तो रखी शर्त
कभी बघेल शासकों की शिकारगाह रहा बांधवगढ़ का जंगल जब टाइगर रिजर्व बनाने के लिए सौंपा गया, तब महाराजा मार्तंड सिंह ने सरकार के सामने शर्त रखी कि किले में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर लगने वाले मेले की परंपरा को समाप्त नहीं किया जाएगा। यही कारण है कि हर वर्ष एक दिन के लिए यहां वन्यजीव एक्ट शिथिल हो जाता है। 1970 के दशक में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व बनने के बाद इस क्षेत्र में स्वतंत्र विचरण पर विराम लगा था।
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