Ujjain मध्य प्रदेश के उज्जैन में मां की प्रतीरूप एक ऐसी ही वरिष्ठ महिला चिकित्सक हैं जो उज्जैन व आसपास के पांच जिलों के सैकड़ों गांवों की महिलाओं के लिए दैवीय वरदान से कम नहीं। स्त्री रोगों के मामले में इन्होंने ग्रामीण स्त्रियों की झेंप मिटाने का साहसिक काम किया है। डॉ सलूजा इतने सेवाकार्य तब भी करती हैं जबकि स्वयं कैंसर से जूझ रही हैं।
ईश्वर शर्मा, उज्जैन। नवरात्र के षष्ठम दिन स्वास्थ्य का वरदान देने वाली मां कात्यायनी की पूजा होती है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में मां की प्रतीरूप एक ऐसी ही वरिष्ठ महिला चिकित्सक हैं, जो उज्जैन व आसपास के पांच जिलों के सैकड़ों गांवों की महिलाओं के लिए दैवीय वरदान से कम नहीं।
ये हैं 75 वर्षीय डॉ सतिंदर कौर सलूजा। स्त्री रोगों के मामले में इन्होंने ग्रामीण स्त्रियों की झेंप मिटाने का साहसिक काम किया है। ये स्त्रियों को गांव से शहर अपने क्लिनिक पर बुलाती हैं और कई बार अपनी टीम लेकर गांवों में भी जाती हैं।
सरल भाषा में संवाद
चूंकि ग्रामीण महिलाएं डॉक्टरों की अंग्रेजी सुनकर झिझक या संकोच में आ जाती हैं और अपनी अंदरूनी समस्याएं नहीं बतातीं, इसलिए डॉ सलूजा महिलाओं से उनके रोग संबंधी हर विषय पर सहज-सरल हिंदी और कभी-कभी स्थानीय ग्रामीण भाषा में भी बात करती हैं।इसका जबरदस्त प्रभाव यह हुआ है कि ठेठ ग्रामीण पृष्ठभूमि की कई महिलाएं भी अब स्त्री रोगों के बारे में उतनी ही गहरी समझ रखने लगी हैं, जितनी आम शहरी महिलाएं रखती हैं। डॉ. सलूजा का यह अभियान बीते करीब 40 वर्षों से जारी है।
(एसी क्लिनिक से निकलकर पेड़ की छांव तले चौपाल लगाकर ग्रामीण महिलाओं को स्त्री रोगों की जानकारी देतीं डॉ. सलूजा।)
90 प्रतिशत डिलीवरी प्राकृतिक
जिस दौर में निजी अस्पतालों ने प्रसूता की डिलीवरी को आर्थिक पैकेज से जोड़कर लाभ का धंधा बना लिया है, उस दौर में भी डॉ सलूजा प्रसूताओं यों की डिलीवरी न्यूनतम दरों पर करती हैं। कई बार तो महिला की विकट आर्थिक स्थिति देखकर ये अपनी ओर से संसाधन लगा देती हैं, ताकि गरीब से गरीब महिला भी स्वास्थ्य सेवा से वंचित न रहे।
ये अब तक 27 हजार डिलीवरी व करीब 16 हजार गायनिक ऑपरेशन कर चुकी हैं। इनमें 90 प्रतिशत डिलीवरी प्राकृतिक (नार्मल) हैं। शेष 10 प्रतिशत डिलीवरी इसलिए सिजेरियन करनी पड़ीं, क्योंकि इन महिलाओं के केस जटिल थे।डॉ सलूजा कहती हैं, 'प्रकृति ने स्त्री का शरीर ही ऐसा बनाया है कि प्राकृतिक डिलीवरी ही श्रेष्ठ है। इससे जच्चा-बच्चा स्वस्थ रहते हैं तथा प्रसूता के शरीर पर विपरीत प्रभाव भी नहीं पड़ता। इस कारण अंतिम संभावना तक हमारा पूरा जोर प्राकृतिक डिलीवरी पर रहता है।'
(कोरोना काल के बाद से निराश्रित बुजुर्गों को राशन, कपड़े देकर उनका स्वाभिमान बचा रहीं डॉ. सलूजा)
स्वयं कैंसर योद्धा, बनीं दूसरों का सहारा
डॉ सलूजा इतने सेवाकार्य तब भी करती हैं, जबकि स्वयं कैंसर से जूझ रही हैं। इन्होंने तेरा तुझको अर्पण की तर्ज पर समाज के असहाय लोगों के लिए जिजीविषा नामक संस्था बनाई है। इसमें इन्होंने कोरोना काल के बाद से कई बुजुर्ग दंपती के जीवन-निर्वाह का जिम्मा संभाला है।
प्रतिमाह इन निराश्रित बुजुर्ग दंपती तक भोजन, कपड़े, दवा आदि सब निश्शुल्क पहुंचाती हैं। डॉ सलूजा स्वयं अपना एयर कंडीशंड केबिन छोड़कर बस्ती-बस्ती जाती हैं और अपने हाथों से सामग्री देकर आती हैं, ताकि वास्तविक बुजुर्ग तक सामान पहुंचे। वे इन बुजुर्गों को भीख मांगने से बचाने और स्वाभिमान बचाए रखने का काम कर रही हैं।
हस्ती जिंदा, मस्ती जिंदा
75 वर्ष की उम्र में भी डॉ सलूजा अपना जीवन जिंदा दिली से जीती हैं। वे अब तक दुनिया के 150 से अधिक देश घूम चुकी हैं। बीते दिनों उन्होंने आस्ट्रेलिया जाकर उम्र के आठवें दशक में स्काय डाइविंग का आनंद लिया। डॉ सलूजा को कई सम्मान व पुरस्कार भी मिले, जिनमें इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का प्रतिष्ठित डॉ ज्योति प्रसाद गांगुली मेमोरियल नेशनल अवार्ड भी है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।