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बैंड-बाजा के साथ घोड़ी पर सवार होकर 50 दूल्हों ने कहा- शादी करने के लिए हमें चाहिए दुल्हन!, पहुंचे डीएम ऑफिस

महाराष्ट्र में एक ऐसी बारात निकली जो बरात घर नहीं बल्कि कलेक्टर ऑफिस पहुंच गई। दरअसल यह जुलूस निकालने के पीछे महाराष्ट्र में महिला और पुरुष के बीच असामन्य अनुपात पर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना था। यह कार्यक्रम बुधवार को एक स्थानीय संगठन दुल्हन मोर्चा द्वारा आयोजित किया गया।

By Jagran NewsEdited By: Piyush KumarUpdated: Thu, 22 Dec 2022 05:16 PM (IST)
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महाराष्ट्र के सोलापुर में निकाली गई एक अजीबोगरीब बरात।
पुणे, एजेंसी। अमूमन लोग बारात लेकर शादी करने के लिए ही निकलते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में एक ऐसी बरात निकली जो बरात घर नहीं, बल्कि कलेक्टर ऑफिस पहुंच गई। दरअसल,महाराष्ट्र के सोलापुर में कम से कम 50 अविवाहित लोग शादी की पोशाक में घोड़ी पर सवार होकर बैंड-बाजा के साथ सोलापुर कलेक्टर के कार्यालय पहुंच गए। समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, दरअसल, यह जुलूस निकालने के पीछे महाराष्ट्र में महिला और पुरुष के बीच असामन्य अनुपात पर अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करना था।

यह कार्यक्रम बुधवार को एक स्थानीय संगठन 'दुल्हन मोर्चा' द्वारा आयोजित किया गया था। जिला कलेक्टर कार्यालय में जाकर इस अनोखे बरात में शामिल लोगों ने एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्नीक्स (PCPNDT) अधिनियम को सख्ती से लागू करने की मांग की गई थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-21) के अनुसार, महाराष्ट्र का लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 920 महिलाओं का है।

लड़कीवालों को शहर में रहने वाले लड़के हैं पसंद

डेयरी व्यवसाय चलाने वाले 29 वर्षीय शीलवंत क्षीरसागर उन 50 लोगों में शामिल थे, जो अपने लिए दुल्हन की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं 29 साल का हूं, अविवाहित हूं और सोलापुर जिले के एक ग्रामीण हिस्से से ताल्लुक रखता हूं। हमारा पारिवारिक डेयरी व्यवसाय है और दो एकड़ जमीन पर खेती भी करता हूं। जब भी शादी का प्रस्ताव आता है, तो लड़कीवालों का पहला सवाल होता है कि क्या मैं शहर में रहता हूं और क्या मेरे पास रोजगार है? क्षीरसागर ने बताया कि अब तक उनके पास शादी के 25 प्रस्ताव आ चुके हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में महिला पक्ष ने यह जानकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि वह शहर में नहीं रहते हैं और उनके पास नौकरी नहीं है.

उन्होंने कहा, 'मैंने कुछ मैट्रिमोनियल साइट्स और मैरिज ब्यूरो पर भी अपना प्रोफाइल डाला है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। क्षीरसागर ने कहा ज्यादातर लड़कियां शहरों में रहने वाले लड़कों के साथ शादी करने में इच्छुक हैं।' क्षीरसागर के तरह ही मोहोल तहसील के मूल निवासी 27 वर्षीय ऑडुम्बर माली, जो दर्जी का काम करते हैं और दो एकड़ खेत के मालिक हैं, उनकी भी कुछ ऐसी ही समस्या है। ऑडुम्बर माली ने कहा, 'मुझे अब तक शादी के आठ प्रस्ताव मिले हैं, लेकिन महिला के परिवार से पहला सवाल यह है कि मेरे पास उचित नौकरी है या नहीं। अगला सवाल यह है कि क्या हमारे पास पर्याप्त खेत है।

पीसीपीएनडीटी कानून सही तरीके से हो लागू

उन्होंने कहा कि अगर पीसीपीएनडीटी कानून सही तरीके से लागू होता तो स्थिति अलग होती। उन्होंने आगे कहा, 'पीसीपीएनडीटी अधिनियम (Pre-Natal Diagnostic Techniques) के तहत इस पर प्रतिबंध होने के बावजूद लिंग निर्धारण परीक्षण अभी भी आयोजित किए जा रहे हैं।' कार्यक्रम का आयोजन करने वाली ज्योति क्रांति परिषद के संस्थापक रमेश बारस्कर ने कहा कि लोग भले ही इस मोर्चे का मजाक उड़ाएं, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि राज्य में विवाह योग्य उम्र के युवाओं को सिर्फ इसलिए दुल्हन नहीं मिल रही है, क्योंकि राज्य में स्त्री-पुरुष का अनुपात बिगड़ा हुआ है।बारस्कर ने दावा किया कि यह असमानता कन्या भ्रूण हत्या के कारण मौजूद है और सरकार इस असमानता के लिए जिम्मेदार है।'

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