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भाजपा के सत्ता शिखर पर पहुंचने का 'लॉन्च पैड' बना था एक और 'यशोभूमि', BJP के लिए शुभ साबित हुआ था अधिवेशन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (आइआइसीसी) का उद्घाटन किया उसका नाम यशोभूमि रखा गया है। लेकिन भाजपा को सत्ता शिखर पर पहुंचाने में भी एक यशोभूमि का बड़ा योगदान रहा है। आज भाजपा भले ही सत्ता के शिखर पर पहुंच गई हो। लेकिन अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद भाजपा की कई राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी गई थीं।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 18 Sep 2023 12:02 AM (IST)
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भाजपा को सत्ता शिखर पर पहुंचाने में भी एक 'यशोभूमि' का बड़ा योगदान रहा है।

ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। कुछ नाम और तिथियां किसी व्यक्ति या संस्था के लिए चमत्कारी सिद्ध होती हैं। ऐसा ही एक नाम है 'यशोभूमि'। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (आइआइसीसी) का उद्घाटन किया, उसका नाम 'यशोभूमि' रखा गया है। लेकिन, भाजपा को सत्ता शिखर पर पहुंचाने में भी एक 'यशोभूमि' का बड़ा योगदान रहा है।

'यशोभूमि' का क्या है कनेक्शन?

आज भाजपा भले ही सत्ता के शिखर पर पहुंच गई हो। लेकिन, अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के बाद भाजपा की कई राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी गई थीं। इसके बाद हुए चुनाव में वे सरकारें वापस भी नहीं आ सकी थीं। लेकिन, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन की सत्ता मिलते ही उसने मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स मैदान में अपना बड़ा अधिवेशन किया था। पूरे रेसकोर्स मैदान में कुंभ के मेले जैसे टेंट लगाए गए थे। उस समय प्रमोद महाजन की देखरेख में हुए इस भव्य अधिवेशन का नामकरण भाजपा ने किया था- 'यशोभूमि'।

यशोभूमि अधिवेशन भाजपा के लिए हुआ था शुभ साबित

पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े कहते हैं कि 1995 में 7 से 9 नवंबर को हुआ यह अधिवेशन भाजपा के लिए इतना शुभ साबित हुआ कि उसके बाद 1996 में भाजपा 161 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में उसे सरकार बनाने का अवसर मिला। यह और बात है कि अनेक दलों को जोड़कर बनी वह सरकार अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाई और वह सिर्फ 13 दिन की अल्पजीवी सरकार बनकर रह गई। लेकिन, उसी तेरह दिन की सरकार से शुरू हुआ भाजपा का सत्ता का सफर 2019 में उसे 303 तक ले आया है।

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मनोहर जोशी ने सुझाया था मुंबई रेसकोर्स का नाम

उस अधिवेशन की आयोजन समिति के सक्रिय सदस्य रहे मुंबई भाजपा के वरिष्ठ नेता आरयू सिंह बताते हैं कि तब शिवसेना-भाजपा की नई-नई सरकार बनी थी। भाजपा घाटकोपर उपनगर के सोमैया मैदान में राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करने का मन बना रही थी। उस समय गोपीनाथ मुंडे राज्य के उप मुख्यमंत्री थे। वह मुख्यमंत्री मनोहर जोशी के पास मैदान प्राप्त करने की औपचारिकताओं पर चर्चा करने गए, तो मनोहर जोशी ने पूछा कि आप किसी और अच्छी जगह पर अधिवेशन क्यों नहीं करते। मुंडे के यह पूछने पर कि और कहां किया जा सकता है, मनोहर जोशी ने मुंबई रेसकोर्स का नाम सुझाया।

चूंकि रेसकोर्स घुड़दौड़ के लिए आरक्षित था। वहां किसी राजनीतिक सम्मेलन की अनुमति नहीं थी, तो मुंडे ने आशंका जताई कि वहां कैसे हो सकता है। तब मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने मुंबई रेसकोर्स मैदान में अधिवेशन करने की विशेष अनुमति भाजपा को प्रदान की और भाजपा ने उस मैदान का नामकरण यशोभूमि कर वहां अपना अधिवेशन किया।

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अटल बिहारी वाजपेयी ने विशेष अंदाज में दिया था भाषण

उस अधिवेशन का समापन भाषण करते हुए तब अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने विशेष अंदाज में कांग्रेस की ओर इंगित करते हुए कहा था कि कांग्रेस की विदाई ठीक ढंग से होनी चाहिए। आशिक का जनाजा है, जरा धूम से निकले। संयोग देखिए कि उनके उस भाषण के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 140 सीटें प्राप्त हुईं। उस बार उसकी सीटें जो भाजपा से कम हुईं, तो वह लगातार कम ही होती गईं।

राजग का विस्तार

यशोभूमि मैदान में हुए उस अधिवेशन के दौरान वरिष्ठ समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस रेसकोर्स मैदान के निकट ही जसलोक अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को यह बात पता चली तो वह जार्ज को देखने जसलोक पहुंच गए। अस्पताल में जार्ज के कक्ष की खिड़की से रेसकोर्स मैदान में लगे भाजपा के टेंट दिखाई देते थे।

जार्ज ने आडवाणी से कहा कि यहां से आपका अधिवेशन बहुत सुंदर दिखता है। तब आडवाणी ने कहा कि निकट आकर देखेंगे तो और सुंदर दिखेगा। आडवाणी के इस वाक्य में गहरे अर्थ छिपे थे। कुछ समय बाद जार्ज फर्नांडिस न सिर्फ भाजपा के नजदीक आए, बल्कि भाजपा के नेतृत्व में कई दलों को मिलाकर बने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजक भी बने।

जुड़ता चला गया कारवां

यह वह दौर था, जब भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत समझा जाता था। लेकिन, जार्ज जैसे वरिष्ठ समाजवादी नेता द्वारा राजग का संयोजक पद स्वीकार करने के बाद कई और दल भाजपा के साथ जुड़े और फिर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर साढ़े चार साल तक सरकार चलाई।