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Maharashtra: BJP की इस रणनीति से MVA की बढ़ी मुसीबतें, आसान नहीं होगी कामयाबी की राह

बागियों-निर्दलीयों को उतारने का रणनीतिक दांव उत्तर महाराष्ट्र में दोनों गठबंधनों के लिए सिरदर्दी बन गया है। कई सीटों पर निर्दलीयों को भाजपा का परोक्ष समर्थन महाविकास अघाड़ी के लिए चुनौती बन गया है। लोकसभा चुनाव में एनसीपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा था और इसकी वजह से ही विधानसभा चुनाव में अजीत पवार को महायुति की कमजोर कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Thu, 14 Nov 2024 09:00 PM (IST)
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति (File Photo)
संजय मिश्र, नासिक। विधानसभा चुनाव में उत्तर महाराष्ट्र की सीटों पर निर्दलीय-बागी उम्मीदवारों की बड़ी संख्या राज्य के दोनों प्रमुख गठबंधनों सत्ताधारी महायुति और विपक्षी महाविकास आघाड़ी (MVA) की चुनावी सिरदर्दी है, मगर इसमें आघाड़ी के लिए चुनौती ज्यादा बड़ी नजर आ रही है। वह इसलिए कि पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव की कामयाबी को उसी रूप में विधानसभा चुनाव में दोहराने की राह आसान नहीं दिख रही।

स्ट्राइक रेट को कायम रखना चुनौती

लड़की-बहिन जैसी लोक लुभावन योजनाओं के दम पर सत्ता विरोधी मिजाज का असर कम करने के प्रयासों के बाद चुनावी मैदान में पर्दे के पीछे से महायुति की ओर से सजाई गई निर्दलीय उम्मीदवारों की फील्डिंग की वजह से लोकसभा चुनाव के स्ट्राइक रेट को कायम रखना आघाड़ी के लिए सहज नहीं रह गया।

बिछाए गए रणनीतिक जाल

खासकर यह देखते हुए कि नासिक इलाके की राजनीति को प्रभावित करने वाले प्याज किसानों के मुद्दे की गरमी इस बार शांत है। लोकसभा चुनाव के बाद महायुति को ट्रैक पर लाने के लिए भाजपा की ओर से बिछाए गए रणनीतिक जाल के अलावा नासिक जिले में अजीत पवार की एनसीपी का एक फैक्टर के रूप में मौजूद रहना भी महाविकास आघाड़ी के लिए चुनौती है।

महायुति की कमजोर कड़ी

लोकसभा चुनाव में एनसीपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा था और इसकी वजह से ही विधानसभा चुनाव में अजीत पवार को महायुति की कमजोर कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। मगर नासिक जिले की 15 विधानसभा सीटों में कम से कम पांच पर अजीत के उम्मीदवार चुनावी लड़ाई में मजबूती से डटे हैं जिसमें येवला सीट से छगन भुजबल जैसे एनसीपी के बड़े नेता भी शामिल हैं।

वोटों का बिखराव

वैसे उत्तर महाराष्ट्र पिछले कुछ अर्से से भाजपा का भी मजबूत गढ़ रहा है लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे झटका लगा। तभी पार्टी विधानसभा चुनाव में सधे हुए रणनीतिक चाल चल रही है और निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे वोटों का बिखराव करने का दांव इसका हिस्सा ही माना जा रहा है।

बागी-निर्दलीय दोनों खेमों के लिए चुनौती

नासिक की तीनों शहरी सीटों के अलावा चंदवाड़, बागलान, कलवण जैसी सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार कांग्रेस-शिवसेना यूबीटी-एनसीपी एसपी के उम्मीदवारों के लोकसभा चुनाव के समीकरण को बिगाड़ रहे हैं। जैसाकि त्रयंबेकश्वर में एक पेशेवर शैक्षणिक संस्थान का संचालन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमर सोनवाने कहते हैं कि बागी-निर्दलीय दोनों खेमों के लिए चुनौती हैं।

निर्दलीयों को भीतरी समर्थन

मगर आघाड़ी की चुनौती इसमें ज्यादा इसलिए है कि कई सीटों पर भाजपा के परोक्ष समर्थन से निर्दलीय मैदान में हैं और उनके प्रचार अभियान को भी रणनीतिक तौर पर संचालित किया जा रहा है। वे दावा करते हैं कि भाजपा उन कुछ सीटों पर शिंदे सेना और अजीत पवार की पार्टी के उम्मीदवारों की कमजोरी के बैकअप में भी इन पर निर्दलीयों को भीतरी समर्थन दे रही है।

वोटों का बंटवारा

चंदवाड़ सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार शिरिष वसंतराव कोतवाल प्रचार अभियान के बीच माडवी गांव के समीप ग्रामीणों से रूबरू होते हुए कहते हैं कि उनकी सीट ही नहीं तमाम जगहों पर भाजपा ने सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा करने के लिए निर्दलीय उम्मीदवार खड़े किए हैं या फिर बागियों को भीतरी समर्थन दे रही है।

आघाड़ी के लिए आसान नहीं

इसी तरह पिंपलगांव के निवासी अनिल हंडोरे भी मानते हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह कामयाबी हासिल करना आघाड़ी के लिए आसान नहीं है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि देवलाली, चंदवाड़, नांदगांव जैसी सीटों पर महायुति के बागी भी उसको परेशान कर रहे हैं। नांदगांव में तो अजीत पवार की पार्टी के बड़े चेहरे छगन भुजबल के अपने भतीजे पूर्व सांसद समीर भुजबल ही निर्दलीय मैदान में है।

उत्तर महाराष्ट्र में चुनाव दिलचस्प

गठबंधन के बंटवारे में यह सीट शिंदे सेना के खाते में चली गई तो समीर भुजबल ने बगावत कर महायुति के भीतर भी घमासान मचा दिया है। इसी तरह चंदवाड़ में भी अघाड़ी के खिलाफ निर्दलीय को समर्थन दे रही महायुति को भी बागी परेशान कर रहा है जहां भाजपा के अधिकृति उम्मीदवार राहुल आहेर के खिलाफ पार्टी के ही स्थानीय प्रभावी नेता और उनके चचेरे भाई केदा आहेर मैदान में है। इस लिहाज से बागियों-निर्दलीयों को उतारने का दांव उत्तर महाराष्ट्र में चुनाव को दिलचस्प बना रहा है।

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