एससीएसटी अधिनियम देश के हर हिस्से में देता है सुरक्षा का हक, कानून का दायरा सीमित करने पर बांबे हाई कोर्ट
बांबे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का दायरा उस राज्य तक सीमित नहीं किया जा सकता है जहां व्यक्ति को उस समुदाय का घोषित किया गया हो। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि ऐसा करने से कानून का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। अदालत दूसरे राज्य में अधिनियम लागू नहीं होने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Sat, 02 Sep 2023 01:19 AM (IST)
मुंबई, पीटीआई। बांबे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का दायरा उस राज्य तक सीमित नहीं किया जा सकता है, जहां व्यक्ति को उस समुदाय का घोषित किया गया हो।
दायरा सीमित करने पर कोर्ट ने क्या कहा?
इसके साथ ही अदालत ने कहा कि ऐसा करने से कानून का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा। बांबे हाई कोर्ट ने यह आदेश कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने तर्क दिया था यदि पीड़ित अपने मूल राज्य से दूसरे राज्य में चला गया है तो अत्याचार अधिनियम के तहत अपराध लागू नहीं होगा।
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे, जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस एनजे जमादार की पूर्ण पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह अधिनियम अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति पर होने वाले अत्याचार को रोकने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य एक वर्ग के लोगों के साथ होने वाले उत्पीड़न को दूर करना और उन्हें मौलिक, सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक अधिकार सुनिश्चित कराना है।
हर हिस्से में सुरक्षा का अधिकार: कोर्ट
अदालत ने कहा कि अधिनियम के तहत व्यक्ति देश के हर हिस्से, जहां अपराध हुआ, में सुरक्षा पाने का हकदार है और इससे फर्क नहीं पड़ता है कि अपराध स्थल पर वह अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्य नहीं है।
पूर्ण पीठ ने यह भी माना कि अधिनियम के तहत दायर सभी अपीलें उच्च न्यायालय की एकल पीठ के अधिकार क्षेत्र में होंगी। अदालत ने कहा कि जाति पैदा होते ही व्यक्ति से चिपक जाती है। किसी व्यक्ति के लिए अपनी जाति के बोझ से छुटकारा पाना संभव नहीं है।