दल-बदल कानून में विलय पर संरक्षण को चुनौती देने वाली PIL, बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्र से छह सप्ताह के भीतर मांगा जवाब
बॉम्बे हाई कोर्ट में दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य करार दिए जाने से प्राप्त संरक्षण को एक जनहित याचिका के माध्यम से दी गई। इस मामले को लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। बता दें कि वनशक्ति एनजीओ की संस्थापक ट्रस्टी मीनाक्षी मेनन ने यह याचिका दायर की।
By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Wed, 20 Dec 2023 08:42 PM (IST)
पीटीआई, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट में दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य करार दिए जाने से प्राप्त संरक्षण को एक जनहित याचिका के माध्यम से दी गई। जिसको लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को भी नोटिस जारी किया, क्योंकि याचिका में संविधान की दसवीं अनुसूची के चौथे अनुच्छेद की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
बता दें कि दसवीं अनुसूची में दल-बदल विरोधी कानून से संबंधित है। इस प्रावधान के मुताबिक, दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल के आधार पर अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता है।
वनशक्ति एनजीओ की संस्थापक ट्रस्टी मीनाक्षी मेनन द्वारा दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट सुनवाई कर रहा है। इस मामले में पीठ ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दलील दी?
मीनाक्षी मेनन के वकील अहमद आब्दी ने दल-बदल को एक सामाजिक बुराई बताते हुए कहा कि विधायक सार्वजनिक हित के नहीं, बल्कि सत्ता, धन और कभी-कभी जांच एजेंसियों के भय के चलत वफादारी बदलते हैं। उन्होंने दलील दी कि इस सब से वोटर्स को परेशानी हो रही है। वोटर्स संसद तो नहीं जा सकते...महज कोर्ट ही आ सकते हैं। एक खास विचारधारा या घोषणापत्र के आधार पर वोट डाला जाता है, लेकिन बाद में पार्टी ही बदल जाती है। यह वोटर्स के साथ विश्वासघात है।याचिका में कहा गया कि कोर्ट दसवीं अनुसूची में राजनीतिक दलों के 'विभाजन और विलय' का प्रावधान करने वाले अनुच्छेद को असंवैधानिक और बुनियादी ढांचे का उल्लंघन घोषित करे। साथ ही कहा गया कि राजनेता गुट या समूह में दल-बदल करने के लिए इस प्रावधान का उपयोग करते हैं और इस प्रक्रिया में वोटर्स के साथ विश्वासघात किया जाता है।
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