आस्था कभी अंधी नहीं होती, अंग्रेजों ने किया इसे खत्म करने का सुनियोजित प्रयास: मोहन भागवत
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को कहा कि अंग्रेजों ने परंपराओं में हमारी आस्था को कम करने का सुनियोजित प्रयास किया था। भारत में मूर्ति पूजा होती है। यह आकार को निराकार से जोड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि हर चीज को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लेने की प्रवत्ति राक्षसों की होती है। आस्था रखने वालों के पास दृष्टि होती है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को दावा किया कि 1857 के बाद अंग्रेजों ने देशवासियों की अपनी परंपराओं और पूर्वजों में आस्था को कम करने के लिए व्यवस्थित तरीके से प्रयास किए। उन्होंने कहा कि कुछ प्रथाएं और रीति-रिवाज जो चले आ रहे हैं, वे विश्वास हैं। कुछ अंधविश्वास भी होता है, लेकिन आस्था कभी अंधी नहीं होती। कुछ गलत हो सकता है, तो उसे बदलने की जरूरत है।
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संघ प्रमुख ने कहा कि अंग्रेजों ने 1857 के बाद जब औपचारिक रूप से भारत पर शासन करना शुरू किया तो हमारे मन से आस्था को खत्म करने के लिए सुनियोजित प्रयास किए। हमारी अपनी परंपराओं और पूर्वजों में जो आस्था थी, उसे खत्म कर दिया। भागवत ने यह बात लेखक जी.बी. देगलुरकर की पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर कही ।
मूर्तियों के पीछे है विज्ञान
भागवत ने कहा कि भारत में मूर्ति पूजा होती है जो आकार से परे जाकर निराकार से जुड़ती है। हर किसी के लिए निराकार तक पहुंचना संभव नहीं है। इसलिए मूर्तियों के रूप में एक आकार बनाया जाता है। मूर्तियों के पीछे भी एक विज्ञान है। उन्होंने कहा कि भारत में मूर्तियों के चेहरे पर भावनाएँ अंकित होती हैं, जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं।हर चीज को मुट्ठी में रखना राक्षसों की प्रवृत्ति
भागवत ने कहा कि राक्षसों की मूर्तियों में दिखाया गया है कि वे किसी भी चीज को अपनी मुट्ठी में कसकर पकड़ लेते हैं। राक्षसों की प्रवृत्ति हर चीज को अपने हाथ में रखने की होती है। उनकी सोच है कि हम अपनी मुट्ठी में उन चीजों की रक्षा करेंगे। इसलिए वे राक्षस हैं। मगर भगवान की मूर्तियां कमल की तरह धनुष भी धारण करती हैं। उन्होंने कहा कि साकार से निराकार की ओर जाने के लिए एक दृष्टि होनी चाहिए। जो लोग आस्था रखते हैं, उनके पास दृष्टि होगी।
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