डीएनए फिंगरप्रिंट से प्रत्येक सैनिक की पहचान होगी संरक्षित, लेफ्टिनेंट जनरल दलजीत सिंह ने दी जानकारी
लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने डीएनए प्रोफाइल तैयार करने का तरीका भी बताया। उन्होंने बताया कि यह प्रोफाइल केवल एक बूंद खून से तैयार होता है जिसे खास तरह के फिल्टर पेपर पर डालकर संरक्षित कर लिया जाता है और उसे भंडार गृह में रख दिया जाता है।
पुणे, पीटीआई। सुरक्षा बलों के अधिकारियों और जवानों के खून के नमूने लेकर डीएनए फिंगरप्रिंट तैयार करने की व्यवस्था से किसी भी हादसे की स्थिति में बलिदानियों की पहचान स्पष्ट करने में बहुत सहायता मिली है। हाल के वर्षों में ऐसे 12 मामलों में हादसे या अन्य घटनाओं के शिकार हुए सुरक्षाबलों के लोगों की पहचान को साबित किया जा सका। जिन मामलों में सफलतापूर्वक पहचान स्पष्ट की जा सकी उनमें से एक मामला देश के पहले तीनों सेनाओं के प्रमुख जनरल बिपिन रावत का भी है।
आर्म्ड फोर्स मेडिकल कालेज करता है नमूनों का संरक्षण
यह जानकारी सुरक्षा बलों की चिकित्सा सेवा के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल दलजीत सिंह ने दी है। वह आर्म्ड फोर्स मेडिकल कालेज, पुणे के प्लेटिनम जुबिली समारोह से इतर पत्रकारों से बात कर रहे थे। उन्होंने बताया कि तीनों सेनाओं में कुछ ग्रेड के कर्मियों के रक्त नमूने लेने और उन्हें सुरक्षित रखने का नियम है। इन नमूनों का संरक्षण आर्म्ड फोर्स मेडिकल कालेज का फोरेंसिक मेडिसिन विभाग करता है।
इस दौरान लेफ्टिनेंट जनरल सिंह ने डीएनए प्रोफाइल तैयार करने का तरीका भी बताया। उन्होंने बताया कि यह प्रोफाइल केवल एक बूंद खून से तैयार होता है जिसे खास तरह के फिल्टर पेपर पर डालकर संरक्षित कर लिया जाता है और उसे भंडार गृह में रख दिया जाता है। इसके बाद अगर किसी कारण से उस व्यक्ति की पहचान स्पष्ट करने की जरूरत होती है तो उसी संरक्षित नमूने से मिलान किया जाता है।
इसके लिए कार्रवाई या किसी हादसे में जान देने वाले सैन्यकर्मी के शव के किसी हिस्से से संरक्षित नमूने का मिलान कराकर पहचान स्पष्ट की जाती है। यह मिलान डीएनए का होता है जो प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग होता है। हां, आग से क्षत-विक्षत शवों के मामले में थोड़ी कठिनाई आती है, अगर शरीर का कोई हिस्सा आग से बच गया होता है या कम जला होता है तो उसके डीएनए से संरक्षित नमूने का मिलान कराया जाता है।