पहले प्रतापगढ़ और अब विशालगढ़ 'अतिक्रमण' से त्रस्त शिवाजी की धरोहरें, दरगाह और मस्जिद के अलावा अवैध निर्माण भी शामिल
ऐतिहासिक विशालगढ़ किले में अतिक्रमण विरोधी अभियान जारी है। विशालगढ़ किले के अलावा प्रतापगढ़ किले के आसपास भी अतिक्रमण देखी जा सकती है। विशालगढ़ के आसपास एक बड़ी मुस्लिम आबादी नजर आती है। किले के पास दरगाह के निर्मान के अलावा एक मस्जिद और काफी दूर में हुआ अवैध निर्माण भी शामिल है। छत्रपति शिवाजी महाराज की गद्दी के वंशज छत्रपति संभाजी महाराज ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
पीटीआई, मुंबई। रविवार को कोल्हापुर स्थित विशालगढ़ किले पर हुए पथराव ने वहां हुए अतिक्रमण की कहानी लोगों के सामने ला दी है। यही स्थिति उस प्रतापगढ़ किले के आसपास भी देखी जा सकती है, जहां छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर के आदिलशाही वंश के सेनापति अफजलखान का अपने बाघनख से वध किया था।
विशालगढ़ किले का इतिहास भी आदिलशाही सल्तनत से छत्रपति शिवाजी महाराज के टकराव से ही जुड़ता है। ठीक 364 वर्ष पहले शिवाजी महाराज आदिलशाही सेना के सेना पति सिद्धी मसूद के जाल से बचकर इसी विशालगढ़ किले में पहुंचे थे। उन्हें वहां पहुंचाने के लिए दो मराठा योद्धाओं बाजी प्रभु एवं फुलजी प्रभु ने लड़ते-लड़ते अपनी जान दे दी थी। आदिलशाही सेना के साथ हुई उनकी लड़ाई को ‘पावनखिंड की लड़ाई’ के नाम से जाना जाता है।
विशालगढ़ के आसपास एक बड़ी मुस्लिम आबादी
अब उसी विशालगढ़ के आसपास एक बड़ी मुस्लिम आबादी नजर आती है। वहां हजरत सैयद मलिक रेहान मीर साहब की दरगाह के अलावा एक मस्जिद और काफी दूर में हुआ अवैध निर्माण भी शामिल है। आसपास रहनेवालों का कहना है कि वहां बड़े पैमाने पर मवेशियों के वध एवं मांस का कारोबार होता है। 364 वर्ष पहले शिवाजी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करनेवाले दो मराठा योद्धाओं बाजी प्रभु एवं फुलजी प्रभू के बलिदान को याद करने के लिए रविवार को कुछ हिंदू संगठन विशालगढ़ पहुंचे थे। उन्होंने वहां हो रहे अवैध अतिक्रमण के विरुद्ध प्रदर्शन करने का फैसला किया, तो दूसरे समुदाय के लोग भी आ गए और दोनों तरफ से पथराव होने लगा।विशालगढ़ किले के पास मंदिरों की संख्या हुई कम
पथराव की घटना के बाद अपने समर्थकों के साथ विशालगढ़ किले पर पहुंचे छत्रपति शिवाजी महाराज की गद्दी के वंशज छत्रपति संभाजी महाराज ने किले के आसपास लगातार बढ़ते जा रहे अतिक्रमण को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। दूसरी ओर महाराष्ट्र के महान संत तुकाराम महाराज के 11वें वंशज शिरीष मोरे का कहना है कि किले पर अतिक्रमण तो वर्षों से हो रहा था। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। आसपास के लोगों का कहना है कि पहले विशालगढ़ किले और उसके आसपास कुल 55 प्राचीन मंदिर थे। लेकिन आज 20-25 हिंदू मंदिर ही बचे हैं। वे भी बहुत खराब स्थिति में हैं।
अवैध निर्माण को ढहाने का नोटिस हो चुका है जारी
राज्य पुरातत्व विभाग ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को अपने अवैध निर्माण 30 दिनों के अंदर ढहाने का नोटिस दिसंबर 2022 में भेजा था। इस नोटिस के विरुद्ध अल्पसंख्यक समुदाय ने उच्चन्यायालय में अपील की। उनका दावा था कि उनके द्वारा किए गए निर्माण किले को 1999 में संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने से पहले के हैं। इसलिए महाराष्ट्र प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अवशेष अधिनियम, 1960 उनपर लागू नहीं होते। उनके तर्कों से सहमति जताते हुए मुंबई उच्च न्यायालय ने फरवरी 2023 में पुरातत्व विभाग के विध्वंस आदेश पर रोक लगा दी थी। तब उच्च न्यायालय ने अयूब कागदी एवं छह अन्य द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विशालगढ़ किले के भीतर छोटे भूखंडों पर जिन लोगों का कब्जा होने का दावा किया जा रहा है, वह निर्माण वहां 30 से 60 वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक कब्जे को तो 1983 में नियमित भी किया जा चुका है।अतिक्रमण का मामला मुंबई उच्च न्यायालय पहुंचा
बता दें कि विशालगढ़ जैसा ही कब्जा सातारा के प्रतापगढ़ किले के आसपास भी अफजलखान की कब्र के चारों ओर कर लिया गया था। अफजलखान की कब्र को पिछले 20-25 वर्षों में धीरे-धीरे मकबरे का रूप दे दिया गया था। वहां आसपास के ग्रामीणों का कहना है कि उक्त अवधि के दौरान ही अफजल की कब्र का सौंदर्यीकरण शुरू हुआ और वहां एस्बेस्टास की चद्दरें तानकर मौलानाओं के लिए कमरे तक बना दिए गए। इन कमरों में रहनेवाले मौलाना प्रतापगढ़ किले की ओर जानेवाले पर्यटकों को ‘अफजलखान की वीरता की गाथा’ तक सुनाने लगे थे। यहां भी अतिक्रमण का मामला मुंबई उच्च न्यायालय पहुंचा था।
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