Maoist links case: HC ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा और 5 अन्य को किया बरी, आजीवन कारावास को भी कर दिया रद्द
Maoist links case बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को बरी कर दिया है और उन पर लगाए गए आजीवन कारावास को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया।
पीटीआई, नागपुर। Maoist links case: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने मंगलवार को कथित माओवादी लिंक मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जी एन साईबाबा को बरी कर दिया है और उन पर लगाए गए आजीवन कारावास को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया।
पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ उचित संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा।
इसने कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत आरोपियों पर आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा प्राप्त मंजूरी को भी "अमान्य और शून्य" माना।
हालांकि अभियोजन पक्ष ने हाई कोर्ट से अपने आदेश पर रोक लगाने की मांग नहीं की, लेकिन उसने कहा कि वह तुरंत सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकता है।
14 अक्टूबर, 2022 को, एचसी की एक अन्य पीठ ने साईबाबा को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में मुकदमे की कार्यवाही शून्य थी। महाराष्ट्र सरकार ने उसी दिन फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने शुरू में आदेश पर रोक लगा दी और बाद में अप्रैल 2023 में, एचसी के आदेश को रद्द कर दिया और साईबाबा द्वारा दायर अपील पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया।
शारीरिक विकलांगता के कारण व्हीलचेयर पर रहने वाले साईबाबा (54) 2014 में मामले में गिरफ्तारी के बाद से नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं।
2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने कथित माओवादी संबंधों और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसी गतिविधियों में शामिल होने के लिए साईबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र सहित पांच अन्य को दोषी ठहराया।
ट्रायल कोर्ट ने उन्हें यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था।
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