महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले महाविकास अघाड़ी दल लगातार मुस्लिम समुदाय को लुभाने में जुटी है। राज्य में विपक्ष द्वारा मुस्लिमों को उम्मीदवारी न देना मुस्लिमों के विरुद्ध भड़काऊ बयानबाजी होना एवं वक्फ संशोधन विधेयक जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं। करीब एक दर्जन से अधिक गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों ने भी केंद्र सरकार के कामकाज पर नाराजगी जाहिर की है।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। महाराष्ट्र में मुंबई हो या मालेगांव, या फिर मराठवाड़ा, प्रत्येक मुस्लिम बहुल क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकरण का भरपूर प्रयास होता दिख रहा है। भाजपा-शिवसेना (शिंदे) को छोड़ करीब-करीब हर दल में मुस्लिम मतदाताओं के बीच जाने, और उनके वोट पाने की होड़ लगी है।
यहां तक कि मराठा समाज के नए-नवेले नेता मनोज जरांगे पाटिल भी इसमें पीछे नहीं हैं। ध्रुवीकरण के लिए राजनीतिक दलों द्वारा मुस्लिमों को उम्मीदवारी न देना, मुस्लिमों के विरुद्ध भड़काऊ बयानबाजी होना एवं वक्फ संशोधन विधेयक जैसे मुद्दे जोरशोर से उठाए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार के काकाज से चंतित हैं कई गैर सरकारी मुस्लिम संगठन
करीब एक दर्जन से अधिक गैर सरकारी मुस्लिम संगठनों को मिलाकर बने संगठन मुस्लिम नुमाइंदा परिषद के अध्यक्ष जियाउद्दीन सिद्दीकी दैनिक जागरण से बात करते हुए कहते हैं कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने केंद्र में मुस्लिम-विहीन सरकार बनाई है। अब वे भारत में मुस्लिम-विहीन राजनीति करना चाहते हैं।
लोकसभा चुनाव में विपक्ष को मिला था मुस्लिम वोटर्स का साथ
जियाउद्दीन महायुति (NDA) और महाविकास अघाड़ी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि महाराष्ट्र में छह बड़ी पार्टियां हैं। लेकिन किसी भी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कोई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा था।फिर भी लोकसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय ने मोटे तौर पर विपक्षी गठबंधन आयएनडीआयए का समर्थन किया। हमें उम्मीद है कि मविआ विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करेगी। जियाउद्दीन सिद्दीकी की यह अपेक्षा अब पूरी भी होती दिखाई दे रही है।
शिवाजीनगर-मानखुर्द सीट पर अबू आजमी की नवाब मालिक से लड़ाई
महाराष्ट्र में भाजपा और दोनों शिवसेनाओं को छोड़ दिया जाए, तो करीब-करीब सभी दल इस बार बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतार चुके हैं। कुछ सीटों पर तो यह होड़ इस कदर बढ़ गई है कि कई दमदार उम्मीदवार आपस में ही लड़ते दिखाई दे रहे हैं। जैसे मुंबई के शिवाजीनगर-मानखुर्द में सपा के प्रदेश अध्यक्ष अबू आसिम आजमी और राकांपा (अजीत पवार) के उम्मीदवार नवाब मलिक।
शिवसेना (यूबीटी) ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट तो नहीं दिए हैं, लेकिन उनके कई उम्मीदवार मुस्लिम बहुल सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव की भांति इस बार मुस्लिम मतदाता उनके साथ खड़े होंगे, और उन्हें बढ़त दिलाएंगे। जियाउद्दीन सिद्दीकी खुलकर कहते हैं कि लोकसभा चुनावों की भांति इस बार भी हम भाजपा या महायुति के उम्मीदवारों के विरुद्ध जिताऊ मुस्लिम उम्मीदवार को ही वोट देने की अपील कर रहे हैं।
भारत में ईशनिंदा कानून बनाना चाहिए: इम्तियाज जलील
कथित सेक्युलर दलों द्वारा बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार देने के अलावा मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट रखने के लिए और भी मुद्दे उछाले जा रहे हैं। इनमें एक बड़ा मुद्दा कुछ माह पहले महाराष्ट्र के एक संत महंत रामगिरि के एक भाषण का भी है।महंत रामगिरि के भाषण के विरोध में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआयएमआयएम) के पूर्व सांसद इम्तियाज जलील छत्रपति संभाजीनगर से मुंबई तक बड़ी कार रैली भी निकाल चुके हैं।
इम्तियाज जलील कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत भरे भाषणों में वृद्धि हुई है। हमें भारत में ईशनिंदा कानून बनाना चाहिए ताकि यह ऐसे लोगों के खिलाफ निवारक के रूप में काम करे जो इस तरह के नफरत भरे भाषण देते हैं। महाराष्ट्र में मुस्लिमों को एकजुट करने के लिए वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का भी भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर पूर्व सांसद ने जताई नाराजगी
8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में यह विधेयक पेश किए जाने के बाद से चुनावी राज्य महाराष्ट्र में यह माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है कि केंद्र सरकार इस विधेयक के जरिए मुस्लिम समाज की देश भर में पड़ी बहुत बड़ी संपत्तियों पर अधिकार जमाना चाहती है।
यह विधेयक संसद में पेश होने के बाद ही छत्रपति संभाजीनगर में मुस्लिम नुमाइंदा परिषद ने क्रमिक धरना शुरू कर दिया था। यह धरना करीब एक महीने तक चलता रहा था। मुस्लिम संगठनों और नेताओं की ऐसी गतिविधियों एवं अपीलों का मुस्लिम समुदाय पर असर भी होता दिखाई दे रहा है।
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