Indian Economy: निर्मला सीतारमण बोलीं, समाजवादी सोच ने चौपट की देश की आर्थिकी
Maharashtra निर्मला सीतारमण ने कहा कि आजादी के बाद देश की आर्थिकी समाजवादी सोच ने चौपट कर दी। इसे पुन पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है। सीतारमण ने कहा कि हिंदी बोलने से उन्हें कंपकंपी होती है वह झिझक के साथ भाषा बोलती हैं।
By Sachin Kumar MishraEdited By: Updated: Thu, 15 Sep 2022 09:49 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, मुंबई। Maharashtra News: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने कहा कि आजादी के बाद देश की आर्थिकी समाजवादी सोच ने चौपट कर दी। पिछले आठ वर्षों से इसे पुन: पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है। वित्तमंत्री गुरुवार को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई (Mumabi) में एक मासिक पत्रिका के विशेष अंक का लोकार्पण करने के बाद उपस्थितजनों को संबोधित कर रही थीं। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव वर्ष में 'स्व 75 ग्रंथ' नामक इस विशेषांक में भारत की आंतरिक शक्तियों पर लेखों का संकलन किया गया है।
पूर्व सरकारों ने उद्यमिता को समर्थन देने के बजाय लाइसेंस-परमिट राज पर ही ध्यान दिया सीतारमण ने कहा कि सन 1700 में दुनिया की आमदनी में तत्कालीन भारत का हिस्सा 23.6 प्रतिशत हुआ करता था, लेकिन जब 1947 में देश स्वतंत्र हुआ तो यह हिस्सा घटकर 3.58 प्रतिशत पर आ चुका था। स्वतंत्रता के बाद भी देश की आर्थिकी को सुधारने का काम जिस तेजी से होना चाहिए था, वह समाजवादी सोच (सोशलिज्म) के कारण नहीं हो सका। उद्यमिता को समर्थन देने के बजाय लाइसेंस-परमिट राज पर ही ध्यान दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि 1991 तक हमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की मदद लेनी पड़ी और उसकी शर्तों पर चलने के लिए बाध्य होना पड़ा।
डीबीटी के जरिए लोगों को सीधे पूरी मदद पहुंचाई जा रही वित्तमंत्री ने कहा कि देश में बाजपेयी सरकार आने के बाद इसमें कुछ परिवर्तन आया। लेकिन उसके बाद हुए सत्ता परिवर्तन में तो आर्थिकी पूरी तरह तहस-नहस हो गई। 2014 के बाद से इसे पुन: पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा है। इन्हीं प्रयासों के तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए लोगों को सीधे पूरी मदद पहुंचाई जा रही है। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी खुद कह चुके थे कि मैं 100 पैसे भेजता हूं तो सिर्फ 15 पैसे नीचे तक पहुंचते हैं। उन्होंने कहा कि अब ऐसा नहीं है, लोगों तक पूरी मदद पहुंच रही है।
आठ साल से देश की आर्थिकी में व्यापक सुधार सीतारमण ने कहा कि देश की आर्थिकी को सुधारने के लिए जिस प्रकार के प्रयास पिछले आठ वर्षों में हो रहे हैं, उसी का परिणाम है कि हमारी आर्थिकी 10वें-11वें स्थान से अब ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवें स्थान पर आ गई है। यदि यही यदि ये प्रयास आजादी के तुरंत बाद शुरू कर दिए गए होते तो हम बहुत पहले ही यह उपलब्धि हासिल कर चुके होते।
'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' में अब 'सबका प्रयास' भी जोड़ने का समय उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए नारे 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' में दो शब्द और जोड़ते हुए कहा कि अब इसमें 'सबका प्रयास' भी जोड़ने का समय आ गया है। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना लेने के बाद अब अगले 25 वर्ष हमारे लिए 'अमृत काल' हैं। इस काल में भारत सबके सम्मिलित प्रयास से ही शिखर छू सकता है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री द्वारा दिए नारे 'जय जवान, जय किसान' में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जोड़े गए शब्दों 'जय विज्ञान' व 'जय अनुसंधान' को एक पटरी व 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास' को दूसरी पटरी करार देते हुए कहा कि इन दोनों समानांतर पटरियों पर चल कर ही भारत को सन बुलंदियों पर पहुंचाया जा सकता है।
वित्तमंत्री ने कहा, हिंदी बोलने में होती है झिझक प्रेट्र के अनुसार, सीतारमण ने कहा कि हिंदी (Hindi) बोलने से उन्हें ''कंपकंपी'' होती है और वह झिझक के साथ भाषा बोलती हैं। उन्होंने उन परिस्थितियों के बारे में भी बताया कि जिनके कारण यह स्थिति पैदा हुई है। सीतारमण ने कहा कि वह तमिलनाडु में पैदा हुईं और कालेज में पढ़ीं। वहां उन्होंने हिंदी के खिलाफ हिंसक विरोध भी देखा। सीतारमण ने कहा कि वयस्क होने के बाद एक व्यक्ति के लिए एक नई भाषा सीखना मुश्किल है, लेकिन वह उन्होंने अपने पति की मातृभाषा तेलुगु सीखी। उन्होंने स्वीकार किया वह प्रवाह में हिंदी नहीं बोल पातीं। हालांकि उन्होंने हिंदी में ही अपना भाषण दिया जो 35 मिनट से अधिक समय तक चला।
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