'दूसरों की बात भी सुनने का रखें साहस', CJI चंद्रचूड़ बोले- सिद्धांतों और मूल्यों पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नागरिकों से आग्रह किया है कि वे दूसरों की बात भी सुनने का साहस रखें। सीजेआई ने कहा कि उनकी पीढ़ी के लोग जब छोटे थे तो उन्हें सिखाया जाता था कि बहुत सारे सवाल न पूछें लेकिन अब समय बदल गया है। युवा अब सवाल पूछने और अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने से डरते नहीं हैं।
क्या कुछ बोले CJI चंद्रचूड़?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोगों की असली बुद्धिमत्ता और ताकत जीवन की कई प्रतिकूलताओं का सामना करने और विनम्रता और अनुग्रह के साथ अपने आसपास के लोगों को मानवीय बनाने की उनकी क्षमता को बनाए रखने में है। अधिकांश लोग समृद्ध जीवन के लिए प्रयास करते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इसकी प्रक्रिया मूल्य आधारित होनी चाहिए। सिद्धांतों और मूल्यों पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए, क्योंकि सफलता को न केवल लोकप्रियता से मापा जाता है, बल्कि उच्च उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता से भी मापा जाता है। लोगों को खुद के प्रति दयालु होना चाहिए और अपने अस्तित्व पर कठोर नहीं होना चाहिए।यह हमारे अपने 'प्रतिध्वनि कक्षों' (अपनी ही आवाज की गूंज सुनने वाले) को तोड़ने और दूसरों को सुनने का एक अवसर भी देता है। उन्होंने विनम्रता, साहस और सत्यनिष्ठा को जीवन यात्रा में अपना साथी बनाने की अपील भी लोगों से की।
जब CJI ने सावित्रीबाई फुले का किया जिक्र
यह भी पढ़ें: 'केशवानंद भारती का फैसला 10 भाषाओं में उपलब्ध', CJI बोले- समाज के सभी वर्ग तक पहुंचने के लिए बनाया गया था वेब पेज जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सावित्रीबाई फुले एक अतिरिक्त साड़ी लेकर स्कूल जाया करती थीं, क्योंकि ग्रामीण उन पर कचरा फेंकते थे। उन्होंने कहा कि लोगों को कभी भी अपना दिमाग बंद नहीं करना चाहिए। दूसरों की बात सुनने की क्षमता होनी चाहिए।उन्होंने हाल ही में एक इंस्टाग्राम रील देखी, जिसमें एक युवा लड़की अपने आवासीय क्षेत्र में सड़कों की खराब स्थिति पर चिंता जता रही है। जैसे ही मैंने वह रील देखी, मेरा मन वर्ष 1848 में चला गया, जब पुणे में लड़कियों का पहला स्कूल स्थापित किया गया था। इसका श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है, जिन्होंने हिंसक पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों के बावजूद शिक्षा को प्रोत्साहित किया।