सच के साथी सीनियर्स : मुंबई के सीनियर सिटिजन बने सच के साथी
विश्वास न्यूज अपने सच के साथी सीनियर्स अभियान के तहत शनिवार में कार्यक्रम किया। इस कार्यक्रम में कई वरिष्ठ नागरिक आए हुए थे। उन्हें फैक्ट चेकिंग क्यों जरूरी है वित्तीय धोखाघड़ी से कैसे बचें जैसे विषय के बारे में विस्तार से बताया गया। जागरण न्यू मीडिया के एडिटर-इन-चीफ और एग्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट राजेश उपाध्याय और विश्वास न्यूज की डिप्टी एडिटर देविका मेहता ने कार्यक्रम को संबोधित किया।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। जागरण न्यू मीडिया की फैक्ट चेकिंग टीम विश्वास न्यूज अपने 'सच के साथी सीनियर्स' अभियान के तहत शनिवार को मुंबई में थी। मुंबई के भारतीय विद्या भवन में मीडिया साक्षरता को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इससे पहले राज्य के नवी मुंबई और पुणे में भी ऐसा आयोजन किया जा चुका है।
मुंबई में हुए कार्यक्रम में शहर के वरिष्ठ नागरिकों को मीडिया साक्षरता, फैक्ट चेकिंग क्यों जरूरी है, वित्तीय धोखाघड़ी से कैसे बचें, जैसे विषय के बारे में विस्तार से बताया गया। कार्यक्रम को जागरण न्यू मीडिया के एडिटर-इन-चीफ और एग्जीक्यूटिव प्रेसिडेंट राजेश उपाध्याय और विश्वास न्यूज की डिप्टी एडिटर देविका मेहता ने संबोधित किया।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए राजेश उपाध्याय ने 'सच के साथी सीनियर्स' अभियान के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि विश्वास न्यूज के मीडिया साक्षरता कार्यक्रम का उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों को सोशल मीडिया पर वायरल हो रही फर्जी पोस्ट से बचाना है। वरिष्ठ नागरिक अपना काफी समय स्मार्टफोन पर बिताते हैं। ऐसे में उन्हें फर्जी पोस्ट या धोखाधड़ी वाले लिंक के जरिए आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों को सलाह दी कि हमेशा मजबूत पासवर्ड का इस्तेमाल करें।
प्रतिभागियों से रूबरू होते हुए राजेश उपाध्याय ने श्योर (SURE) कॉन्सेप्ट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार के झूठ, अफवाह, फर्जी सूचनाओं से बचाने में SURE की भूमिका महत्वपूर्ण है। कोई भी सूचना आपके पास आए, तो सबसे पहले SURE से इनश्योर हो जाएं। S का मतलब यहां See से है। मतलब कोई भी सूचना को सबसे पहले ध्यान से देखें। इसी तरह U का मतलब है - अंडरस्टैंड यानी समझें। फिर आता है R, आर से मतलब रीचेक से है। इसी तरह E का मतलब है- Execute अर्थात इसके बाद ही किसी सूचना को आगे बढ़ाएं या उपयोग में लें।
विश्वास न्यूज की देविका मेहता ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के नुकसान और फायदे बताते हुए टूल्स की मदद से बनाए जा रहे डीपफेक वीडियो और तस्वीरों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कई डीपफेक वीडियो का उदाहरण देते हुए कहा कि आजकल इस तरह के कई फर्जी वीडियो किसी प्रोडक्ट के प्रमोशन के लिए बनाए जा रहे हैं। ऐसे वीडियो को पहचानने के लिए उन्हें ध्यान से देखें। अक्सर इन वीडियो में कुछ खामियां होती हैं। जैसे- चेहरे के हावभाव बनावटी दिखेंगे या अंगुलियों की बनावट या संख्या कुछ अजीब हो सकती है।
ट्रेनिंग में देविका मेहता ने विस्तार से फैक्ट चेकिंग टूल्स और जेनेरेटिव एआई के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि यदि कोई भी सूचना आपको संदिग्ध लगती है, तो उसके बारे में कीवर्ड से गूगल पर ओपन सर्च किया जा सकता है। इससे उनके असली सोर्स तक पहुंचा जा सकता है। इससे आपको वायरल मैसेज की सच्चाई पता लग जाएगी। साथ ही उन्होंने उदाहरण के माध्यम से वायरल तस्वीरों को गूगल लेंस टूल की मदद से जांचना भी सिखाया।
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