स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयान से महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल, शिवसेना UBT ने टिप्पणी को बताया तिनके का सहारा
उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के एक बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति गरमा दी है। अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि सनातन धर्म में विश्वासघात एक बहुत बड़ा पाप है। उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है। शंकराचार्य के इस बयान पर शिवसेना (शिंदे) गुट के नेता एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य संजय निरुपम ने कहा कि शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी धार्मिक कम राजनीतिक ज्यादा हैं।
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का एक बयान महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। उद्धव ठाकरे और शिवसेना पर दिए गए उनके इस बयान को शिवसेना अपने लिए तिनके का सहारा मान रही है। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से उसके विरोधी दल उसे हिंदू विरोधी करार देते आ रहे हैं।
उद्योगपति मुकेश अंबानी के पुत्र अनंत अंबानी के विवाह समारोह में भाग लेने आए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सोमवार को उद्धव ठाकरे के बांद्रा स्थित आवास पर भी गए थे। वहां से निकलने के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि सनातन धर्म में विश्वासघात एक बहुत बड़ा पाप है। उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात हुआ है। जिस तरीके से विश्वासघात करके एक हिंदूवादी पार्टी को तोड़ा गया, उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, वह ठीक नहीं है। जब तब वह पुनः मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान नहीं हो जाता, तब तक हम सबके मन में पीड़ा और दर्द दूर नहीं हो सकता।
'शंकराचार्य सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु'
शंकराचार्य के इसी वक्तव्य पर आज शिवसेना (यूबीटी) प्रवक्ता संजय राउत ने प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि शंकराचार्य सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु हैं, और उन्हें अपनी बात रखने का अधिकार है। उन्होंने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान भी अपनी बात रखी थी, और कहा था कि राम मंदिर में राजनीतिक काम चल रहा है।संजय निरुपम ने दी शंकराचार्य के बयान पर प्रतिक्रिया
लेकिन शंकराचार्य के इसी बयान पर शिवसेना (शिंदे) गुट के नेता एवं पूर्व राज्यसभा सदस्य संजय निरुपम ने अपने एक्स एकाउंट पर एक लंबी पोस्ट लिखी है। उन्होंने सीधे शंकराचार्य पर निशाना साधते हुए लिखा है कि जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी धार्मिक कम, राजनीतिक ज्यादा हैं। उद्धव ठाकरे से मिलना उनका व्यक्तिगत फैसला हो सकता है। पर शिवसेना के अंदरूनी विवाद पर भाष्य करने से उन्हें बचना चाहिए था। यह उन्हें शोभा नहीं देता। निरुपम कहते हैं कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा, कौन नहीं, यह जनता तय करेगी, शंकराचार्य नहीं। बोलते-बोलते वह यह भी बोल गए कि जो विश्वासघात करेगा, वह हिंदू नहीं हो सकता। तो पहले तो यह तय होना चाहिए कि विश्वासघात किसने किया ?
निरुपम ने उद्धव ठाकरे पर साधा निशाना
निरुपम का इशारा 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद खुद उद्धव ठाकरे द्वारा किए गए विश्वासघात की ओर था। जब वह चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद भाजपा का साथ छोड़कर मुख्यमंत्री बनने के लिए कांग्रेस और राकांपा के साथ चले गए थे। उसके बाद से ही शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व एवं शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे के विचारों से दूर जाने का आरोप लगता रहा है।पार्टी को मिला मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन
हाल के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से उनकी पार्टी को मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला, उससे यह आरोप सिद्ध भी होता दिख रहा है। खुद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कुछ सप्ताह पहले शिवसेना के स्थापना दिवस समारोह में आंकड़ों के साथ बताया था कि जहां-जहां उद्धव ठाकरे का सीधा मुकाबला उनसे (शिंदे से) हुआ है, वहां-वहां वह भारी पड़े हैं। लेकिन मुंबई में मुस्लिम मतों के कारण ही उद्धव ठाकरे को अच्छी सफलता मिल सकी है। इस तरह के आरोपों के कारण उद्धव की बड़ी चिंता रही है, शिवसेना के प्रतिबद्ध कट्टर हिंदू मतदाता को अपने साथ जोड़े रखना। उन्हें लग रहा है कि शंकराचार्य का आशीर्वाद और वक्तव्य इस मामले में उन्हें सहारा दे सकता है।
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