Vande Bharat Express: आवागमन और परिवहन के साधन से विकास का द्वार बनता पश्चिम भारत
मुंद्रा पोर्ट से ईरान में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार पोर्ट की दूरी भी अधिक नहीं है। यानी फैलाया जा रहा संसाधनों का यह जाल देश के 50 जिलों को निर्यात हब बनाने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sat, 01 Oct 2022 11:07 AM (IST)
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। कुछ ही दिनों पहले की बात है, हम वेदांत-फाक्सकान परियोजना के महाराष्ट्र छोड़कर गुजरात जाने पर हाय-तौबा मचते देख चुके हैं। ये कंपनियां अपनी इकाइयां स्थापित करने के लिए छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखती हैं। क्योंकि यही छोटी-छोटी बातें उनके नफे-नुकसान को अरबों-खरबों में बदल देती हैं। महाराष्ट्र अब तक अपनी प्राकृतिक स्थिति के कारण ही उद्योग-व्यवसाय में झंडे गाड़ता आ रहा है। इसमें उसके लिए सबसे बड़ा सकारात्मक पक्ष समुद्री सीमाओं से उसका जुड़ाव होना ही रहा है। विदेशों से कच्चा माल मंगाना एवं जरूरत पड़ने पर तैयार माल भेजना उसके लिए आसान था।
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्य इसी सुविधा के अभाव में पिछड़ते रहे हैं। ये सारे राज्य ‘लैंडलाक’ राज्य हैं। यहां बाहर से कच्चा माल मंगाना और तैयार माल भेजना, दोनों ही खर्चीला सौदा साबित होते हैं। इसी वजह से ये राज्य पिछड़ते रहे और बीमारू प्रदेश के रूप में कुख्यात हो गए। सिर्फ यहां के मजदूर ही महाराष्ट्र, गुजरात या कोलकाता जाकर वहां की समृद्धि में हाथ बंटाते रहे, और गाहे-बगाहे वहां के ताने भी सहते रहे हैं।
गांधीनगर – मुंबई वंदेभारत ट्रेन
लेकिन अब आवागमन एवं परिवहन के साधन जैसे-जैसे बढ़ रहे हैं, पूरा पश्चिम भारत जहां विकास की धुरी बनता दीख रहा है, वहीं उत्तर के लैंडलाक राज्यों के लिए भी संभावनाएं खुलती दिखाई देने लगी हैं। तीन तरफ समुद्र से घिरी देश की आर्थिक राजधानी कही जानेवाली मुंबई की अपनी सीमाएं हैं। इसका विस्तार संभव नहीं है। इसलिए यहां बड़ी औद्योगिक इकाइयां लग नहीं सकतीं। इसके बावजूद मुंबई का अपना आकर्षण है। यहां का सामाजिक अनुशासन और ‘प्रोफेशनलिज्म’ राष्ट्रीय क्या, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भी लुभाता है। यही कारण है कि ये कंपनियां अपनी उत्पादन इकाइयां चाहे जहां लगाएं, वे अपने फ्रंट आफिस का एक पता मुंबई में रखना चाहती हैं। यह तभी संभव है, जब मुंबई से कम से कम 500 किलोमीटर दूरी वाले शहरों से इस महानगर तक आवागमन आसान हो सके। मुंबई में अभी भी बहुत बड़ी संख्या में लोग विरार, वापी, कर्जत, कसारा, बदलापुर और पुणे तक से सुबह आते हैं, और दिनभर काम करके शाम को अपने घर लौट जाते हैं। ये संभव होता है मुंबई की लोकल ट्रेनों के कारण, जिसे मुंबई की लाइफलाइन कहा जाता है। यदि आवागमन और परिवहन के यही साधन और अच्छे हो जाएं, तो लोग 150 के बजाय 500 किलोमीटर दूर से भी सुबह मुंबई आकर शाम को अपने घर लौट सकते हैं। शुक्रवार को शुरू हुई गांधीनगर – मुंबई वंदेभारत ट्रेन एवं भविष्य के लिए प्रस्तावित बुलेट ट्रेन ऐसे ही सपनों को साकार करने का काम कर सकती हैं।
देश की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। दो अलग राज्य बनने से पहले आज के गुजरात और महाराष्ट्र एक साथ बाम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करते थे। बाद में भाषाई आधार पर दो प्रांतों की रचना हुई। इन दोनों राज्यों की अपनी व्यावसायिक संस्कृति एवं खूबियां हैं। दोनों के पास लंबा समुद्री किनारा है। बुलेट ट्रेन और वंदे भारत जैसी द्रुतगति गाड़ियां इन दोनों राज्यों के बीच संपर्क सुगम कर सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बुलेट ट्रेन के कारण गुजरात के तीन बड़े व्यावसायिक शहर अहमदाबाद, सूरत और बड़ोदरा की दूरी आर्थिक राजधानी मुंबई से सिर्फ दो से तीन घंटे की हो जाएगी। बुलेट ट्रेन के 12 स्टेशनों के आसपास बहुत बड़े पैमाने पर उद्योग-व्यवसाय लगने के कारण यह पूरा क्षेत्र देश की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बन सकता है। बुलेट ट्रेन परियोजना को पूर्ण करने के लिए बनाए गए नेशनल हाई-स्पीड रेल कार्पोरेशन लि. (एनएचएसआरसीएल) के अधिकारियों का कहना है कि बुलेट ट्रेन शुरुआती दिनों में सुबह छह बजे से रात 10 बजे तक अहमदाबाद के साबरमती स्टेशन से मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स स्टेशन के बीच प्रतिदिन 70 फेरे लगाएगी। यानी 35 फेरे साबरमती से मुंबई की ओर, और 35 फेरे मुंबई से साबरमती की ओर। लेकिन धीरे-धीरे इन फेरों की संख्या बढ़ती जाएगी।
अब तक की योजना के अनुसार 2053 तक फेरों की कुल संख्या 70 से बढ़कर 105 तक हो जाएगी। यानी बुलेट ट्रेन शुरू होने के बाद शुरुआती दौर में सुबह-शाम कार्यालयीन अवधि में प्रत्येक 20 मिनट पर दोनों ओर से ये ट्रेन छूटेगी, तो दिन की बाकी अवधि में हर आधे घंटे पर। लेकिन भविष्य में दो फेरों के बीच की अवधि और कम होती जाएगी। शुरुआत में बुलेट ट्रेन 10 डिब्बों की होगी, जबकि 2053 तक यह 16 डिब्बों की हो चुकी होगी। ये बुलेट ट्रेनें दो तरह की होंगी। एक रैपिड, दूसरी रेगुलर। रैपिड यानी अति तीव्र गति वाली। ये ट्रेनें अहमदाबाद से मुंबई पहुंचने में सिर्फ 2.07 घंटे का समय लेंगी, और अपने मार्ग में सिर्फ बड़ोदरा और सूरत में रुकेंगी। जबकि सामान्य बुलेट ट्रेन यही दूरी 2.58 मिनट में तय करेगी, और साबरमती एवं बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स के बीच अन्य सभी 10 स्टेशनों पर भी रुकेगी। बुलेट ट्रेन की गति 220 किलोमीटर प्रति घंटे से 320 किमीमीटर प्रति घंटे के बीच होगी।
बुलेट ट्रेन की इस गति का लाभ यह होगा कि इसके सभी स्टेशनों के आसपास व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ जाएंगी। राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने फ्रंट आफिस मुंबई में खोलकर अपनी उत्पादन इकाइयां या बड़े आफिस मुंबई से 200-300 किलोमीटर दूर रखकर भी आसानी से अपना काम कर सकेंगी। उन्हें यह दूरी अखरेगी नहीं। इसके अलावा जल्दी ही तैयार होने जा रहे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरीडोर के कारण यह पूरा क्षेत्र उत्तर भारत के राज्यों से भी जुड़ जाएगा। यानी भविष्य में महाराष्ट्र का उत्तरी एवं गुजरात का दक्षिणी भाग सम्मिलित रूप से देश की औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र बनकर उभरेगा। एक समय देश के निर्यातकों के पास मुंबई पोर्ट ट्रस्ट एवं जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। लेकिन गुजरात के मुंद्रा पोर्ट ने उनके लिए एक नया विकल्प दे दिया है। मुंद्रा पोर्ट से ईरान में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे चाबहार पोर्ट की दूरी भी अधिक नहीं है। यानी फैलाया जा रहा संसाधनों का यह जाल देश के 50 जिलों को निर्यात हब बनाने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है।
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