'नो मीन्स नो', बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- नाबालिग लड़की के मना करने के बाद बार-बार प्यार का इजहार भी यौन उत्पीड़न के समान
Bombay High Court बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने कहा कि अगर नाबालिग लड़की साफ तौर पर मना कर देती है और उसके बावजूद एक युवक लगातार उसका पीछा करता है तो ये पॉस्को अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के बराबर है। अदालत ने अमरावती के एक मामले पर फैसला सुनाते हुए ये टिप्णी की और कहा कि ये आचरण काफी गलत है।
जागरण डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अगर नाबालिग लड़की साफ तौर पर मना कर देती है और उसके बावजूद एक वयस्क लगातार उसका पीछा करता है तो ये यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉस्को) अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के बराबर है।
अमरावती के मामले पर की टिप्पणी
दरअसल, यह मामला अमरावती के एक 28 वर्षीय युवक से जुड़ा था, जिसे 13 वर्षीय स्कूली छात्रा को बार-बार अपने प्यार का इजहार करने और यह दावा करके परेशान करने का दोषी पाया गया कि वह उससे बहुत प्यार करेगा।
क्या बोले जज?
न्यायमूर्ति गोविंदा सनप ने युवक की अपील को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आरोपी के व्यवहार से हानिकारक इरादे का पता चलता है। व्यक्ति ने बार-बार पीड़िता का पीछा किया, उसे रिश्ते में लाने की कोशिश की, अपने प्यार का इजहार किया और दावा किया कि वह अंततः उसकी भावनाओं को स्वीकार कर लेगी।
अदालत ने आचरण को बताया गलत
अदालत ने इस आचरण को काफी गलत बताया। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पीड़िता की गवाही द्वारा प्रदान किए गए सबूत यह स्थापित करने के लिए पर्याप्त माने गए कि आरोपी ने लड़की के साफ कहने के बावजूद व्यक्तिगत संबंध बनाने के इरादे से उसका उत्पीड़न किया।अदालत ने कहा कि सबूत पोक्सो अधिनियम की धारा 11 उप-खंड (VI) के तहत यौन उत्पीड़न के आरोपों का समर्थन करते हैं। न्यायमूर्ति सनप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोपी के कार्यों से उसके अनुचित इरादे स्पष्ट रूप से झलकते हैं।
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