मिलता है छोटी रकम में बड़ा मुनाफा, जानिए क्या है डेरिवेटिव मार्केट
डेरिवेटिव एक कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जिनकी कीमत किसी दिए गए खास एसेट पर निर्भर होती है. ये एसेट stock commodity currencyindex आदि कुछ भी हो सकते हैं.डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट छोटी अवधि के फाइनेंशिल इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जो एक सीमित अवधि के लिए मान्य होते हैं.
By Saurabh VermaEdited By: Updated: Thu, 14 Jul 2022 12:09 PM (IST)
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। मीडिया में आने वाली खबरों में आप अक्सर पड़ते होंगे कि पेट्रोल और डीजल महंगा होने वाला है क्योंकि कच्चा तेल महंगा हो गया है. या फिर पेट्रोल और डीजल सस्ता होने वाला है क्योंकि कच्चा तेल सस्ता हो गया है. इन खबरों की वजह से आपको ये अंदाजा हो ही गया होगा कि पेट्रोल और डीजल के भाव कच्चे तेल के भाव पर निर्भर होते हैं. ऐसा सिर्फ पेट्रोल या डीजल में ही नहीं होता कई फाइनेंशियल इस्ट्रूमेंट्स भी होते हैं जिनका भाव किसी दूसरी कमोडिटी या एसेट्स के आधार पर बदलता हैं. इन इंस्ट्रूमेंट्स को Derivatives कहते हैं और जिस मार्केट में इनका कारोबार होता है उन्हें डेरिवेटिव मार्केट कहते हैं. आइये आज हम आपको इस बाजार के बारे कुछ जरूरी जानकारी देते हैं.
आज ही शुरू करें अपना शेयर मार्केट का सफर, विजिट करें- https://bit.ly/3n7jRhXडेरिवेटिव क्या होते हैं?
डेरिवेटिव एक कॉन्ट्रैक्ट होते हैं जिनकी कीमत किसी दिए गए खास एसेट पर निर्भर होती है. ये एसेट stock, commodity, currency,index आदि कुछ भी हो सकते हैं.डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट छोटी अवधि के फाइनेंशिल इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जो एक सीमित अवधि के लिए मान्य होते हैं. यानि एक तारीख के बाद ये रद्द हो जाते हैं जिसे कॉन्ट्रैक्ट की एक्सापायरी माना जाता है. इन कॉन्ट्रैक्ट का कारोबार derivative market में किया जाता है. देश की जानी मानी कंपनी 5paisa डेरिवेटिव में कारोबार करने में मदद करती है. इससे जुड़ी सटीक जानकारी भी ये कंपनी मुहैया कराती है.
डेरिवेटिव कितने तरह के होते हैं?
Derivative मार्केट में 4 तरह डेरिवेटिव होते हैं. जिन्हें फारवर्ड, फ्यूचर, ऑप्शंस और स्वैप कहते हैं. फॉरवर्ड दो पक्षों के बीच एक खास एग्रीमेंट होता है. जिसमें शर्तें अलग अलग स्थितियों के आधार पर अलग अलग होती हैं. क्योंकि शर्तों के कोई मानक नहीं होते और ये अलग अलग सौदों के हिसाब से अलग अलग होते हैं. इसलिए इन्हें एक्सचेंज में खरीद बेच नहीं सकते. इनकी बिक्री ओवर द काउंटर होती है. वहीं फ्यूचर और ऑप्शन मानकों के तहत तैयार किये कॉन्ट्रैक्ट होते हैं.
इसलिए इनको एक्सचेंज में खरीदा या बेचा जा सकता है. फ्यूचर एक मानकीकृत समझौता है जिसमें शर्तों को पूरा करने का बाध्यता जुड़ी होती है. वहीं ऑप्शन भी एक कॉन्ट्रैक्ट होता है लेकिन इसमें खरीदार के साथ बाध्यता नहीं जुड़ी होती है. ऑप्शन दो तरह के होते हैं-कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन. वहीं स्वैप कॉन्ट्रैक्ट दो पक्षों के बीच पहले से तय फॉर्मूले के आधार पर कैश फ्लो का आदान प्रदान करने के लिए किया जाता है. सीधे शब्दों में स्वैप एक सिक्योरिटी को दूसरी सिक्योरिटी में बदलने की सुविधा देता है. इसमें इंट्रेस्ट रेट और करंसी स्वैप शामिल होते हैं. डेरिवेटिव की बारिकियों को जानने और कब कैसे और कहां पर जाकर डेरिवेटिव कारोबार करना है, इसकी जानकारी 5paisa दे रहा है.
क्यों जरूरत है डेरिवेटिव?Derivatives कॉन्ट्रैंक्ट भविष्य में किसी एसेट में होने वाले तेज उतार-चढ़ाव के जोखिम से सुरक्षा देता है. उदाहरण के लिए अगर किसी कारोबारी को लगता है कि आने वाले समय में किसी कमोडिटी में तेज बढ़त हो सकती है और उसे उसी समय इस खास commodity की जरूरत हो जब कीमतों में तेजी की आशंका हो तो वो पहले ही कॉन्ट्रैक्ट कर कमोडिटी की सप्लाई को सुनिश्चित कर सकता है वो भी अपने लिए अनुकूल कीमतों पर. इससे कारोबारी भविष्य में कीमतों में तेजी से खुद को सुरक्षित कर सकता है.
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