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युवा पंखो पर हिंदी की उड़ान

युवा लेखक बखूबी जानते हैं कि इन दिनों हिंदी साहित्य का बाजार बड़ी तेजी से बढ़ा है। यही वजह है कि अलग-अलग पेशे के अंग्रेजी माहौल में काम करने वाले युवा लिख रहे हैं हिंदी में...

By Rahul SharmaEdited By: Updated: Wed, 14 Sep 2016 08:34 AM (IST)
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हिंदी दिवस के अवसर पर दो नई किताबें बाजार में आएंगी। एक तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पहली महिला क्राइम रिपोर्टर वर्तिका नंदा की ‘तिनका-तिनका डासना’ और दूसरी हिंदी के बेस्टसेलर लेखक दिव्य प्रकाश दुबे की ‘मुसाफिर कैफे’। दोनों किताबें अलग-अलग पृष्ठभूमियों पर हैं। ‘मुसाफिर कैफे’ में शहर में रहने वाले दो युवाओं सुधा और चंदर की अपने-अपने लक्ष्य को पाने की जद्दोजहद है, वहीं ‘तिनकातिनका डासना’ के जरिए कैदियों की सृजनात्मकता को पेंटिंग, किताब, कैलेंडर, गाने, कविता आदि के बहाने सामने लाने का प्रयास किया गया है। इन दिनों युवा अलग-अलग क्षेत्रों, यहां तक कि पूरी तरह अंग्रेजी माहौल में काम कर रहे हैं लेकिन वे मातृभाषा हिंदी में रचनात्मक पहचान बना रहे हैं। वे न सिर्फ शहरों-गलियों की कहानियां लिख रहे हैं, बल्कि रिपोर्ताज, आलोचना, यात्रा वृत्तांत पर भी अपनी कलम चला रहे हैं। वरिष्ठ लेखक उनकी इस बात की सराहना करते हैं। अंग्रेजी के प्रकाशक भी उन्हें हाथों-हाथ ले रहे हैं।

प्रयोगधर्मिता को सलाम
विमला पाटिल के साथ लिखी वर्तिका नंदा की किताब ‘तिनका-तिनका तिहाड़’ लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल है। वर्तिका नंदा हिंदी को आत्मा और मन की भाषा मानती हैं। वे बड़े जनसमुदाय के लिए काम करना चाहती हैं, इसलिए उन्होंने ‘तिनका-तिनका’ श्रंखला की अगली किताब ‘तिनका-तिनका डासना’ अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखी है। वर्तिका वही काम पसंद करती हैं, जो मुश्किल हो और जिसकी अपनी चुनौतियां भी हों। वे कहती हैं कि जीवन तभी सार्थक होता है जब हम नजरअंदाज किए जाने वाले विषयों पर लिखते हैं। यह ऐसी किताब है, जो रिपोर्टिंग बेस्ड है। वर्तिका कहती हैं, ‘इन दिनों अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे युवा बिल्कुल भिन्न विषयों पर लिख रहे हैं। यह उनकी प्रयोगधर्मिता को दिखाता है। दरअसल, युवाओं को भीड़ के बीच केंद्रबिंदु तलाशने की कला आती है।’ इसकी अगली व तीसरी श्रंखला ‘तिनका-तिनका आगरा’ आगरा जेल की पृष्ठभूमि पर लिखी जाएगी।

हिंदी लेखन से बनी पहचान
लेखक होने के साथ ही एक टेली कम्युनिकेशन कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर दिव्य प्रकाश दुबे कहते हैं, ‘पिछले तीन- चार सालों में एक नया निष्कर्ष सामने आया है कि हिंदी में लिखकर भी पाठकों के बीच पहचान बनाई जा सकती है। इससे आत्मविश्वास पैदा हुआ है। दरअसल, एमएनसी कंपनीज में काम करने वाले युवा अंग्रेजी में ई-मेल कर रहे हैं और प्रजेंटेशन दे रहे हैं लेकिन उनकी जुबान पर हिंदी होती है। जिस माहौल और परिवेश से वे आते हैं, वह हिंदी है।’ दिव्य बताते हैं कि आज से दस साल पहले ऐसा नहीं था और अब तो युवाओं के पास बताने के लिए भी बहुत कुछ है।

बिकते हैं नए प्रयोग
युवा लेखक जानते हैं कि प्रयोग ही बिकता है। दिव्य जहां अपनी कहानियों को यूट्यूब पर सुना रहे हैं, वहीं वर्तिका अपनी किताब को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने लिखने के लिए भी ऐसे विषय का चुनाव किया, जो तिनके के समान है लेकिन आंखों को परेशान कर देता है। वर्तिका कहती हैं, ‘मैं उन लोगों के लिए काम कर रही हूं, जिनका क्षेत्र भाषाई सरोकारों से कहीं आगे है। यह कटा हुआ तबका है लेकिन जेल में सबसे अधिक हिंदी ही बोली जाती है।’ दिव्य कहते हैं, ‘मैंने ‘मुसाफिर कैफे’ में एक नया प्रयोग किया है। 60-70 प्रतिशत किताब डायलॉग फॉर्म में है। कंटेंट ही नहीं, स्टाइल में भी एक्सपेरिमेंट होना चाहिए। आजकल जो पढ़ने वाले लोग हैं, वे हमेशा कुछ नया तलाशते रहते हैं। हमारा मुकाबला किताबों से नहीं, बल्कि सिनेमा और व्हाट्सएप्प से है।’

सभी के पास हैं कहानियां
हिंदी अब युवा हाथों में आ गई है। सबसे अहम बात यह है कि कुछ लिखने पर सोशल मीडिया से भी तत्काल प्रतिक्रिया मिलती है। कहानियां तो सबके पास होती हैं। जब आप मेट्रो में चढ़ते हैं, तो आपके साथ कुछ न कुछ रोज घटित होता है। आप उच्च तकनीक से लैस फोन निकालकर वहीं लिखकर शेयर कर देते हैं। ‘टिम-टिम तारों के अक्स’ कविता संग्रह लिखने वाले संजय व्यास कहते हैं, ‘अब बंद डायरी का जमाना नहीं रहा। सब कुछ खुला है। सोशल मीडिया पब्लिक डोमेन में शामिल है। लाइक और कमेंट से लेखक को संबल मिलता है।’ अब हिंदी में लिखने वालों की प्रोफाइल भी अलग है। कवयित्री पुष्पलता कानून विशेषज्ञ हैं, तो सुनीता शानू सफल व्यवसायी हैं। वहीं रजनी गुप्त बैंक में पदाधिकारी हैं। भिन्न-भिन्न व्यवसायों से जुड़ी ये लेखिकाएं अलग-अलग जगहों पर रहती हैं लेकिन सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी रचनाओं को दिल्ली तक पहुंचाती हैं। कुछ रचनाकार जैसे शिखा वाष्र्णेय, मोहन राणा, दीपक मशाल आदि विदेश में रहते हैं लेकिन उनकी कृतियां इंटरनेट के माध्यम से भारत के पाठकों तक पहुंच रही हैं।
वरिष्ठों की मिली सराहना
प्रसिद्ध लेखक और आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी कहते हैं, ‘इन दिनों युवाओं के पास कहानियों का भंडार है। वे नए-नए विचारों पर न सिर्फ कहानियां, बल्कि यात्रा वृत्तांत और आलोचना भी लिख रहे हैं।’ तो फिर क्या ताज्जुब कि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे नीलोत्पल मृणाल ने ‘डार्क हॉर्स’ लिखकर-सामाजिक और पारिवारिक परिस्थितियों पर तंज कस कर-साहित्य अकादमी का युवा लेखन पुरस्कार प्राप्त किया, वहीं पत्रकार योगिता यादव को ‘राजधानी के भीतर’ कहानी में एक निम्न स्त्री के संघर्ष को रेखांकित करने के लिए राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान मिला। जेंडर बराबरी के लिए पूरे भारत की यात्रा कर रहे राकेश सिंह कहते हैं, ‘हिंदी रचना संसार हिंदी विभागों से मुक्ति पा गया है।’ यह पेशेवर तालीमशुदा पीढ़ी उन परिवारों से आती है, जिनके यहां हिंदी पठन-पाठन की रवायत रही है। ‘लोटपोट’ और ‘चाचा चौधरी’ से लेकर ‘पंच परमेश्वर’, ‘ठेस’, ‘मैला आंचल’, ‘कसप’, ‘सारा आकाश’, ‘तमस’ और ‘राग दरबारी’ जैसी रचनाओं से इनकी भेंट हिंदी में हुई। हमउम्र युवाओं की तरह ही बढ़िया लाइफस्टाइल और समाज में अपने व परिवार के मान के फेर में रचनाकारों का यह समूह इन पेशों में आया लेकिन मूल रूप से यह हिंदी में सोचता है। हिंदी के इतर अन्य भारतीय भाषाओं के संदर्भ में भी यही बात देखी जा सकती है। मैनेजर पांडेय कहते हैं, ‘युवाओं के पास सूचनाओं का भंडार है। वे न सिर्फ इन सूचनाओं
का प्रयोग करते हैं, बल्कि पाठकों को भी इससे अवगत कराते हैं।’

हिंदी का विस्तृत बाजार
अंग्रेजी का प्रमुख प्रकाशन वेस्टलैंड हिंदी में किताबों की बिक्री को देखते हुए 2011 से अंग्रेजी नॉवेल्स के हिंदी अनुवाद प्रकाशित कर रहा है। इसने हिंदी में मौलिक सामग्री को प्रकाशित करने का बीड़ा भी उठाया है। वेस्टलैंड के सीईओ गौतम पद्मनाभन कहते हैं, ‘देश की पचास प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या की मातृभाषा हिंदी है। यह एक ऐसा मार्केट है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। संभावनाओं और क्षमताओं को देखते हुए ही मौलिक हिंदी कंटेंट को प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया।’
स्मिता