जानिए दशहरे वाले दिन रावण के पैतृक गांव में क्या होता है
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख
नोएडा। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। साल में दो बार मेला भी लगता है।
खास बात यह है कि बिसरख गांव में न ही रामलीला का मंचन होता है और न ही रावण का पुलता फूंका जाता है। इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है। जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है।
बिसरख में शिव मंदिर के पुजारी कृष्णादास का कहना है कि 60 साल पहले इस गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। उस दौरान गांव में एक मौत हो गई। इसके चलते रामलीला अधूरी रह गई। ग्रामीणों ने दोबारा रामलीला का आयोजन कराया, उस दौरान भी रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई। वह लीला भी पूरी नहीं हो सकी। तब से गांव में रामलीला का आयोजन नहीं किया जाता और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है।
आज भी गांव का एक बड़ा तबका दशानन के कारण गौरवान्वित महसूस करता है। उसका तर्क है कि रावण ने उस जमाने में लंका पर विजय पताका फहराकर राजनैतिक सूझबूझ और पराक्रम का परिचय दिया था। यहां यह माना जाता है कि रावण ने राक्षस जाति का उद्धार करने के लिए सीता का हरण किया था। इसके अलावा दुनिया में कोई ऐसा साक्ष्य नहीं है, जब रावण ने किसी का बुरा किया हो। यह कहना है अशोकानन्द जी महाराज का। ये बिसरख में बन रहे रावण मंदिर की देखरेख कर रहे हैं।