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विंध्‍याचल मंदिर

पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है। मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल की देवी मां विंध्यव

By Edited By: Updated: Thu, 07 Jun 2012 01:28 PM (IST)
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पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है। मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल की देवी मां विंध्यवासिनी।विंध्याचल की पहाडिय़ों में गंगा की पवित्र धाराओं की कल-कल करती ध्वनि, प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती है। त्रिकोण यंत्र पर स्थित विंध्याचल निवासिनी देवी लोकहिताय, महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी देवी विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का नाश करने वाली भगवती यंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। कहा जाता है कि जो मनुष्य इस स्थान पर तप करता है, उसे अवश्य सिद्वि प्राप्त होती है। यहां पर संकल्प मात्र से उपासकों को सिद्वि प्राप्त होती है। इस कारण यह क्षेत्र सिद्व पीठ के रूप में विख्यात है। विध्य पर्वत श्रृंखला []मिरजापुर, उ.प्र.] के मध्य पतित पावनी गंगा के कंठ पर विराजमान मां विंध्यवासिनी देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है विंध्याचल। सबसे खास बात यह है कि यहां तीन किलोमीटर के दायरे में तीन प्रमुख देवियां विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि तीनों देवियों के दर्शन किए बिना विंध्याचल की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। लगभग सभी पुराणों के विंध्य महात्म्य में इस बात का उल्लेख है कि 51 शक्तिपीठों में मां विंध्यवासिनी ही पूर्णपीठ है। कहते हैं कि सच्चे दिल से यहां की गई मां की पूजा कभी बेकार नहीं जाती। हर रोज यहां हजारों लोग मत्था टेकते हैं और देवी मां का पूजन जय मां विंध्यवासिनी के उद्घोष के साथ करते हैं।