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टर्निंग प्‍वाइंट: उद्यमिता को मिले बढ़ावा, उच्‍च शिक्षण संस्‍थान और इंडस्‍ट्री भी इसके लिए आएं आगे

Turning Point देश में स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा मिलने से युवा रोजगारप्रदाता बनने की राह पर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। हालांकि उन्हें कौशलयुक्त बनाने में शिक्षण संस्थानों के साथ इंडस्ट्री को भी मिलकर कदम बढ़ाना होगा...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 10 Jun 2022 05:55 PM (IST)
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यह पहल खुद युवाओं की तरफ से भी होनी चाहिए।

सीके रंगनाथन। स्टार्टअप इंडिया जैसी सरकार की नई योजनाओं से निश्चित रूप से युवाओं की मानसिकता में बदलाव देखा जा रहा है। सरकार की इन योजनाओं ने युवाओं को नौकरी करने के बजाय खुद के लिए और दूसरों के लिए रोजगार पैदा करने की ओर प्रेरित किया है। आज के युवाओं में यह स्पष्टता भी है कि उन्हें अपनी मदद खुद करनी है। सरकार की ओर से उद्यमियों को विभिन्‍न रूपों में संरक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। हालांकि, हर कोई जो नौकरी प्रदाता बनना चाहता है, वह संभव भी नहीं है। क्योंकि बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बहुत है। ऐसे में हर कोई नहीं, केवल कुछ ही लोग नौकरी देने वाले हो सकते हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से गिग इकोनामी का चलन बढ़ने से अब ऐसी संभावनाएं ज्‍यादा बढ़ गई हैं। इस अवसर ने रोजगार तलाश रहे युवाओं के लिए तेजी से बढ़ते स्टार्टअप और उनके भागीदारों के साथ अनुबंध कार्य करके स्वरोजगारी बनने के तमाम विकल्‍प प्रदान कर दिये हैं। देखा जाए तो आज की तारीख में लाखों की संख्‍या में भारतीय युवा डिलीवरी और ट्रांसपो‍र्टेशन कंपनियों के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं।

अगले दस वर्षों में बदलाव का स्‍वरूप : सरकार की नीतियों और पहल को देखते हुए अगले दस वर्षों में हमें कई तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं। सरकार की जो भी नीतियां हैं, वे सभी स्वावलंबन की अवधारणा से ही किसी न किसी रूप में जुड़ी हुई हैं, जिसका एक स्पष्ट उद्देश्य यही है कि घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए और आयातित वस्तुओं पर से निर्भरता कम की जाए। मेरा यही मानना है कि अगले दस वर्षों में, यदि सब कुछ ठीक रहा, तो भारत दुनिया का एक बड़ा मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेंटर बन सकता है। इससे भारतीय युवाओं के लिए अपना कारोबार शुरू करने या अच्छे वेतन वाली नौकरी तलाशने में ज्‍यादा आसानी होगी।

स्टार्टअप उद्योग में यूनिकार्न का बूम : भारत के स्टार्टअप उद्योग में यूनिकार्न बूम युवाओं के लिए नवाचार करने और व्यवसायों को स्‍थापित करने या इसमें हाथ आजमाने के एक बड़े अवसर के रूप में देखा जा सकता है। अच्‍छी बात यह है कि स्टार्टअप अग्रदूतों की सफलता डिजिटल रूप से साक्षर भारतीय युवाओं के बीच एक मी-टू आंदोलन को प्रेरित कर रही है। यह आंदोलन छोटे शहरों और कस्बों में फैल रहा है और यह भारत जैसी दुनिया की सर्वाधिक युवा आबादी वाले देश के लिए एक अच्छा संकेत है। बस जरूरत है स्टार्टअप बनाने, फंड की व्यवस्था करने और उन्हें बढ़ाने के लिए आवश्यक क्षमता प्रदान करने की। स्टार्टअप संस्थापक जिन्होंने अरबों रुपये बनाए हैं, वे अब नये क्षेत्रों की तलाश में हैं। वे नये स्टार्टअप संस्थापकों को वित्त पोषण और सलाह देने के लिए भी आगे भी आ रहे हैं। मुझे लगता है कि स्टार्टअप्स में रुचि बढ़ाने के लिए युवाओं को प्रोत्‍साहित करने के अलावा उन्हें समर्थन भी देना होगा। यह पहल खुद युवाओं की तरफ से भी होनी चाहिए।

स्‍कूल-कालेज की भूमिका महत्‍वपूर्ण: उद्यमिता दृष्टिकोण विकसित करने के लिए स्कूलों/कालेजों/विश्वविद्यालयों की भूमिका बहुत महत्‍वपूर्ण है। हालांकि भारत की सामाजिक और आर्थिक विरासत भी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए बहुत अनुकूल नहीं है। ऐसे में जन शिक्षा के माध्यम से युवाओं को इस ओर प्रेरित किये जाने की आवश्‍यकता है। सभी पृष्ठभूमि के परिवारों के युवाओं में वित्त, उद्योग, व्यापार और प्रबंधन की संस्कृति पैदा करनी होगी। जैसा कि देखा भी जा रहा है कि आजकल व्यवसाय की जानकारी और उद्यमिता पैसा और स्‍टेटस अर्जित करने का सबसे सशक्‍त माध्‍यम बन गए हैं। ऐसे में जाहिर है व्‍यवसायगत कौशलों की मांग बढ़ रही है और आपूर्ति बनाए रखने की कोशिश भी चल रही है। उद्यमिता कौशल के बढ़ते बाजार की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा इस दिशा में काफी हद तक सजग प्रयास भी किये जा रहे हैं।

प्रबंधन शिक्षा बदलाव की ओर: बदलती औद्योगिक आवश्यकताओं और उन्नत होती प्रौद्योगिकी की उपयोगिता को देखते हुए बेहतर गुणवत्ता वाले बी-स्कूलों द्वारा बहुत सारे बदलाव किए गए हैं, क्योंकि वे अब उभरते व्यावसायिक माडल, व्यावसायिक प्रौद्योगिकियों और प्रबंधन तकनीकों पर माड्यूल और पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं। इन स्‍कूलों में तकनीकी प्रक्रियाओं को सीखने के विकल्प बढ़ाए जा रहे हैं, खासकर डाटा एनालिटिक्स और डिजिटल मार्केटिंग के क्षेत्रों में काफी काम हो रहा है। फिर भी, जिस तरह से व्यवसाय की दुनिया लगातार बदल रही है, संस्थानों को भी व्यावसायिक नवाचार को बनाए रखने के लिए अपने पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को लगातार उन्नत करते रहने की आवश्यकता है। एजुकेशन और इंडस्‍ट्री के बीच ज्‍यादा से ज्‍यादा निकटता लाने के प्रयास लगातार चल रहे हैं। दोनों के बीच की खाई को पाटने की जरूरत अब आ पड़ी है, तभी जाब रेडी और व्‍यवसायिक स्किल के साथ युवाओं की नई फौज तैयार हो सकेगी। इस दिशा में पहल उद्योगों की तरफ से होनी चाहिए।

-सीके रंगनाथन

प्रेसिडेंट, एआइएमए एवं

चेयरमैन, केविनकेयर