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असली सफलता उस दिन होगी, जब मैं पूरे विश्व के ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट के जरिये खुशी दे पाऊंगी- दिशि सोमानी

जब मैं ग्राहक को एक क्वालिटी डिजाइन की ज्वेलरी डिलिवर करती हूं तो उसमें सबसे ज्यादा संतुष्टि मिलती है। हां असली सफलता उस दिन होगी जब मैं पूरे विश्व के ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट के जरिये खुशी दे पाऊंगी।‘

By Sanjay PokhriyalEdited By: Fri, 08 Jul 2022 05:06 PM (IST)
असली सफलता उस दिन होगी, जब मैं पूरे विश्व के ग्राहकों को अपने प्रोडक्ट के जरिये खुशी दे पाऊंगी- दिशि सोमानी
सक्सेस मंत्रा: दिल की सुनकर उतरीं बिजनेस में- दिशि सोमानी

अंशु सिंह। बिजनेस के दांव-पेंच से वह परिचित नहीं थीं। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी कारोबार की नहीं थी। लेकिन दिशि सोमानी को आर्ट से गहरा लगाव था। खासकर गहनों में दिलचस्पी थी। इसलिए पिता के सचेत करने के बावजूद उन्होंने उद्यमिता को आजमाने का निर्णय लिया। 2015 में महज पांच हजार रुपये से एक नई शुरुआत की। आज उनके द्वारा शुरू की गई कंपनी ‘दिशिजज्वेल्स’ पारंपरिक एवं आधुनिक ज्वेलरी की डिजाइनिंग और निर्माण दोनों कर रही है। इनकी ज्वेलरी की मांग देश और विदेश दोनों में है।

मध्य प्रदेश का ग्वालियर अपनी विविध संस्कृति एवं हेरिटेज के लिए जाना जाता है। यहीं की रहने वाले दिशि बचपन से अपने घर में कारीगरों को आते-जाते देखा करती थीं। ये कारीगर दादी एवं परिवार की अन्य महिलाओं के लिए गहने बनाते थे। दिशि तमाम गहनों को बेहद बारीकी से देखा करती थीं। इस तरह उनकी ज्वेलरी मेकिंग में रुचि पैदा हुई। वह बताती हैं, ‘मेरे पिता जी आइआइटी से बीटेक ग्रेजुएट और आइआइएम अहमदाबाद से पढ़ाई करने के बाद बिजनेस कर रहे थे। वे एक सफल उद्यमी हैं। लेकिन मैं कला प्रेमी रही हूं। क्रिएटिविटी का यह गुण और कला की समझ मुझे मेरी मां से मिली है, जो खुद एक पेशेवर आर्टिस्ट रही हैं। मैंने स्कूल की शुरुआती पढ़ाई ग्वालियर एवं दिल्ली से की है। शुरू में मैं पिता जी के नक्शे कदम पर चलते हुए एमबीए करना चाहती थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकाम (आनर्स) करने के बाद आइएमटी दुबई से एमबीए किया। तत्पश्चात् आइसीआइसीआइ बैंक में जाब लग गई।’

स्क्रैच से की बिजनेस की शुरुआत: उद्यमिता में आने के अपने निर्णय के बारे में दिशि बताती हैं, ‘बैंक की नौकरी करते हुए अकसर एक असंतुष्टि का भाव रहता था कि क्या मैं जो कर रही हूं वह सही है? वहां कोई क्रिएटिविटी नहीं थी। कला प्रेमी होने के नाते मैं कुछ अपना शुरू करना चाहती थी, ताकि मैनेजमेंट स्किल्स का उपयोग करने के साथ-साथ अपने क्रिएटिव सोच के बीच एक संतुलन बना सकूं। पिता नहीं चाहते थे मैं बिजनेस करूं, क्योंकि उसमें अनेक प्रकार के जोखिम होते हैं। नौकरी में ऐसा कोई खतरा नहीं होता है। लेकिन मेरे भीतर कुछ और ही चल रहा था। एक मौका देना चाहती थी खुद को, इसलिए मैंने नौकरी छोड़ दी।’

दिशि के दिमाग में जो पहला आइडिया आया, वह था ज्वेलरी डिजाइनिंग। उन्होंने ‘दिशिजज्वेल्स’ नाम से एक आनलाइन वेंचर शुरू किया और घर बैठे अपने डिजाइंस को लोगों तक पहुंचाने लगीं। उल्लेखनीय यह भी रहा कि दिशि के परिवार में कोई भी ज्वेलरी बिजनेस में नहीं था। न ही किसी को इस इंडस्ट्री की जानकारी थी। ऐसे में उन्होंने अकेले दम पर स्क्रैच यानी शून्य से शुरुआत की। हां, समय-समय पर पैरेंट्स जरूर मार्गदर्शन करते रहे। खासकर मां ने एस्थेटिक डिजाइन में मदद की, तो पिता ने मेंटर एवं गाइड की भूमिका निभाई। बिजनेस मैनेज करने में उनके अनुभव बहुत काम आए।

फूंक-फूंक कर बढ़ाया कदम: दिशि ने महज पांच हजार रुपये से अपने कारोबार की नींव रखी। दरअसल, पहले वह खुद को परखना चाहती थीं। देखना चाहती थीं कि उनका आइडिया कितना कारगर रहता है। इसलिए उन्होंने कम से कम पूंजी लगाकर और सीमित खर्चे में शुरुआत की। बताती हैं दिशि, ‘मेरे कुछ दोस्त थे जिन्होंने वेबसाइट डेवलप करने में मदद की। यूं कहें कि बिना कोई फीस लिए एक प्रारंभिक वेबसाइट तैयार कर दी। इसके बाद मैंने कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया और स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, अमेजन, होमशाप 18 आदि लोकप्रिय ई-कामर्स मार्केटप्लेस के साथ टाइअप किया।

शुरू में अकेली ही काम कर रही थी। बिजनेस माडल आज भी वही पुराना है। आर्डर कंफर्म होने पर ही ज्वेलरी डिजाइन करती थी। वही कर रही हूं। पहला आर्डर मिलने पर बहुत उत्साहित थी, क्योंकि लोगों की सलाह के विपरीत मुझे बिजनेस में संभावनाएं दिखाई दे रही थीं। असल में काफी लोगों ने सलाह दी थी कि गोल्ड एवं डायमंड जैसे लग्जरी आइटम की आनलाइन बिक्री में मुश्किल आएगी। लेकिन मेरे आर्डर्स बढ़ रहे थे। उसी अनुसार, मैं बिजनेस में पूंजी भी लगा रही थी।’

चुनौतियों के बीच से निकलता है रास्ता: चुनौतियों के बारे में दिशि ने बताया कि कारीगरों के साथ टाइअप करना आसान नहीं था। बहुत सावधानी से उनका चयन किया। उन्हें इस बात का ध्यान रखना पड़ा कि जो लोग काम कर रहे हैं, वे विश्वासी हों। उन्होंने बाजार में उनकी तलाश की। कुछ कारीगर मिले। उनकी पूरी जांच-पड़ताल करने के बाद काम शुरू किया। वह कहती हैं, ‘छोटी-छोटी कुछ चुनौतियां रहीं। जैसे आपरेशनल स्टाफ एवं कारीगरों के साथ काम करते हुए प्रोडक्ट की क्वालिटी को निरंतर बनाए रखना। लेकिन ऐसा शायद सभी स्टार्टअप उद्यमियों के साथ होता है। हमें संयम रखना होता है। कड़ी मेहनत एवं प्रतिबद्धता से एक दिन सफलता जरूर मिलती है।’ हर उद्यमी अपने सफर में कुछ न कुछ सीखता है। दिशि ने भी हर दिन कुछ सीखा। नये सबक लिए। वह आगे बताती हैं, ‘मेरे लिए सबसे बड़ी सीख रही कि अपने दिल की सुनो और कभी हार नहीं मानो। कोई भी, कैसी भी परिस्थिति आए, अपने लक्ष्य पर डटे रहो। चुनौतियां तो आएंगी ही। आसपास के लोग नकारात्मक बातें करेंगे। हतोत्साहित भी करेंगे। लेकिन अपने जुनून से समझौता नहीं करो। धैर्य एवं प्रतिबद्धता से सब कुछ हासिल किया जा सकता है।’

ग्राहकों की खुशी है असली सफलता: कोविड के दौरान जहां बहुत से उद्यमियों को संघर्ष करना पड़ा। वहीं, दिशि खुद को खुशनसीब मानती हैं कि इस दौरान उनके सेल्स में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई। आने वाले समय में वे वैश्विक बाजार में अपनी ज्वेलरी को ले जाना चाहती हैं। इसके लिए निवेशकों की तलाश भी कर रही हैं। कहती हैं दिशि, ‘मेरे लिए सफलता का मतलब पैसा नहीं है। 

[दिशि सोमानी]