Sports Science :खेलों में खुल रहे नये करियर विकल्प
स्पोर्ट्स इंडस्ट्री में विगत कुछ वर्षों से ऐसे पेशेवर एवं कुशल लोगों (स्पोर्ट्स साइंटिस्ट एक्सरसाइज फिजियोलाजिस्ट आदि) की मांग देखी जा रही है जो इस इंडस्ट्री के बदलते ट्रेंड की समझ रखने के अलावा खिलाड़ियों के प्रदर्शन को सुधारने में काफी मददगार साबित हो रहे हैं।
अंशु सिंह। कतर में चल रहा फीफा विश्व कप कई मायनों में खास है। पहली बार यह न सिर्फ मध्य एशिया के किसी देश में आयोजित हुआ है, बल्कि पहली बार तमाम स्टेडियमों में नवीनतम एवं आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया है। वहां निर्धारित स्थानों पर कैमरे लगाए गए हैं, जिनसे गेंद (फुटबाल) की पोजीशन एवं खिलाड़ियों को मानिटर
किया जा सकेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से रियल टाइम में डाटा हासिल हो सकेगा। मैच के निर्णय लेने में रोबोरेफरी भी अहम भूमिका निभाएंगे। स्पोर्ट्स में टेक्नोलाजी के बढ़ते दखल का यह सबसे ताजा उदाहरण कहा जा सकता है। कुछ समय पूर्व भारत के मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे
पहले टीम के ड्रेसिंग रूप में लैपटाप के इस्तेमाल के पक्षधर नहीं थे, लेकिन धीरे- धीरे उन्हें लगा कि स्पोर्ट्स साइंस एवं टेक्नोलाजी से मिलने वाली मदद किसी भी खिलाड़ी के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है यानी स्पोर्ट्स टेक्नोलाजी को स्पोर्ट्स साइंस का ही एक विस्तार कहा जा सकता है, क्योंकि तकनीक की सहायता से
खिलाड़ियों को अपने पूर्व और मौजूदा प्रदर्शन के बारे में तुलनात्मक जानकारी मिली सकती है। इससे न सिर्फ वह अपने प्रदर्शन को बेहतर कर पाते हैं, बल्कि उनका करियर लंबा हो जाता है।
क्या है स्पोर्ट्स साइंस : स्पोर्ट्स साइंस एक विज्ञान है, जिसके तहत मानव शरीर एवं मन का अध्ययन किया
जाता है कि वह एक्सरसाइज करने या खेलने के दौरान किस प्रकार से कार्य करता है। इसके अंतर्गत स्पोर्टस एवं ह्यूमन एनाटामी, काइनेसियोलाजी, एक्सरसाइज फिजियोलाजी, स्पोर्ट्स बायोमैकेनिक्स, स्पोर्ट्स साइकोलाजी, मोटर कंट्रोल, स्पोर्ट्स ट्रेनिंग, फिजिकल एजुकेशन, न्यूट्रिशन, योग आदि विषयों की पढ़ाई होती है। स्टूडेंट्स को स्पोर्ट्स साइंस के सिद्धांत एवं मैकेनिक्स के बारे में विस्तार से बताया जाता है। उन्हें स्पोर्ट्स परफार्मेंस, इंजरी के बाद रिकवरी, फिटनेस एवं मानव शरीर से संबंधित अन्य जानकारियां दी जाती हैं।
शैक्षिक योग्यता: स्पोर्ट्स साइंस में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को 12वीं की परीक्षा कम से कम 50 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण करनी होगी। अच्छी बात यह है कि देश के कई शैक्षणिक संस्थानों में स्पोर्ट्स साइंस से संबंधित डिप्लोमा, डिग्री एवं पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा, पीचडी तक करने के अवसर मौजूद हैं। कुछ संस्थानों में प्रवेश परीक्षा के आधार पर दाखिला लिया जाता है। स्टूडेंट्स तीन वर्षीय बीपीईएस (बैचलर आफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स), बीएससी (हेल्थ एवं स्पोर्ट्स साइंस) कोर्स के साथ ही दो वर्षीय बीपीईडी एवं एपीईडी कोर्स भी कर सकते हैं। इसके अलावा, चेन्नई स्थित अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, मणिपुर के इंफाल स्थित नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी एवं अन्य विश्वविद्यालयों में भी इससे संबंधित कोर्स उपलब्ध हैं।
बुनियादी कुशलता : इन दिनों डिग्री के साथ-साथ कौशल पर भी काफी ध्यान दिया जा रहा है। इसलिए स्टूडेंट्स को टीम वर्क, मैनेजमेंट, मोटिवेशन, कम्युनिकेशन एवं एडमिनिस्ट्रेटिव स्किल्स पर खास काम करना होगा। इसके अलावा, उन्हें मानव संबंधी डाटा का आकलन करना आना चाहिए। वे जितनी दृढ़ता दिखाएंगे, अपनी फिजिकल फिटनेस पर जितना ध्यान देंगे, धैर्य रखेंगे उन्हें उतना ही फायदा होगा।
संभावनाएं : स्पोर्ट्स साइंस ग्रेजुएट्स के सामने विकल्पों की कमी नहीं होती है। वे अपनी रुचि के अनुसार, शैक्षणिक क्षेत्र अथवा कारपोरेट में काम कर सकते हैं। विभिन्न यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट्स आफिसर के रूप में भी नियुक्तियां होती हैं। इनके अलावा, वे कारपोरेट फिटनेस ट्रेनर, स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट, टीम फिजियो (क्रिकेट, हाकी एवं अन्य स्पोर्ट्स), योग प्रशिक्षक के रूप में भी करियर शुरू कर सकते हैं। स्पोर्ट्स के अलावा स्वास्थ्य एवं सेल्स के क्षेत्र में कार्य कर सकते हैं। फिजियोथेरेपी में स्पेशलाइजेशन करके किसी खेल संगठन या अस्पताल के साथ
जुड़ सकते हैं या अपना क्लिनिक शुरू कर सकते हैं। इनके स्पोर्ट्स कोच बनने की भी अच्छी संभावनाएं हैं। इन दिनों जिस तरह से खेलों के प्रति रुझान देखा जा रहा है और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण खिलाड़ियों को पहले से कहीं अधिक अपनी फिटनेस पर ध्यान देना हो रहा है, वैसे में एक्सरसाइज फिजियोलाजिस्ट के तौर पर भी करियर की शुरुआत की जा सकती है। इसमें एथलीट्स को विभिन्न प्रतियोगिताओं के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। उन्हें घायल होने से बचने के तरीके बताए जाते हैं। अपनी सेहत का ध्यान रखना सिखाया जाता है। जैसा कि सभी देख पा रहे हैं, आज कल खलाड़ियों को काफी मानसिक तनाव हो रहा है। इससे निपटने के लिए स्पोर्ट्स
साइकोलाजिस्ट की भूमिका एवं मांग दोनों बढ़ गए हैं।
स्पोर्ट्स तकनीक के फायदे : आज यदि कोई खिलाड़ी या स्पोर्ट्स टीम परफार्मेंस, फ्लेक्सिबिलिटी, टेक्निक,
एंड्योरेंस लेवल आदि का रियल टाइम डाटा हासिल कर पा रही है, तो उसमें टेक्नोलाजी बड़ी भूमिका निभा रही है। इस डाटा की मदद से खिलाड़ी अपने खेल अथवा प्रदर्शन को बेहतर कर पा रहे हैं। एनालिटिक्स की सहायता से इंजरीज से बचाव हो पा रहा है। आनलाइन एजुकेशन, ट्रेनिंग एवं एम्प्लायबिलिटी कंपनी स्पोर्जो के एक हालिया
अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2024 तक स्पोर्ट्स ट्रेनिंग एवं इंफ्रास्ट्रक्चर, स्पोर्ट्स टेक्नोलाजी कंपनीज, स्पोर्ट्स गवर्नेंस, एसोसिएटेड स्पोर्ट्स सब सेगमेंट्स में रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध होंगे। वहीं, रिसर्च टेक्नोलाजी डाट काम के अनुसार, वर्ष 2027 तक वैश्विक स्पोर्ट्स टेक्नोलाजी मार्केट करीब 45.2 करोड़ यूएस डालर के करीब पहुंच जाएगा।
एक्सपर्ट व्यू
प्रतिभा तराशने में है मददगार
टेक्नोलाजी के विकास के कारण आज खिलाड़ियों की मनोदशा एवं मनोविज्ञान को समझना कहीं अधिक आसान हो गया है। इसकी मदद से विभिन्न स्तरों पर खिलाड़ी के परफार्मेंस का आकलन किया जा रहा है। जाहिर तौर पर इससे स्पोर्ट्स साइंस की उपयोगिता एवं भूमिका कई गुना बढ़ गई है। युवाओं की प्रतिभा को पहचान कर, उन्हें
बेहतर तरीके से तराशा जा रहा है। स्पोर्ट्स साइंस के अध्ययन से स्टूडेंट्स समझ पाते हैं कि एक खिलाड़ी विभिन्न परिस्थितियों, दबाव एवं तनाव आदि में किस तरह परफार्म करता है। उसी अनुसार फिर उसकी ट्रेनिंग, एक्सरसाइज प्रोग्राम आदि तैयार किए जाते हैं। इससे प्रोग्राम डिजाइनिंग, मानिटरिंग एवं ट्रेनिंग तीनों में मदद
मिलती है।
डा. नीलम शर्मा
डिप्टी डीन, फिजिकल एंड स्पोर्ट्स साइंस, एलपीयू
प्रमुख संस्थान
नेशनल स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, मणिपुर
https://www.nsu.ac.in/
श्रीरामचंद्र इंस्टीट्यूट आफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च, चेन्नई
https://www.sriramachandra.edu.in/
सिंबायोसिस स्कूल आफ स्पोर्ट्स साइंसेज, पुणे
https://www.ssss.edu.in/
एकेडमी आफ स्पोर्ट्स साइंसेज रिसर्च एंड मैनेजमेंट, दिल्ली
https://assrm.edu.in/