जागरण संपादकीय: आरक्षण के अंदर आरक्षण, क्रीमी लेयर की जरूरत; पात्रता का भी रखना होगा ध्यान
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण करने का अधिकार राज्य सरकारों को भी दे दिया है। इस अधिकार का दुरुपयोग होने की आशंका है क्योंकि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल वोट बैंक बनाने के लालच में एससी-एसटी जातियों का मनमाना उपवर्गीकरण कर सकते हैं। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि आरक्षण सामाजिक न्याय का जरिया है न कि वोट बैंक की राजनीति का हथियार।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों-जनजातियों यानी एससी-एसटी समुदाय में आरक्षण के भीतर आरक्षण का रास्ता साफ करके आरक्षण की व्यवस्था को तार्किक एवं और अधिक न्यायसंगत बनाने का काम किया है।
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने जहां छह-एक के बहुमत से एससी-एसटी आरक्षण में कोटे के भीतर कोटे को संविधानसम्मत बताया, वहीं चार न्यायाधीशों ने इन वर्गों के आरक्षण में उसी तरह क्रीमी लेयर की व्यवस्था लागू करने की भी आवश्यकता जताई, जैसी ओबीसी आरक्षण में है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले से 2004 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी-एसटी समुदाय एक जैसा है और उनकी विभिन्न जातियों में कोई भेद नहीं किया जा सकता। यह वस्तुस्थिति नहीं थी।
सच यह है कि ओबीसी समाज की तरह एससी-एसटी समुदाय में भी कई जातियों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति न केवल कहीं कमजोर है, बल्कि उन्हें अपने ही वर्ग की अन्य जातियों से भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है। यह एक ऐसी सच्चाई है, जिससे कोई इन्कार नहीं कर सकता।
यह भी एक तथ्य है कि एससी-एसटी समुदाय में कई जातियां ऐसी हैं, जिन्हें आरक्षण का न के बराबर लाभ मिला है। ऐसा इसीलिए हुआ है, क्योंकि आरक्षण का अधिक लाभ इन वर्गों की अपेक्षाकृत समर्थ जातियां उठाती हैं। यही स्थिति ओबीसी में है। कई अति पिछड़ी जातियों तक आरक्षण का लाभ नहीं पहुंचा है।
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण करने का अधिकार राज्य सरकारों को भी दे दिया है। इस अधिकार का दुरुपयोग होने की आशंका है, क्योंकि सत्तारूढ़ राजनीतिक दल वोट बैंक बनाने के लालच में एससी-एसटी जातियों का मनमाना उपवर्गीकरण कर सकते हैं।
राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि आरक्षण सामाजिक न्याय का जरिया है, न कि वोट बैंक की राजनीति का हथियार। एससी-एसटी समुदाय को दिए जाने वाले आरक्षण में बंटवारा किया जाना इसलिए समय की मांग है, क्योंकि आइएएस-आइपीएस अधिकारियों के बच्चों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी स्थिति गांव में रहने वाले भूमिहीन-निर्धन लोगों के बच्चों जैसी है।अच्छा होगा कि एससी-एसटी आरक्षण का उपवर्गीकरण करने के साथ ही उसमें क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू किया जाए। आरक्षित वर्गों में जो भी अपेक्षाकृत सक्षम और संपन्न हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाना सामाजिक न्याय की मूल भावना के खिलाफ तो है ही, वंचित-निर्धन लोगों के साथ किया जाने वाला अन्याय भी है।
आरक्षण प्रदान करते समय यह देखा ही जाना चाहिए कि उसका लाभ पाने वाला पात्र है या नहीं? अब जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी समुदाय में आरक्षण के उपवर्गीकरण और क्रीमी लेयर की जरूरत जता दी है, तब फिर यह आवश्यक हो जाता है कि मोदी सरकार ओबीसी आरक्षण में उपवर्गीकरण की संभावना का पता लगाने के लिए गठित रोहिणी आयोग की रिपोर्ट पर अमल करने की दिशा में आगे बढ़े।