अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई और जंगल बचाने के लिए आंदोलन, जानें कौन थे बिरसा मुंडा जिनके नाम पर होगा अब सराय काले खां चौक
दिल्ली में आईएसबीटी के पास स्थित सराय काले खां चौक का नाम बदल दिया गया है। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में इस चौक को अब बिरसा मुंडा चौक का नाम दिया गया है। बिरसा मुंडा को आदिवासियों का भगवान माना जाता है। उन्होंने बेहद कम उम्र में अंग्रेजों से संघर्ष किया और दो वर्ष 12 दिन के लिए जेल भी गए।
एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली। बिरसा मुंडा, इतिहास का ऐसा नाम जिसने अपने आप को अमर कथाओं में आज भी जीवंत रखा है। 15 नवंबर को हर साल आदिवासियों के भगवान नाम से प्रचलित बिरसा मुंडा की जयंती मनाई जाती है। बिरसा मुंडा की जयंती को अब जनजातीय गौरव दिवस (Tribal Pride Day) के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत वर्ष 2021 से की गई थी।
इस वर्ष बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती को मनाया गया है और इसी मौके पर शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया गया है। अब यह चौक इन्हीं के नाम से जाना जायेगा। इस मौके पर बांसेरा उद्यान में गृह मंत्री अमित शाह ने भव्य प्रतिमा का अनावरण भी किया।
जीवन परिचय बिरसा मुंडा का जन्म
बिरसा मुंडा का जन्म मुंडा जनजाति में 15 नवंबर 1875 को हुआ था। बिरसा मुंडा की प्रारंभिक शिक्षा सालगा में जयपाल नाग की देखरेख में हुई। जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्होंने बीच में ईसाई धर्म भी अपना लिया था। लेकिन कुछ ही समय में उन्हें अहसास हुआ कि अंग्रेज आदिवासियों के धर्म परिवर्तन की मुहिम चला रहे हैं तो उन्होंने ईसाई धर्म का त्याग कर दिया और उसके बाद उन्होंने नया धर्म 'बिरसैत' शुरू किया।25 की उम्र में अंग्रेजो के दांत किये खट्टे
बिरसा मुंडा ने कम उम्र में ही अंग्रेजों से अपना संघर्ष शुरू कर दिया। उनके आंदोलन की शुरुआत चाईबासा में सन 1886 से हुई थी। यह आंदोलन 1890 तक चार तक चला। इसी आंदोलन के दौरान उन्होंने "अबूया राज एते जाना, महारानी राज टुडू जाना" (यानी महारानी का राज खत्म और बिरसा मुंडा का राज शुरू) दिया था।
(फाइल फोटो)