2 साल पहले शुरू किया रेंटल बिजनेस, आज करोड़ों का टर्न ओवर; पढ़ें संगीत डे की दिलचस्प स्टोरी
हड़बड़ी में उठाया गया छोटा कदम भी घातक हो सकता है या उल्टे परिणाम दे सकता है। लेकिन अगर कभी नतीजे सकारात्मक नहीं आते तो निराश नहीं होना चाहिए।
By Neel RajputEdited By: Updated: Mon, 03 Feb 2020 09:47 AM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। कॉलेज में पढ़ाई करते हुए बिजनेस का आइडिया आया और 25 वर्षीय संगीता डे ने डील्ज एक्सपर्ट्स नाम से अपना वेंचर शुरू कर दिया, जो आज रेंटल बिजनेस में अच्छी गति से विकास कर रहा है। इसका सालाना टर्न ओवर दो करोड़ रुपये के आसपास है। कंपनी की संस्थापक संगीता कहती हैं कि बिजनेस में सबसे मुश्किल कदम होता है शुरुआत करना। जब तक हम यह नहीं करते, तब तक पता नहीं चलता कि हमारे सामने किस तरह की चुनौतियां होंगी? इसके लिए हमें होमवर्क करना जरूरी होता है। मार्केट को जानना होता है, स्ट्रेटेजी बनानी होती है। हड़बड़ी में उठाया गया छोटा कदम भी घातक हो सकता है या उल्टे परिणाम दे सकता है। लेकिन अगर कभी नतीजे सकारात्मक नहीं आते, तो निराश नहीं होना चाहिए। दोबारा अपनी कमियों को दूर कर आगे बढ़ना चाहिए। संगीता की मानें, तो कामयाबी हासिल करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता, उसे बरकरार रखना कठिन होता है...
मैंने फगवाड़ा स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से एमसीए का इंटीग्रेटेड कोर्स किया है। कॉलेज के दूसरे वर्ष में ही मैंने एक ई-कॉमर्स वेंचर शुरू कर दिया था, जो स्टूडेंट्स को इलेक्ट्रॉनिक प्रोडेक्ट्स, मैट्रेस एवं अन्य जरूरी सामान डिलीवर करता था। इसी दौरान, कॉलेज में इंक्यूबेशन सेंटर स्थापित हुआ। वहां के एक्सपट्र्स ने केयर टेकिंग बिजनेस में संभावनाएं तलाशने का इशारा दिया। हमने लोगों को हाउसकीपिंग सर्विस देनी शुरू की। इसी दौरान, हमने रेंटल बिजनेस में भी ट्राई किया। दरअसल, हमने देखा था कि स्टूडेंट्स के बीच पूर्ण रूप से फर्निश्ड पीजी की कितनी मांग थी, जो पूरी नहीं हो पा रही थी। एनआरआइ के घर खाली पड़े थे, लेकिन वे उन्हें किराये पर लगा नहीं पा रहे थे। 2017 की बात है। हमने लीज पर घरों को लेना और फिर उसे फर्निश कर स्टूडेंट्स को किराये पर लगाना शुरू कर दिया। यह कारोबार चल पड़ा। आज हमारे पास 1200 से अधिक रूम्स हैं। जल्द ही हम दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में भी यह सर्विस शुरू करने की योजना पर काम कर रहे हैं।
लोगों की मानसिकता रही चुनौती
मैं वैसे तो त्रिपुरा से हूं। पारिवारिक पृष्ठभूमि कारोबार की रही है। इसलिए मेरे इस निर्णय को घरवालों का पूरा समर्थन मिला। पापा जो एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर हैं, वे फाइनेंस और टेक्निकल चीजें मैनेज करने में मदद करते हैं। वहीं, मां फूड, लाउंड्री और रोजाना की गतिविधियों को देखती हैं। हालांकि, मैंने परिवार से किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं ली। हम आज भी बूटस्ट्रैप्ड कंपनी ही हैं। शुरुआती चुनौतियों की बात करूं, तो लोगों की मानसिकता एक बाधा के रूप में सामने आई। सवाल उठे कि पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में काम करने का जोखिम क्यों उठाना? दरअसल, जब भी कोई नई चीज सामने आती है, तो लोग सोच में पड़ जाते हैं कि पता नहीं क्या होगा? कैसे होगा? वेंचर कामयाब होगा कि नहीं आदि। लेकिन मुझे खुद पर भरोसा था कि कर सकती हूं। मैं मानती हूं कि किसी भी बिजनेस में विश्वास और ईमानदारी बहुत जरूरी होते हैं। तभी हम मार्केट में स्थापित हो पाते हैं।