थ्योरिटीकल ही नहीं प्रैक्टिकल रूप से भी बढ़ाएं नॉलेज, जल्द मिलेगी कामयाबी
थ्योरी की पढ़ाई के साथ-साथ आप अपनी प्रैक्टिकल नॉलेज को बढ़ाने पर भी ज्यादा जोर देने का प्रयास करें।
By Neel RajputEdited By: Updated: Mon, 22 Jul 2019 03:41 PM (IST)
अरूण श्रीवास्तव, जेएनएन। अगर आप आसानी से और जल्दी मनपसंद नौकरी हासिल करना चाहते हैं, तो इसके लिए थ्योरेटिकल पढ़ाई करने के साथ-साथ शुरुआत से ही प्रैक्टिकल नॉलेज बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा। अच्छी बात यह है कि इस जरूरत को समझते हुए कुछ शैक्षणिक संस्थान अब खुद इस तरह की पहल के लिए आगे आ रहे हैं। पहले दिन से ही प्रैक्टिकल ट्रेनिंग क्यों जरूरी है यहां जानिए-
बारहवीं या समकक्ष कोर्स कर चुके ज्यादातर स्टूडेंट अब तक या तो अपने मनपसंद कोर्स में दाखिला ले चुके होंगे या फिर इस प्रक्रिया में होंगे। इसके बाद इसी महीने से सबकी कक्षाएं आरंभ हो जाएंगी, लेकिन अब सभी को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि यहां से वह टर्निंग प्वाइंट यानी मोड़ आरंभ होता है, जो आपके करियर को आपकी पसंदीदा राह पर आगे बढ़ा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि थ्योरी की पढ़ाई के साथ-साथ आप अपनी प्रैक्टिकल नॉलेज को बढ़ाने पर भी ज्यादा जोर देने का प्रयास करें। इससे आपको करके सीखने में मजा आएगा और फिर आप थ्योरी को भी कहीं ज्यादा अच्छी तरह समझ सकेंगे। सबसे बड़ी बात यह कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉक चेन, मशीन लर्निंग आदि नई तकनीकों पर आधारित और बदलती हुई इंडस्ट्री ऐसे उत्साही प्रोफेशनल्स ही चाहती है, जो उनके यहां पहले दिन से ही पूरी निपुणता के साथ हर काम को अंजाम दे सकें।
इंडस्ट्री के पास न तो इतना समय है और न ही संसाधन कि वह फ्रेशर्स को बिल्कुल नये सिरे से अपनी जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षण दे सके। ऐसे में यह जिम्मेदारी अब शिक्षण संस्थानों की ही है कि वे अपने स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री की आवश्यकताओं के अनुरूप गढ़ने-तराशने के जतन करें। हां, इंडस्ट्री को भी संस्थानों के साथ सहयोग करने को तैयार-तत्पर रहना होगा। बस, पहल संस्थानों को ही करनी होगी।न हो इंटर्नशिप की खानापूरी
अब से पहले तक ज्यादातर शिक्षण संस्थानों में कोर्स के आखिरी साल में इंटर्नशिप के तहत एक या डेढ़ महीने के लिए स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री में भेजा जाता रहा है। आमतौर पर इसे खानापूरी की तरह लिया जाता है और कोशिश यही की जाती है कि किसी तरह से इंटर्नशिप का सर्टिफिकेट मिल जाए, ताकि उसके आधार पर नंबर क्रेडिट हो जाए। संस्थानों की उदासीनता, नियामक अधिकरणों द्वारा निगरानी का अभाव और टीचर-स्टूडेंट्स के काफी हद तक कोर्स और थ्योरी पर ही फोकस रहने का नतीजा पासआउट होने वाले युवाओं की बेरोजगारी के रूप में दिखने लगा। इस बेरोजगारी को लेकर बीते कुछ वर्षों में शोर तो काफी हुआ, लेकिन इस दिशा में व्यावहारिक ठोस उपाय करने की दिशा में बहुत ज्यादा कोशिश नहीं की गई।कैंपस में लगाएं इंडस्ट्री की यूनिट
अपने स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों के अनुरूप तैयार करने के लिए देश के कुछ संस्थानों ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय पहल की है। इसके तहत उन्होंने न सिर्फ इंडस्ट्री से टाइ-अप किया है, बल्कि खुद अपने प्रयासों से संस्थान के परिसर में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने की दिशा में भी आगे बढ़े हैं। आने वाले दिनों में इसके कई फायदे दिख सकते हैं। पहला, इससे संस्थान के स्टूडेंट्स को पहले दिन से ही प्रैक्टिकल नॉलेज प्रदान किया जा सकेगा, जिससे कि वे इंडस्ट्री की रिक्वॉयरमेंट्स को समझते हुए किसी प्रोडक्ट को तैयार करने की प्रक्रिया बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। दूसरा, इसके जरिए इंडस्ट्री को कम कीमत पर प्रोडक्ट मुहैया कराए जा सकेंगे। तीसरा और सबसे बड़ी बात यह कि यहां से प्रशिक्षित होकर निकलने वाले युवा इंडस्ट्री के लिए पहले दिन से ही आउटपुट देने में सक्षम होंगे, जिससे इंडस्ट्री की चिंता काफी हद तक दूर हो सकेगी। स्कूलों के बच्चों की भी यहां नियमित रूप से विजिट कराई जा सकती है, ताकि वे खुद भी सीखने व इनोवेशन के लिए प्रेरित हों।
चौबीस घंटे खुली हो लैबअभी तक स्कूलों/ कॉलेजों में लैब या लाइब्रेरी स्कूल/कॉलेज के टाइम से ही खुलते और बंद होते रहे हैं, लेकिन अब संस्थान पांच बजे के बाद भी इनके खुले रहने का विकल्प दे रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि अब तकरीबन ज्यादा से ज्यादा स्टूडेंट्स को लैब व लाइब्रेरी का भरपूर उपयोग करने का मौका मिलने लगा है। इससे उनकी नॉलेज और निखर रही है। स्टूडेंट्स और इंडस्ट्री के हित में इस व्यवस्था को तकरीबन हर संस्थान में लागू करने का जतन किया जाना चाहिए। इसके लिए संस्थानों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे अपने लैब और लाइब्रेरी को अधिक से अधिक समृद्ध करने का प्रयास करें। बेशक इसके लिए उन्हें इंडस्ट्री से मदद ही क्यों न लेनी पड़े। इसके लिए उत्साहपूर्ण पहल उन्हीं को करनी होगी।