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UPSC Prelims 2020: यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और यूपीएससी से मांगा जवाब, अगली सुनवाई 28 सितंबर को

UPSC Prelims 2020 न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और संजीव खन्ना की बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को निर्धारित की है। यूपीएससी सिविल सर्विस प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन देश भर के विभिन्न केंद्रों पर 4 अक्टूबर 2020 को किया जाना है।

By Nandini DubeyEdited By: Updated: Fri, 25 Sep 2020 07:49 AM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार और यूपीएससी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
UPSC Prelims 2020: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सर्विस प्रारंभिक परीक्षा स्थगित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार और यूपीएससी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यूपीएससी उम्मीदवारों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर सिविल सर्विस प्रारंभिक परीक्षा स्थगित करने की मांग की गई थी। याचिका में देश में तेजी से कोविड-19 महामारी के बढ़ते मामलों और कई प्रदेशों में बाढ़ की भयंकर स्थिति की वजह से होने वाली परेशानियों से संबंधित  कारण दिए गए थे।  

बता दें कि न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और संजीव खन्ना की बेंच ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को निर्धारित की है। यूपीएससी सिविल सर्विस प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन देश भर के विभिन्न केंद्रों पर 4 अक्टूबर, 2020 को किया जाना है। परीक्षा के लिए उम्मीदवारों के प्रवेश पत्र भी जारी कर दिए गए हैं।

वहीं, याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से सिविल सेवा परीक्षा को दो से तीन महीने के लिये टालने की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि उस समय तक बाढ़ और लगातार बारिश की स्थिति में सुधार हो जाएगा और महामारी के संक्रमण के भी कम होने की उम्मीद है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, महामारी के दौर में परीक्षा आयोजित कराना, संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वास्थ्य व जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

अधिवक्ता अलख श्रीवास्तव के माध्यम से 20 यूपीएससी उम्मीदवारों की तरफ से दायर याचिका के अनुसार, 4 अक्टूबर को देश भर के 72 केंद्रों पर 6 लाख से अधिक उम्मीदवार 7 घंटे की परीक्षा देंगे। महामारी के प्रकोप के समय में ऑफलाइन मोड में परीक्षा आयोजित करवाने से छात्रों की जिंदगी खतरे में आ सकती है। देश के कई राज्यों में बाढ़ और भारी बारिश के कारण उस क्षेत्र के छात्रों का जीवन व स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। ऐसे में संशोधित कैलेंडर स्पष्ट तौर पर अनुचित है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 में मौजूद स्वास्थ्य व जीवन के अधिकारों का उल्लंघन करता है।