Move to Jagran APP

Indian Railway के सुरक्षित संचालन में Calling On Signal की अहम भूमिका, जानें कब होता है इसका इस्तेमाल

Indian Railway को एशिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में गिना जाता है। इसको संचालित करने के लिए कई उपकरणों और नियमों को समझना पड़ता है। इन्हीं में एक कॉलिंग ऑन सिग्नल होता है जो रेलवे के सुरक्षित संचालन में अहम भूमिका निभाता है।

By Jagran NewsEdited By: Shalini KumariUpdated: Mon, 03 Apr 2023 12:34 PM (IST)
Hero Image
भारतीय रेलवे में कॉलिंग ऑन रेलवे की अहम भूमिका
नई दिल्ली, जागरण डेस्क। भारतीय रेलवे एक बड़ा और फैला हुआ रेलवे नेटवर्क है, जिसकी गिनती एशिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में होती है। रेलवे का सुरक्षित संचालन करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, क्योंकि एक हल्की से चूक कई लोगों की जिंदगी खत्म कर सकती है।

इसके संचालन में सबसे अहम रोल सिग्नल का होता है। इतना ही नहीं, रेलवे में सिग्नल भी कई प्रकार के होते हैं, जिसक जरिए लोको पायलट को यह समझना होता है कि अब उन्हें क्या करना है।इस खबर में हम आपको रेलवे के Calling On Signal के बारे में बताएंगे कि आखिर इसका इस्तेमाल किसलिए होता है।

क्या होता है Calling On Signal?

भारतीय रेलवे में Calling On Signal का इस्तेमाल ट्रेन को प्लेटफॉर्म में एंट्री का संकेत देने के लिए किया जाता है। इस हमेशा प्लेटफॉर्म के शुरुआत या अंत में लगाया जाता है, ताकि लोको-पायलट इसे आसानी से देख सके। इस सिग्नल में एक सफेद रंग की पट्टी पर काले रंग से C लिखा जाता है, जो Calling On Signal का संकेत देता है।

इसमें एक एलईडी लाइट होती है, जो पीले रंग की जलती है। इस लाइट को तब जलाया जाता है, जब लोको पायलट को संकेत देना हो कि वो ट्रेन की गति को धीमे रखते हुए आगे बढ़ाए। यदि यह लाइट बुझी होती है तो, इसका अर्थ होता है कि लोको-पायलट को रुकने के लिए कहा जा रहा है।

कब होता है Calling On Signal का इस्तेमाल?

Calling On Signal का इस्तेमाल ट्रेन को प्लेटफॉर्म पर प्रवेश देने के लिए किया जाता है। इस सिग्नल के जरिए लोको-पायलट समझ जाता है कि प्लेटफॉर्म खाली है और वो अपने ट्रेन को आगे बढ़ाता है। जब तक लोको-पायलट को यह सिग्नल नहीं मिलता, वो आगे नहीं बढ़ता है। इसके बाद जैसे ही ट्रेन प्लेटफॉर्म पर प्रवेश करती है, ऑटोमेटिक सिग्नल सिस्टम होने के कारण लाल लाइट जल जाती है, ताकि पीछे से आ रही ट्रेन को सचेत किया जा सके।

येलो लाइट पर धीमी हो जाती है रफ्तार

इसके अलावा, यदि ट्रेन में अन्य लोकोमोटिव से जोड़ना या फिर ट्रेन की लिंकिंग करनी हो तो, एक अन्य लोकोमोटिव के माध्यम से यह काम किया जाता है। इसके लिए भी एक अलग सिग्नल की आवश्यकता होती है। प्लेटफॉर्म पर पहले से एक ट्रेन खड़ी होती है तो, ऐसे में अन्य लोकोमोटिव जोड़ने या कोच जोड़ने के लिए लोको-पायलट को कॉलिंग सिग्नल दिया जाता है, जो पीले रंग की लाइट होती है।

धीमी रफ्तार के साथ बढ़ती है लोकोमोटिव

कॉलिंग सिग्नल मिलने पर लोको-पायलट को लोकोमोटिव की रफ्तार को धीमे रखनी होती है, ताकि यदि किसी परिस्थिति के कारण स्टेशन मास्टर उस ट्रेन को आगे बढ़ने से रोकना चाहता है तो, किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने से रोका जा सके।

इस बात पर खास ध्यान दिया जाता है कि कभी भी मेन सिग्नल और कॉलिंग सिग्नल एक साथ न दिया जाए। इसका कारण है कि दोनों ही सिग्नल का अर्थ एकदम विपरित होता है। ऐसे में दोनों सिग्नल मिलने से लोको-पायलट को भ्रम हो सकता है और इससे एक बड़ी दुर्घटना भी हो सकती है।