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कबूतर से डिजिटल तक, ऐसा है मौर्य-मुगल, अंग्रेजी हुकूमत से लेकर ऑनलाइन सिस्टम तक भारतीय डाक का सुनहरा इतिहास

विश्वभर में 9 अक्टूबर के दिन को World Post Day के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है। डाक व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलित रही है। पहले इस व्यवस्था की शुरुआत गुप्त सदेंशों के आदान प्रदान के लिए राजाओं द्वारा किया जाता था लेकिन समय के साथ यह आम हो गया। डाक व्यवस्था ने कबूतर से शुरू होकर आज डिजिटल सिस्टम तक का सफर पूरा कर लिया है।

By Amit Yadav Edited By: Amit Yadav Updated: Sun, 13 Oct 2024 10:50 AM (IST)
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World Post Day: भारतीय डाक दिवस के इतिहास।
एजुकेशन डेस्क, नई दिल्ली। दुनियाभर में प्रतिवर्ष 9 अक्टूबर के दिन को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्राचीन कल से ही डाक या सन्देश भेजना आम रहा है। मानव जाति के विकास के साथ डाक भी लगातार विकास की राह पर आगे बढ़ता रहा। राजा-महाराजाओं के समय से ही संदेशवाहक प्रशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। भारतीय सभ्यता में भी डाक बेहद महत्वपूर्ण अंग रहा है। भारतीय डाक के इतिहास की बात करें तो इसने कबूतर से शुरुआत करके आज ऑनलाइन सिस्टम तक का सफर तय कर लिया है।

कबूतर से शुरू हुई डाक प्रणाली

ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल से ही डाक प्रणाली का उपयोग होता रहा है लेकिन इसके भारतीय सबूत मौर्य वंश से मिलते हैं। मौर्य राजाओं ने 321–297 BCE तक भारत का बड़े हिस्से पर राज किया। इनके समय में वे कबूतर के माध्यम से अपने सदेशों को एक से दूसरे स्थान पर भेजते थे।

कबूतर डाक व्यवस्था सम्राट अशोक के काल में भी जारी रही। उस समय प्रशिक्षित कबूतरों के पैरों में डाक सुरक्षित रूप से बांधे जाते थे जिन्हें उड़ाया जाता था और यह कबूतर अपने गंतव्य तक आसानी से पहुंच जाते थे।

इमेज क्रेडिट: indiapost

मुगल साम्राज्य में बदल गई डाक की सेवा

मुगल साम्राज्य में संचार के माध्यम में बदलाव हो गया। उसने डाक के लिए घोड़े तैनात किया। इसके साथ ही मुगल साम्राज्य में रनर डाक की व्यवस्था भी शुरू की गई है जिसमें सीधे कोई व्यक्ति या सैनिक डाक को जल्दी से जल्दी पहुंचाने का काम करता था। शेरशाह सूरी ने संचार व्यवस्था को और भी बेहतर बनाने के लिए 2500 किलोमीटर ग्रांट ट्रंक रोड और सड़क के किनारे सराय नामक विश्राम गृहों का निर्माण किया। प्रत्येक में विश्राम गृह, समाचार संप्रेषण के लिए घोड़े तैयार रखे गये थे जिनकी संख्या 3400 थी।

अंग्रेजी हुकूमत में GPO हुए विकसित

मुगल साम्राज्य के बाद एक बार फिर से इसमें बदलाव हुआ। अंग्रेजों ने भारत में GPO स्टैब्लिश किये। सबसे पहले 1774 में कलकत्ता जीपीओ एवं उसके बाद 1784 में मद्रास GPO और 1794 में मुंबई जीपीओ स्थापित किया।

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यह यहां भारतीय डाक इतिहास, विभिन्न भारतीय राजाओं द्वारा उपयोग की जाने वाली डाक प्रणाली, ब्रिटिश व्यवस्था, भारतीय स्वतंत्रता में भूमिका, स्वतंत्र भारत के बाद के युग और प्रौद्योगिकी चरण और आगे की प्रगति, आईटी आधुनिकीकरण परियोजना में सभी उपलब्ध जानकारी डालने का एक प्रयास है। 2012 ऑनलाइन प्रक्रियाओं की शुरुआत के साथ।

इसके बाद भारतीय डाक व्यवस्था में लगातार चेंजेस का दौर जारी रहा। 1876 में भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन में शामिल हुआ और 1882 में डाकघर बचत बैंक ओपन किया। आजाद भारत ने 1947 में तीन स्वतंत्रता डाक टिकट जारी किए। इसके बाद 1986 में भारतीय डाक की ओर से स्पीड पोस्ट की शुरुआत की गई और वर्ष 2012 में भारतीय डाक के लिए आईटी आधुनिकीकरण परियोजना-2012 पेश की गई।

भारतीय डाक का इतिहास 

  • 321–297 BCE: मौर्य वंश
  • 1504: मुगल साम्राज्य
  • 1727: ब्रिटिश काल
  • 1774: कोलकाता GPO
  • 1786: मद्रास GPO
  • 1794: मुंबई GPO
  • 1852: पहला डाक टिकट (First Postage Stamp)
  • 1854: मेल रनर (Mail Runner)
  • 1854: डाक प्रणाली में परिवहन के साधन
  • 1856: सेना डाक सेवा
  • 1860: डाक मैनुअल प्रकाशित
  • 1876: भारत यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन में शामिल हुआ
  • 1882: डाकघर बचत बैंक खुला
  • 1947: तीन स्वतंत्रता डाक टिकट जारी किए गए
  • 1986: 1 अगस्त, स्पीड पोस्ट की शुरुआत
  • 2006: 25 जून, ई-भुगतान सेवाएं शुरू की गईं
  • 2012: आईटी आधुनिकीकरण परियोजना-2012 पेश की गई
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