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सारागढ़ी युद्ध के 125 साल: हजारों अफगान हमलावरों पर भारी पड़े थे 21 सिख सैनिक, इस पर बनी थी यह मशहूर फिल्म

125 years of saragarhi war 12 सितंबर 1897 को केवल 21 सिख सैनिक अफगान आक्रमणकारियों के खिलाफ खड़े हुए थे। 21 सिख सैनिकों ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में लगभग 6 घंटे तक किले से लड़ाई लड़ी। करीब 600 अफगानी पठानों को मौत के घाट उतार अपनी वीरता दिखाई।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Mon, 12 Sep 2022 06:16 PM (IST)
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सारागढ़ी की लड़ाई को दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक माना जाता है। (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, आनलॉइन डेस्क। आज यानी 12 सितंबर 2022 को 1897 में हुए सारागढ़ी के युद्ध की 125वीं वर्षगांठ है। यूं तो सिख सैनिकों को उनके अदम्य साहस और निडरता के लिए दुनिया भर में जाना जाता है, लेकिन 125 साल पहले, 10 हजार अफगान हमलावरों को सिख सैनिकों के साहसी और निडर रूप की जबर्दस्त झलक देखने को मिली। सारागढ़ी की लड़ाई वर्ष 1897 में समाना रिज पर लड़ी गई थी, जो अब पाकिस्तान में है। सारागढ़ी एक सुरक्षा चौकी थी जिसे यह सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किया गया था कि लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के बीच संचार बिना किसी बाधा के जारी रहे। 

12 सितंबर 1897 को केवल 21 सिख सैनिक अफगान आक्रमणकारियों के खिलाफ खड़े हुए थे। 21 सिख सैनिकों ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में लगभग 6 घंटे तक किले से लड़ाई लड़ी। उन्होंने करीब 600 अफगानी पठानों को मौत के घाट भेजकर अपनी वीरता दिखाई। सारे हालात उल्टे होने के बावजूद भी सिख सैनिक पूरी ताकत और साहस के साथ लड़ते रहे। इन मुट्ठी भर सैनिकों की अतुलनीय वीरता के कारण सारागढ़ी की लड़ाई को दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक माना जाता है।

अफगानिस्तान के अफरीदी और औरकजई जनजातियों ने गुलिस्तान और लॉकहार्ट किलों पर कब्जा करने के उद्देश्य से हमला किया। ये दोनों किले भारत-अफगान सीमा के पास स्थित थे और इन दोनों किलों का निर्माण 'महाराजा रणजीत सिंह' ने करवाया था। लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के पास सारागढ़ी नामक एक चौकी थी। यह पद सैनिकों के लिए अधिकारियों से संवाद करने का मुख्य केंद्र था। सारागढ़ी चौकी की जिम्मेदारी 36वीं सिख रेजीमेंट के जवानों को दी गई थी। 12 सितंबर को पश्तून हमलावरों (अफरीदी और औरकजई) ने लॉकहार्ट किले पर हमला किया। हमले को विफल करने वाले 21 सिख जवानों को उनकी बहादुरी के लिए उस समय के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। इस ऐतिहासिक घटना पर 'केसरी' नाम की फिल्म भी बनी थी। फिल्म एक बड़ी सफलता थी। इस फिल्म में अक्षय कुमार ने हवलदार ईशर सिंह की भूमिका निभाई थी। 

भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट 12 सितंबर को उन 21 बहादुर सैनिकों द्वारा किए गए बलिदान की याद में एक दिन के रूप में मनाती है। इन सिख सैनिकों की याद में, इंग्लैंड के वोवरहैम्प्टन में वेडेंसफील्ड में सिख सैनिकों की एक टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले हवलदार ईशर सिंह की 10 फुट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। यह प्रतिमा 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ी है। इस प्रतिमा का उद्घाटन पिछले साल किया गया था। इस मौके पर कई अंग्रेज सांसद और सेना के अधिकारी मौजूद थे। कांस्टेबल ईशर सिंह की प्रतिमा 38 वर्षीय मूर्तिकार ल्यूक पेरी ने बनाई है। इस स्मारक पर करीब 1 लाख 36 हजार पाउंड खर्च किए गए हैं।