भारत-पाक के बीच हुई जंग के हीरो थे 'अल्बर्ट एक्का', पेश की थी बहादुरी की मिसाल
1971 की लड़ाई में अल्बर्ट एक्का ने बहादुरी की वो मिसाल पेश की जो आज भी करोड़ों भारतीयों के आदर्श हैं।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 27 Dec 2018 08:23 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ये देश है वीर जवानों का, ऐसे ही नहीं कहा जाता। सीमा पर युद्ध का माहौल हो या देश के भीतर दुश्मनों की चुनौती, भारतीय जांबाजों ने हर मोर्चे पर अपनी वीरता और अदम्य साहस की कहानी लिखी है। भारत सरकार का हमेशा मत रहा है कि दुनिया की स्थिरता के लिए अलग अलग देशों के बीच शांति और सद्भाव जरूरी है। ये ऐतिहासिक तथ्य है कि भारत की पीठ में न केवल चीन ने छूरा भोंका, बल्कि पाकिस्तान ने 1948, 1965, 1971 और 1999 में प्रत्यक्ष लड़ाई लड़ी। ये बात अलग है कि भारतीय सेना अधिकारियों और जवानों ने दुश्मन देशों द्वारा थोपे गए सभी युद्धों में वीरता का जबरदस्त उदाहरण पेश किया। 1971 की लड़ाई में अल्बर्ट एक्का ने बहादुरी की वो मिसाल पेश की जो आज भी करोड़ों भारतीयों के आदर्श हैं।
अल्बर्ट एक्का का जन्म 27 दिसंबर 1942 को झारखंड (अविभाजित बिहार) के गुमला मे हुआ था। एक्का के माता-पिता का नाम मरियम और जुलियस था। अल्बर्ट शुरू से ही बड़े मजाकिया स्वभाव के था और अक्सर भारतीय फौज में शामिल होने की बात किया करते थे। उनका ये सपना उनके 20वें जन्मदिन पर साकार हुआ। ब्रिगेड ऑफ गॉर्ड्स के 14वें बटालियन में उनकी नियुक्ति हुई। एक्का की तीरंदाजी उनके सेना में भर्ती होने में सहायक साबित हुई। उनका निशाना अचूक था। कठिन से कठिन लक्ष्य को आसानी से भेद देते थे।
एक्का की बहादुरी और पाकिस्तान की हार
1971 की लड़ाई जब शुरू हुई तो भारतीय सेना पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर लड़ रही थी। बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए गंगा सागर की लड़ाई बेहद अहम थी। एक्का की बटालियन 14 गार्ड्स को गंगासागर में पाकिस्तानी मोर्चे को नाकाम करना था। ये जगह त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से महज 6 किमी दूर था। गंगासागर ढाका को जाने वाली मुख्य रेलवे लाइन के करीब थी। रणनीतिक रुप से गंगासागर पर कब्जा भारतीय सेना के लिए महत्वपूर्ण थी। इस पूरे इलाके में पाकिस्तानी सेना ने बारूदी सुरंगे बिछा रखी थी। अखुरा तक पहुंचने के लिए गंगासागर पर कब्जा जरूरी था। अपने मकसद को हकीकत में तब्दील करने के लिए 14 गार्ड्स ने 3 दिसंबर को गंगासागर पर जबरदस्त हमला किया। एक्का के इरादे मजबूत थे वो किसी भी हालात में गंगासागर पर कब्जा करना चाहते थे।
1971 की लड़ाई जब शुरू हुई तो भारतीय सेना पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर लड़ रही थी। बांग्लादेश में दाखिल होने के लिए गंगा सागर की लड़ाई बेहद अहम थी। एक्का की बटालियन 14 गार्ड्स को गंगासागर में पाकिस्तानी मोर्चे को नाकाम करना था। ये जगह त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से महज 6 किमी दूर था। गंगासागर ढाका को जाने वाली मुख्य रेलवे लाइन के करीब थी। रणनीतिक रुप से गंगासागर पर कब्जा भारतीय सेना के लिए महत्वपूर्ण थी। इस पूरे इलाके में पाकिस्तानी सेना ने बारूदी सुरंगे बिछा रखी थी। अखुरा तक पहुंचने के लिए गंगासागर पर कब्जा जरूरी था। अपने मकसद को हकीकत में तब्दील करने के लिए 14 गार्ड्स ने 3 दिसंबर को गंगासागर पर जबरदस्त हमला किया। एक्का के इरादे मजबूत थे वो किसी भी हालात में गंगासागर पर कब्जा करना चाहते थे।
कर्नल ओ पी कोहली एक्का की टीम की अगुवाई कर रहे थे। एक्का की काबिलियत को वो पहले से जानते थे। कर्नल कोहली कहा करते थे कि वो एक ऐसा शख्स है जिसके लिए चुनौतियों का सामना करना किसी पूजा से कम नहीं। वो कठिन से कठिन हालात को भी अपने पक्ष में बदल सकते हैं। एक्का की बहादुरी की जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि जब एक्का एक पाकिस्तानी संतरी से टकराए और पूछा कि कौन है वहां, पाकिस्तान का संतरी बोला कि तेरा बाप।
जान पर खतरे की परवाह किए बगैर एक्का ने दो महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। अपने ब्रिगेड के आदर्श वाक्य, पहला हमेशा पहला को अपनी शख्सियत में उतारा। उन्होंने दुश्मन सेना के बंकरों को नष्ट कर दिया। ये बात अलग है कि उनके ऊपर पाकिस्तानी सेना लगातार गोलियां चलाती रही। लेकिन अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए उन्होंने अपने कई सहयोगियों की जान बची। एक्का की बहादुरी से गंगासागर पर भारत का कब्जा और इस तरह से पाकिस्तानी सेना ने अखुरा को खाली कर दिया। अखुरा के खाली होने के बाद भारतीय सेना ढाका की तरफ कूच कर गई। लेकिन देश अपने एक वीर सपूत को खो चुका था। एक्का के असाधारण साहस की हर तरफ सराहना हुई और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।